Friday, May 28, 2021

इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) और कायनात की इंटेलिजेंट डिज़ाईन 

 दुनिया के बनने के सिलसिले में पूरी दुनिया के लोग जिन थ्योरीज़ को पेश करते हैं उन्हें दो कैटेगरीज़ में रखा जा सकता है।  पहली है इवोल्यूशन और दूसरी है इंटेलिजेंट डिज़ाईन। पहली थ्योरी क्रियेटर के अस्तित्व से इंकार करती है और दूसरी क्रियेटर को लाज़मी मानती है।  इंटेलीजेंट डिज़ाईन के बारे में चौदह सौ साल पहले एक वैज्ञानिक ने मज़बूत दलीलें पेश की थीं जो तौहीद मुफ़ज़्ज़ल के नाम से मशहूर है. ये महान वैज्ञानिक थे  इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) जिन्होंने अरब की पहली यूनिवर्सिटी क़ायम की थी और चार हज़ार शागिर्दों को अपने ज्ञान से सैराब किया।


तौहीद मुफज़्ज़ल यूनिवर्स की इण्टेलिजेंट डिज़ाईन की बात करती है और तमाम दलीलों के ज़रिये साबित करती है कि सब कुछ सिस्टेमैटिक है और इसलिए इसे बनाने वाली एक सुपरपावर मौजूद है।
इस किताब में होंठों के बारे में इमाम फरमाते हैं,
‘होंठों के ज़रिये से इंसान पानी को चूस सकता है ताकि जो पानी पेट के अन्दर जाये वह बाअन्दाजा मुअय्यन (एक खास अन्दाज़े के साथ) और बिल क़स्द (जितनी ज़रूरत है) जाये न कि ग़रग़राता हुआ बह जाये, जिससे पीने वाले के गले में फंदा न लगे और जोर से बह कर जाने के सबब से किसी अन्दरूनी हिस्से में खराश न पड़ जाये। फिर अलावा इसके ये दोनों होंठ दरवाज़े के मुशाबिह हैं जो मुंह को ढांके रहते हैं जब आदमी चाहे बन्द करे।’’
 कानों के बारे में इमाम फरमाते हैं , कान का भीतरी हिस्सा कैदखाने की तरह क्यों टेढ़ा मेढ़ा बनाया गया है? इसीलिये न कि उसमें आवाज़ जारी हो सके और उस पर्दे तक पहुंच जाये जिससे आवाज़ सुनाई देती है और इसलिए कि हवा की तेज़ी का ज़ोर टूट जाये ताकि सुनने के पर्दे में खराश न डाले।’ यानि कानों की भीतरी बनावट टेढ़ी मेढ़ी होने के पीछे खास राज़ है, वह यह कि हवा का दबाव कान के पर्दे पर न पड़े और खालिस आवाज़ ही कान के पर्दे तक पहुंचे क्योंकि यह पर्दा बहुत नाज़ुक होता है और हवा का सीधा असर इसको चोट पहुंचा सकता है।

किताब एललुश-शराये में दर्ज हदीस के मुताबिक इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने आँखों में नमकीनी, कानों में तल्खी, नाक में तरी और मुंह में शीरनी की वजह बताते हुए फरमाया कि अल्लाह तआला ने बनी आदम की दोनों आँखों को दो चरबी के टुकड़ों से बनाया और उनमें नमकीनियत रख दी। अगर ऐसा न होता तो वह पिघल कर बह जातीं। और अगर उनमें कोई धूल का ज़र्रा पड़ जाता तो बहुत तकलीफ देता। आँखों में कोई ज़र्रा या तिनका पड़ जाता है तो नमकीनी उसको निकाल कर फेंक देती है। और कानों में जो तल्खी रखी है वह दिमाग के लिये एक परदा है। कान में अगर कोई कीड़ा मकोड़ा पड़ जाये तो वह फौरन उसमें से निकल भागने की कोशिश करता है। अगर ये तल्खी न हो तो वह दिमाग तक पहुंच जाये। और नाक में तरी को भी दिमाग की हिफाज़त के लिये रखा। अगर इसमें तरी न हो तो दिमाग गर्मी से पिघल कर बह जाये। और साथ ही ये तरी दिमाग से हर फासिद माददे को बाहर कर देती है। और मुंह में शीरनी रखी ये बनी आदम पर अल्लाह का एहसान है ताकि वह खाने पीने की लज्ज़त हासिल कर सके।

इस तरह हम देखते हैं कि कानों में मौजूद माद्दा जो आम आदमी की नज़र में गंदगी से ज्यादा कुछ नहीं दरअसल बहुत ही अहम है और कानों की हिफाज़त करता है। इसी तरह नाक की गंदगी भी हकीकत में निहायत अहम है। आँखों के आँसुओं की अहमियत तो जग जाहिर है ही। मतलब ये हुआ कि जिस्म का कोई भी हिस्सा यहां तक कि जिस्म से निकलने वाली गंदगी जो लोगों की नज़र में बेकार सी शय है और वो यही समझते हैं कि यह किसी मशीन से निकलने वाले वेस्ट मैटीरियल की तरह है, हकीकत में ऐसा नहीं है बल्कि ये वेस्ट मालूम होने वाला मैटीरियल भी जिस्म के लिये उतना ही ज़रूरी है जितना कि आँखें, और हाथ पैर वगैरा।
 
जानवरों के बारे में भी इमाम इंटेलिजेंट डिज़ाइन की बात करते हैं।  मसलन चीटियों के बारे में कहते हैं  ‘चींटी दाने हासिल करने के बाद उन को दरमियान से दो टुकड़े कर देती है कि कहीं ऐसा न हो कि ये दाने उनके सुराखों में पानी पाकर उग आयें और उनके काम के न रहें। और जब उन दानों को तरी पहुंच जाती है तो उनको निकाल कर फैला देती है ताकि खुश्क हो जायें। फिर ये भी है कि चींटियां ऐसे मुकाम पर अपना सूराख बनाती हैं जो बुलन्द हो ताकि पानी की रौ वहां तक पहुच कर उन्हें गर्क न कर दे। मगर ये सब बातें बगैर अक्ल व फिक्र के हैं और एक फितरी व कुदरती बातें हैं जो उन की मसलहत के वास्ते खुदाए अज्जोज़ल की मेहरबानी से उन की खिलकत में दाखिल कर दी गयी हैं।’  

जानवर किस तरह अपना पेट भरने के लिये शिकार करते हैं, इसपर उनके कुछ कौल तौहीद मुफ़ज़्ज़ल में इस तरह हैं :
लोमड़ी, जब उसे खुराक नहीं पहुंचती तो अपने को मुरदा बना लेती है और अपना पेट फुला लेती है। इसलिए कि परिन्दे उसे मुरदा समझें। और जैसे ही परिन्दे उसको नोचने और खाने के लिये उसपर गिरते हैं, फौरन उनपर हमला करती और पकड़ लेती है।
दुल्फीन (डाल्फिन) जब परिन्दों का शिकार चाहता है तो उसकी इस मामले में ये तदबीर होती है कि पहले मछली को पकड़ कर मार डालता है। ताकि वह पानी पर उभरी रहे, और खुद उसके नीचे छुपा रहता है और पानी को उछालता रहता है कि कहीं उसका जिस्म न दिखाई दे। जब कोई परिन्दा उस मरी हुई मछली पर गिरता है तो उसे उचक कर शिकार कर लेता है।
उस जानदार को देखो जिसे लैस (शेर) कहते हैं और आम लोग उस को मक्खियों का शेर कहते हैं। ये एक किस्म की मकड़ी है जो मक्खियों का शिकार करती है। तुम देखोगे जब उसे मक्खी का एहसास होता है कि उस के क़रीब आयी, तो देर तक उसे छोड़े रखती है गोया खुद एक मुरदा चीज़ है जिसमें कुछ हरकत ही नहीं। जब मक्खी को मुतमईन पाती है और खुद से उस को गाफिल देखती है तो निहायत आहिस्ता आहिस्ता उस की तरफ चलती है। जिस वक्त इतनी करीब पहुंच जाती है कि उसे पकड़ सके तब उसपर जस्त लगाकर पकड़ लेती है और फिर इस तरह उसके तमाम जिस्म से चिमटती है कि कहीं छूट न जाये और इतनी देर तक उसको मज़बूत थामे रहती है कि उसे महसूस हो जाता है कि मक्खी अब कमज़ोर हो गयी है और हाथ पाँव उसके ढीले हो गये। फिर मुत्वज्जे होती है और उसे किसी महफूज़ मुकाम पर ले जाकर अपनी गिज़ा बनाती है और उसी के ज़रिये से उसकी हयात है।
लेकिन आम मकड़ी, तो वह जाला तनती और उसे मक्खियों के शिकार का जाल और फन्दा बनाती है और खुद उसके अन्दर छुप कर बैठ जाती है। ज्योंही मक्खी उसमें फंसती है, उसको लपक कर दम बदम काटना शुरू कर देती है। उसकी जिंदगी इसी तरह बसर होती है।

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