Saturday, July 11, 2020

इम्यून सिस्टम के बारे में बताया इमाम हज़रत अली (अ.) ने

कोरोना महामारी के इस वक्त में जो चीज़ सबसे ज़्यादा सुनने को मिलती है वो है जिस्म का इम्यून सिस्टम। इस वक्त यही एक चीज़ है जो इस बीमारी को मात दे रही है। ये इम्यून सिस्टम क्या है? दरअसल न सिर्फ इंसानी जिस्म बल्कि दूसरे जानदारों के जिस्म में भी कुछ ऐसे सिस्टम मौजूद होते हैं जो बाहरी हमलों यानि बीमारियों के जरासीमों (बैक्टीरिया, वायरस वगैरा) से जिस्म की हिफाज़त करते हैं। ये जिस्म के लिये खतरनाक जरासीमों की पहचान करते हैं और उनके जिस्म पर असर करने से पहले ही उन्हें खत्म कर देते हैं। हमारे ऊपर न जाने कितनी बीमारियों के वायरस या बैक्टीरिया व दूसरे माइक्रोआर्गेनिज़्म हमला करते रहते हैं लेकिन जिस्म का हिफाज़ती सिस्टम उन्हें असरअंदाज़ नहीं होने देता। 

इम्यून सिस्टम की खोज अट्ठारहवीं सदी की मानी जाती है। उस ज़माने में पियरे लुइस नाम के साइंटिस्ट ने देखा कि कुछ कुत्तों और चूहों पर ज़हरीले साँपों के काटने का कोई असर नहीं होता। उसने अंदाज़ा लगाया कि इनके जिस्म के अन्दर कोई ऐसा सिस्टम है जो इस ज़हर का तोड़ है। 

बाद में लुइस पाश्चर ने बताया कि बदन में बीमारियों के लिये निहायत महीन कीड़े, जर्म या जरासीम ज़िम्मेदार होते हैं। उसने बताया कि इस तरह के जरासीम साँस लेने में या खाते पीते वक्त हवा, पानी या खाने के ज़रिये हमारे जिस्म में पहुंच जाते हैं और बीमारियों को फैलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जिस्म में एक मज़बूत हिफाज़ती सिस्टम (Immunological System) पाया जाता है जो इन जरासीमों के खिलाफ लड़ता रहता है। अगर कभी ये सिस्टम कमज़ोर पड़ जाता है या किसी नये जरासीम की पहचान नहीं कर पाता तो वहीं से इंसान बीमारी में घिर जाता है। लुइस पाश्चर ने जिस्म के इम्म्यून सिस्टम का गहराई के साथ अध्ययन किया और ये पाया कि जब कोई बैक्टीरिया या वायरस वगैरा पहली बार जिस्म में दाखिल होता है तो यह सिस्टम उसकी पहचान अपनी मेमोरी में स्टोर कर लेता है और उसके खिलाफ एण्टीबाडीज़ डेवलप कर लेता है। जिससे कि दोबारा वो बैक्टीरिया या वायरस कभी दाखिल हो जाये तो इम्म्यून सिस्टम तुरंत उसे पहचान कर उसे खत्म कर दे। इसी फैक्ट का इस्तेमाल करके वैक्सीन बनायी जाती है। वैक्सीन दरअसल जिंदा या मुर्दा बैक्टीरिया या वायरस की कोई कमज़ोर हालत होती है। जिसे जिस्म में दाखिल कराया जाता है। इससे जिस्म में उस खास जरासीम के लिये इम्म्यूनिटी डेवलप हो जाती है। और आगे जब भी उस तरह के जरासीम का कोई खतरनाक हमला होता है तो जिस्म का सिस्टम उसके खिलाफ लड़ लेता है। 

अब एक सवाल पैदा होता है क्या अट्ठारहवीं सदी से पहले दुनिया इम्यून सिस्टम के बारे में जानकारी रखती थी? हज़ार साल पुरानी किताब नहजुल बलाग़ा का एक बयान इसका जवाब हाँ में देता है। 

इमाम हज़रत अली का ये बयान खुत्बा नंबर 81 के तौर पर इस किताब में दर्ज है और इसमें कहा गया है, ‘उसने तुम्हारे लिये कान बनाये ताकि ज़रूरी और अहम चीज़ों को सुनकर महफूज़ रखें और उसने तुम्हें आँखें दी हैं ताकि वह कोरी व बे बसरी से निकल कर रोशन व ज़ियाबार हों और जिस्म के मुख्तलिफ हिस्से ...... अलावह दीगर बड़ी नेमतों और एहसानमन्द बनाने वाली बख़्शिशों और सलामती के हिसारों के।’ इमाम अली(अ.) के इस बयान के आखिरी अलफाज़ पर गौर करें - ‘और सलामती के हिसारों के....’। इंसानी जिस्म के बारे में बताते हुए यहां पर इमाम फरमा रहे हैं कि हमारे जिस्म की सलामती के लिये परवरदिगार ने कुछ हिसार यानि घेरे ( Protection covers ) भी अता किये हैं। 

क्या मतलब है इन घेरों का? क्या हमारे जिस्म पर कछुए की तरह कोई कवच है? या हमारी खाल गेंडे की तरह सख्त है? या हाथी की तरह मोटी है? जिसपर सर्दी, गर्मी या चोट का कोई असर नहीं होता?
लेकिन हमारे जिस्म की न तो खाल मोटी है और न ही अल्लाह ने हमें कोई कुदरती कवच बख्शा है। तो फिर इमाम अली(अ.) के ‘सलामती के हिसार’ का क्या मतलब हुआ? साफ है कि इनसे इमाम का मतलब इम्यून सिस्टम ही था।

जिस्म का ये हिफाज़ती सिस्टम कितना अहम है इसका पता एड्स जैसी बीमारियों में चलता है, जब ये घेरा टूट जाता है। उस वक्त एक मामूली वायरस या बैक्टीरिया भी जानलेवा साबित होता है। जिस्म का यही हिफाज़ती सिस्टम है ‘सलामती का हिसार’ जिसकी तरफ साइंस ने ध्यान दिया अट्ठारहवीं सदी में, यानि इमाम अली(अ.) के बयान के पूरे तेरह सौ साल बाद।

जिस्म का हिफाज़ती सिस्टम ऐसा हैरतअंगेज़ सिस्टम है जो माबूद ने न सिर्फ इंसानों को बल्कि हर एक जानदार को बख्शा है। अगर ये न हो तो शायद इंसान एक दिन भी ज़िन्दा न रह सके। यह सिस्टम खामोशी से लगातार अपना काम करता रहता है और हमें जिन्दा व सेहतमन्द रखता है। अट्ठारहवीं सदी से पहले दुनिया इस सिस्टम से पूरी तरह अंजान थी लेकिन इमाम अली(अ.) की इमामत की नज़र इसे भरपूर तरीके से देख रही थी और सामने वाले को ‘....और सलामती के हिसारों’ जैसी आम फहम ज़बान में बता भी रही थी। ज़रूरत थी तो बस इमाम(अ.) के अलफाज़ पर गौर करने की।

इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : 
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म
लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी
प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी
ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :

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