Thursday, July 6, 2023

इमाम हज़रत अली (अ) के खुत्बा अल बयान के कुछ अंश

 इमाम हज़रत अली (अ) खुत्बा अल बयान में अपनी फ़ज़ीलत इस तरह बयान करते हैं 

* मैं वह हूँ जिसके बारे में रसूल (स) ने फ़रमाया मैं इल्म का शहर हूँ और अली (अ) उसका दरवाज़ा हैं। 
* मैं हर चीज़ की हक़ीक़त से खबरदार और आगाह हूँ। 
* मैं वह हूँ कि ख़िलक़त के आदाद व गिनती को शुमार करता और मालूम करता हूँ अगर चे वह बहुत हैं यहाँ तक कि अल्लाह तआला की तरफ उनको पहुंचाऊं। 
* मैं हूँ अली इब्ने अभी तालिब जिसकी आवाज़ जंगों में बिजली की आवाज़ों की तरह है। 
* मैं ज़मीन में खुदा का वली हूँ और अम्र खुदा मेरे सुपुर्द किया गया है 
*  मैं वह नूर हूँ कि जिस से मूसा (अ) ने रौशनी तलब की तो हिदायत पाई  
* मैं वह हूँ की मैंने सातों आसमानों को बुलाया। उन्होंने मेरे हुक्म को क़ुबूल किया।  मैंने उनको हुक्म दिया और वह क़ायम हो गये। 
* मैं वह हूँ कि जिसके लिये आफ़ताब को दो बार पलटाया गया। 
* मैं हूँ चीज़ों का ज़ाहिर करने वाला और मौजूदात का पैदा करने वाला जिस तरह चाहूँ। 
* मैं हूँ वह की पहली उम्मतों में से हज़ार उम्मत ने मेरी विलायत का इंकार किया पस अल्लाह तआला ने उनको मस्ख कर दिया। 
* मैं वह हूँ कि सब्ज़ी मलकूत में खड़ा हूँ जहाँ रूहें हरकत करती हैं।  वहां मेरे सिवा कोई हरकत करने वाला नहीं।  
* मैं हूँ वह जो जो दुनिया की हर लुग़त व ज़बान में कलाम करता है।

Sunday, February 5, 2023

अल्लाह के वजूद के निशानात

इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के खुत्बा 49 में फरमाते हैं ‘वह (अल्लाह) ज़ात ऐसी है कि जिसके वजूद के निशानात इस तरह उसकी शहादत देते हैं कि इंकार करने वाले का दिल भी इक़रार किये बगैर नहीं रह सकता।’

कायनात के बनने में लोग तरह तरह की थ्योरीज़ पेश करते हैं। जो अल्लाह को मानते हैं उनकी बात अगर छोड़ दी जाये तो इवोल्यूशन थ्योरी, बिग बैंग, स्टेडी स्टेट थ्योरी, ग्रेंड डिज़ाईन जैसी बहुत सी थ्योरीज़ साइंस पेश करती है। कुछ का मानना है कि यूनिवर्स खुद ही अपने को बनाता बिगाड़ता रहता है, तो कुछ मानते हैं कि फिज़िकल लॉज़ (Physical Laws) यूनिवर्स को बनाने में अहम किरदार निभाते हैं। अल्लाह के वजूद से इंकार करने वाले भी कहीं न कहीं किसी ताकत या Reason को इस कायनात के बनाने में शामिल मानते हैं।
इमाम जाफर सादिक(अ.) ने फरमाया कि खुदा वन्दे तआला का इंकार जहालत की पहचान है और आलिम ज़रूर खुदा पर ईमान रखता है। अगर चै वह खालिक के लिये खुदा के अलावा और किसी नाम को चुन लेता है।
आज के दौर में भी जो लोग खुदा के वजूद से इंकार करते हैं, उनमें से कोई इवोल्यूशन (Evolution) को खुदा मानता है। कुछ लोग ग्रेविटॉन (Graviton) को ग्रैविटेशनल फोर्स पैदा करने वाला ज़र्रा मानते हैं। इन लोगों के मुताबिक दुनिया का ख़ुदा जो इस कायनात का पैदा करने वाला और इस कायनात का मुहाफिज़ है वह ग्रैविटॉन है, क्योंकि कायनात में ग्रैविटॉन से ज़्यादा ताकतवर और तेज़ रफ्तार कोई चीज़ नहीं। ग्रैविटॉन 1 सेकंड में कायनात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचता है फिर वापस आ जाता है, जिसका फासला वैज्ञानिकों के मुताबिक तीन हज़ार मिलियन लाइट इयर था। मौजूदा डिस्कवरीज़ इस फासले को और ज्यादा बताती हैं। इस वक्त के हिसाब के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा फासले की चीज़  जो हम रोशनी की किरण के ज़रिये देख सकते हैं हमारी आँखों से इतने मीटर दूर है कि चार के आगे 26 ज़ीरो जोड़ दिये जायें। इस अधिकतम फासले के गोले को नाम दिया गया है हब्बल वोल्यूम।
मौजूदा दौर में साइंसदां एक नये पार्टिकिल की दरियाफ्त की संभावनाएं बताते हैं जिसका नाम उन्होंने हिग्स बोसोन रखा है। क्वांटम फिजिक्स के माहिर दुनिया के तमाम पार्टिकिल्स को हिग्स बोसोन से बना हुआ मानते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी पदार्थ एटम्स से मिलकर बना होता है। और इन एटम्स का ज्यादातर द्रव्यमान उनके मरकज़ में मौजूद प्रोटॉनों व न्यूट्रानों की वजह से होता है। ये ज़र्रे मैटर के फंडामेन्टल पार्टिकिल्स कहलाते हैं। इनमें से हर पार्टिकिल यानि प्रोटॉन या न्यूट्रान तीन सब पार्टिकिल्स से मिलकर बना होता है। जिन्हें क्वार्क (Quark) कहते हैं। इन क्वार्कों का द्रव्यमान भी नापा जा चुका है।
मज़े की बात ये है कि जब तीनों क्वार्कों का कुल द्रव्यमान लिया जाता है तो वह उस फंडामेन्टल पार्टिकिल से बहुत ही कम यानि उसका एक फीसद आता है जिस पार्टिकिल को वे क्वार्क मिलकर बनाते हैं। यानि ज़र्रे का निन्यानवे फीसद द्रव्यमान किसी और वजह से पैदा होता है।
अब क्वांटम नज़रिया ये बताता है कि यह द्रव्यमान एक ताकत के ज़रिये पैदा होता है जो क्वार्कों को आपस में जोड़ती है। यह ताकत है उच्च नाभिकीय बल (Strong Nuclear Force). यह ताकत पैदा होती है मायावी (Virtual) ज़र्रात के एक मैदान के ज़रिये जिन्हें ग्लूऑन नाम दिया गया है। ये ज़र्रे मैदान में कहीं भी लम्हे भर के लिए ज़ाहिर होते हैं, और फिर फौरन ही गायब हो जाते हैं। इसी को कहते हैं क्वांटम थरथराहट (Quantum Fluctuation)। इस थरथराहट से पैदा हुई एनर्जी प्रोटॉन और न्यूट्रान के द्रव्यमान में जुड़ जाती है। चूंकि ग्लूआन का द्रव्यमान जीरो होता है, यानि ये मैटर के जर्रे नहीं होते। इनमें सिर्फ एनर्जी होती है। यही एनर्जी ये फंडामेन्टल पार्टिकिल के द्रव्यमान में जोड़कर खुद गायब हो जाते हैं। एक ग्लूआन कितना द्रव्यमान जोड़ता है, यह मालूम होता है आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण से (E=mc2)। जहां E ग्लूआन के ज़रिये पैदा हुई एनर्जी है और m फंडामेन्टल पार्टिकिल के द्रव्यमान में बढ़ोत्तरी है।
अब एक सवाल और पैदा होता है। जिस तरंह प्रोटान और न्यूट्रान के द्रव्यमान में मैटर पार्टिकिल क्वार्क और मायावी कण ग्लूआन शामिल है, क्या इसी तरंह क्वार्क भी मायावी कणों से मिलकर बने हैं? जिनका द्रव्यमान ज़ीरो हो और वे सिर्फ एनर्जी देकर गायब हो जाते हैं? साइंसदानों ने इसका जवाब सकारात्मक दिया है। और इन मायावी कणों को नाम दिया गया है हिग्स बोसॉन (Higgs Boson)।
इस तरह हम देखते हैं कि खुदा से अलग हटकर सोचने वाले तरह तरह की थ्योरीज़ पर विचार कर रहे हैं और किसी न किसी तरीके से ऐसी ताकत को कुबूल करते हैं जो इस पूरी कायनात को बनाने के लिये जिम्मेदार है कभी वो उसे पार्टिकिल की शक्ल में मानते हैं तो कभी फिजिकल लॉज़ की शक्ल में। यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के बयान से ज़ाहिर हो रही है।
इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : 
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म 
ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :

कुरआन की शान्ति का पैगाम देती हुई आयतें

 [2:256]  दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और अल्लाह ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती और अल्लाह सब कुछ सुनता और जानता है

[2:272] (ऐ रसूल) उनका मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाना तुम्हारा काम नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ़ रास्ता दिखाना है) मगर हॉ अल्लाह जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे 
[7:56] (लोगों) अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ाकर और चुपके - चुपके दुआ करो  वह हद से तजाविज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और ज़मीन में असलाह के बाद फसाद न करते फिरो और (अज़ाब) के ख़ौफ से और (रहमत) की आस लगा के अल्लाह से दुआ मांगो
[2:11-12] और जब उनसे कहा जाता है कि मुल्क में फसाद न करते फिरो (तो) कहते हैं कि हम तो सिर्फ इसलाह करते हैं. ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग फसादी हैं लेकिन समझते नहीं .
[88:21-22] तो तुम नसीहत करते रहो तुम तो बस नसीहत करने वाले हो. तुम कुछ उन पर दरोग़ा तो हो नहीं
[109:5-6] और जिसकी मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत करने वाले नहीं. तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन
[9:6] और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं 
[4 : 80] जिसने रसूल की इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ खयाल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है
[6 : 107] और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो
[10 : 99&100] और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ हालॉकि किसी शख्‍स को ये इखतियार नहीं कि बगै़र अल्लाह की मर्जी ईमान ले आए और जो लोग अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लोगों पर अल्लाह गन्दगी डाल देता है 
[11 : 28] (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ
[16 : 82] तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है
[17 : 53&54] और (ऐ रसूल) मेरे (सच्चे) बन्दों (मोमिनों से कह दो कि वह (काफिरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख्त कलामी न करें) क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फसाद डलवाता है इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है 
[21 : 107 & 109] और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा-----फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है
[22 : 67] इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ बुलाए जाओ
[24 : 54] (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज़ है
[36 : 16&17] तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीन्न उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो) हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे अल्लाह का पहुँचा देना फर्ज़ है
[39 : 41] (ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरआन) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है  पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं
[42 : 6] और जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं अल्लाह उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो
[42 : 48] फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है
[64 :12] और अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो फिर अगर तुमने मुँह फेरा तो हमारे रसूल पर सिर्फ़ पैग़ाम का वाज़ेए करके पहुँचा देना फर्ज़ है
[60 : 8&9] जो लोग तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है. अल्लाह तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई की और तुमको तुम्हारे घरों से निकाल बाहर किया  और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग ज़ालिम हैं 
[4 : 80] जिसने रसूल की इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ खयाल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है
[6 : 107] और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो.
[5.32]हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो “शख्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज़्यादतियॉ करते रहे
[5:33] जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएँ या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाएँ या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुयी और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है
इसका मतलब साफ़ है की अगर कोई तुमसे झगडा नहीं कर रहा है तो तुम्हें उससे झगड़ने या उसे तकलीफ पहुंचाने का कोई हक नहीं. मोमिन मियाँ ने दीने इस्लाम लगता है किसी तालिबानी मुल्ला से पढ़ा है, वरना वह ऐसी बातें हरगिज़ न कहते. 
अब बात करते हैं सुलह की जो मोहम्मद (स.अ.) ने मक्के के काफिरों से की थी, उस सुलह के नियमों की अवहेलना मक्के वाले खुले आम कर रहे थे और मुसलमानों को परेशान कर रहे थे. उसके बाद सूरे तौबा नाजिल हुई. <b>हर  कानून में IF - Then होता है.</b>  मोमिन मियाँ इस सूरे की 1, 5, 23 आयत तो पढ़ रहे हैं लेकिन आयत नं 12, 13  और 6 पढना भूल गए या टाल गए,
[तौबा आयत नं 12] और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आएँ.
[तौबा आयत नं 13] (मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला 

Tuesday, February 15, 2022

इमाम अली और मिस्र के पिरामिड्स की उम्र

इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इल्म व हिकमत के बारे में पैग़म्बर मुहम्मद(स.) फरमाते हैं कि मैं शहरे इल्म हूं और अली उसका दरवाज़ा हैं। और खुद इमाम अली(अ.) फरमाते हैं कि मैं ज़मीन से ज़्यादा आसमान के रास्तों को जानता हूं। इस इल्म की एक मिसाल मेजर इफ्तिखार हैदर ज़ैदी कि किताब ‘वजूद ए कायनात मौला अली और ग़दीरे खुम (पेज 237) में मिलती है। जब इमाम अली ने मिस्र के पिरामिड्स की उम्र का मसला एस्ट्रोनोमी की मदद से हल किया। किताब के मुताबिक साहबे ग़यासुल्लुग़ात अहराम मिस्र की बहस में तहरीर फरमाते हैं कि हज़रत इमाम अली (अ.) से जब किसी ने मिस्र के अहरामों (Pyramids) की उम्र के बारे में सवाल किया तो आपने पूछा - उसपर कोई क़ुत्बा या तस्वीर है? तो पूछने वाले ने कहा - जी हाँ एक गिद्ध की तस्वीर है जो अपने पंजों में केकड़ा दबाये हुए है। ये सुनकर इमाम(अ.) ने फरमाया, मामला साफ है, मिस्र के पिरामिडों की बुनियाद उस वक्त रखी गयी जब ‘सितारा नुस्र’ बुर्ज सरतान में था। ‘नुस्र’ दो हज़ार साल में एक बुर्ज से दूसरे बुर्ज में जाता है और आजकल (यानि इमाम अली(अ.) के ज़माने में) बुर्ज जदी में है। और इस तरह उन इमारतों की बुनियाद बारह हज़ार साल पहले रखी गयी।

मौजूदा दौर तहक़ीक़ात के मुताबिक अहराम मिस्र की उम्र 3000-4000 के लगभग बतायी जाती थी, लेकिन अब कुछ नयी तहक़ीकात में इस थ्योरी को रिजेक्ट करते हुए गेरी कैनन और मैलकम हटन जैसे हिस्टोरियन पिरामिड्स की उम्र 12500 साल के लगभग बताते हैं। यानि आइस एज से भी पहले।

Thursday, August 19, 2021

The Secret of Kaaba

 


Alfred Wegener was a German scientist who presented a theory in 1915 for the first time that all the continents are sliding from their place with time. And millions of years ago, all these continents were presented as a single landmass, joint together. And this supercontinent was surrounded by the great ocean. This result was drawn by Wegener by studying the maps of the continents. He said that when the edges of different continents are joined together, they fit as if someone pulled them apart. So it is possible that they may have joint each other millions of years ago and later drifted apart. His theory of continent drift was new to the world and most of the scientists did not accept his point, but when data analysis was done further through new techniques in 1950, his words proved to be true. This merged supercontinent was named as Pangea. Later it was also speculated that Pangea was also formed by the union of some earlier continents. Their names were given Gondwana and Euremerica. In this way, the formation and deformation of new from old continents is a cyclic process.

 

But the most important thing that is found in the shifting of the continents is that the age of the Earth has been estimated at about 4-5 billion years. The upper crust of the Earth on which the living beings lying and on which the sea and dry places are present, this entire crust is in the form of plates (called tectonic plates). Different plates are constantly moving. Because of their shifting, continents are shifting. And when these continents presented in the form of single supercontinent, there was a centre of that entire dry land. That was the same place where today is the Kaaba Sharif and Mecca Mukarrama.

 

In such a situation, we can remember some very old hadiths of Islam, which seem to narrate this fact, for which the science before the twentieth century was in the dark.

According to the Hadith recorded in the book ‘ElalushSharaa’ of Sheikh Sudduk (A.R.), Hazrat Imam Hasan bin Ali bin Abi Talib narrates that once a few Jewish Messengers came to met Prophet Muhammad (S.A.) and asked many questions. One of them was that why was the name of Kaaba named Kaaba? Rasool (S.A.) answered because it is the markaz (centre) of the world.

 

According to another hadith recorded in the same book, Imam Muhammad Baqir (A.S.) said that Allah Ta'ala created the Kaabah before living creatures. After this God created the land and laid the ground from under the Kaaba.

According to Usool-e-Kafi vol 124 Hadith 17, Imam Muhammad Baqir (A.S.) narrates that the Messenger of Allah (s.a.) said to me that the twelve Imams to my descendants and you, Ali, all these are pegs and mountains for this land so that the land with its inhabitants lying in the stable state. When the twelfth from my descendants will no more, then the land will sink down with all the inhabitants then they will not get breather.

These hadiths are presenting such amazing inquisitions, whose reality can be understood only by the current science. The Kaaba is the centre of the world in many ways. The special thing that is observed in the map of the super continent Pangea millions of years ago is that Mecca i.e. Kaaba is seen in its center. At the same time, scientists have estimated that after about two hundred billion years, all the continents will be united once again. They also prepared a predicted map of it. And the surprising thing is that in that map once again the Kaaba (Mecca) is visible in the center. In this way it is almost proved that every time the land is united or separated, its centre has always remained the Kaaba. The same thing comes out in the research of Dr. Saleh Muhammad, a geologist at Baghdad University. According to Dr. Saleh, the tectonic plates of land on which the oceans and continents are present, are constantly changing their places at a very slow rate. At the same time, their shape is also changing. Some of them keep on joining together and some break and make new plates. Sometimes their speed becomes erratic, as a result of which floods and tsunamis arise. Now it is a scientific fact that all the deteriorating plates are moving around a centre i.e. Arabian plate at a sluggish speed i.e. doing Tawaaf. And the centre of this Arabian plate is Kaaba.

 

If a circle is drawn, including the old civilizations that were arose in the world, which includes Mesopotamia, Indus Valley, Roman and African civilizations, then its centre tends towards Mecca Mukarrama and Kaaba. All the old civilizations developed within a radius of 8000 km from this center.

 

If the radius of 13000 km is drawn considering the Kabe as the center, then the cities of America, Australia and all the continents are included in it.

A question that remains a puzzle for scientists is that from where did the formation of these continents begin? Some might say that these great lands may have always existed. But it's not like that. According to the research done by the scientists, long ago the earth was a ball of fire which was revolving around the sun. Then how did it change into the shape of today's earth, of which 71 percent is the water? Where did so much water come from on the Earth? it is an unsolved puzzle for the scientists.

According to some scientists, water was always present in the form of steam at the Earth. Whereas according to some, this water came on the earth due to the collision of the icy comet. This water cooled the whole earth and also spread everywhere in the form of ocean through heavy rain. At that time there was no existence of dry land and no continent was present. Then through a process called mantle convection, high cores were formed in the middle of the ocean, around which continents were formed due to the gradual solidification of rocks.

Science is currently silent about which part of the land the first core was formed. But the way that the Earth's plates are present around the Arabian Plates and other scientific data is being analysed, it seems that the first core was formed at the same place where the Kaaba is present now. Therefore, the scientific data is in favour of the hadith that ' After this God created the land and laid the ground from under the Kaaba '

 

The way that different plates of the Earth exist and connected to each other and the material of the earth underneath them is in molten and hot condition, it is certainly surprising that those plates are stable and is completely supporting the hadith of Rasool (S.A.) 'the twelve Imams to my descendants and you, Ali, all these are pegs and mountains for this land so that the land with its inhabitants lying in the stable state. When the twelfth from my descendants will no more, then the land will sink down with all the inhabitants then they will not get breather.' Another thing is evident from this that ultimately time will arrive when the plates of the earth will not remain in its place and will sink and the continents will collapse they will not exist further.

And finally a special thing about Kaaba. The south pole of the Earth's magnetic field is currently in the direction of Canada. In this way the equatorial line of the magnetic field passes through Mecca i.e. Kaaba. The vertical component of the magnetic field is zero everywhere on this line. In this way we can say that Kaaba is lying in the middle of the magnetic field. Definitely, the Kaabe has played such an important role in relation to the affairs of the land inhabitants that performing tawaaf around it is a great worship.

Friday, May 28, 2021

इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) और कायनात की इंटेलिजेंट डिज़ाईन 

 दुनिया के बनने के सिलसिले में पूरी दुनिया के लोग जिन थ्योरीज़ को पेश करते हैं उन्हें दो कैटेगरीज़ में रखा जा सकता है।  पहली है इवोल्यूशन और दूसरी है इंटेलिजेंट डिज़ाईन। पहली थ्योरी क्रियेटर के अस्तित्व से इंकार करती है और दूसरी क्रियेटर को लाज़मी मानती है।  इंटेलीजेंट डिज़ाईन के बारे में चौदह सौ साल पहले एक वैज्ञानिक ने मज़बूत दलीलें पेश की थीं जो तौहीद मुफ़ज़्ज़ल के नाम से मशहूर है. ये महान वैज्ञानिक थे  इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) जिन्होंने अरब की पहली यूनिवर्सिटी क़ायम की थी और चार हज़ार शागिर्दों को अपने ज्ञान से सैराब किया।


तौहीद मुफज़्ज़ल यूनिवर्स की इण्टेलिजेंट डिज़ाईन की बात करती है और तमाम दलीलों के ज़रिये साबित करती है कि सब कुछ सिस्टेमैटिक है और इसलिए इसे बनाने वाली एक सुपरपावर मौजूद है।
इस किताब में होंठों के बारे में इमाम फरमाते हैं,
‘होंठों के ज़रिये से इंसान पानी को चूस सकता है ताकि जो पानी पेट के अन्दर जाये वह बाअन्दाजा मुअय्यन (एक खास अन्दाज़े के साथ) और बिल क़स्द (जितनी ज़रूरत है) जाये न कि ग़रग़राता हुआ बह जाये, जिससे पीने वाले के गले में फंदा न लगे और जोर से बह कर जाने के सबब से किसी अन्दरूनी हिस्से में खराश न पड़ जाये। फिर अलावा इसके ये दोनों होंठ दरवाज़े के मुशाबिह हैं जो मुंह को ढांके रहते हैं जब आदमी चाहे बन्द करे।’’
 कानों के बारे में इमाम फरमाते हैं , कान का भीतरी हिस्सा कैदखाने की तरह क्यों टेढ़ा मेढ़ा बनाया गया है? इसीलिये न कि उसमें आवाज़ जारी हो सके और उस पर्दे तक पहुंच जाये जिससे आवाज़ सुनाई देती है और इसलिए कि हवा की तेज़ी का ज़ोर टूट जाये ताकि सुनने के पर्दे में खराश न डाले।’ यानि कानों की भीतरी बनावट टेढ़ी मेढ़ी होने के पीछे खास राज़ है, वह यह कि हवा का दबाव कान के पर्दे पर न पड़े और खालिस आवाज़ ही कान के पर्दे तक पहुंचे क्योंकि यह पर्दा बहुत नाज़ुक होता है और हवा का सीधा असर इसको चोट पहुंचा सकता है।

किताब एललुश-शराये में दर्ज हदीस के मुताबिक इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने आँखों में नमकीनी, कानों में तल्खी, नाक में तरी और मुंह में शीरनी की वजह बताते हुए फरमाया कि अल्लाह तआला ने बनी आदम की दोनों आँखों को दो चरबी के टुकड़ों से बनाया और उनमें नमकीनियत रख दी। अगर ऐसा न होता तो वह पिघल कर बह जातीं। और अगर उनमें कोई धूल का ज़र्रा पड़ जाता तो बहुत तकलीफ देता। आँखों में कोई ज़र्रा या तिनका पड़ जाता है तो नमकीनी उसको निकाल कर फेंक देती है। और कानों में जो तल्खी रखी है वह दिमाग के लिये एक परदा है। कान में अगर कोई कीड़ा मकोड़ा पड़ जाये तो वह फौरन उसमें से निकल भागने की कोशिश करता है। अगर ये तल्खी न हो तो वह दिमाग तक पहुंच जाये। और नाक में तरी को भी दिमाग की हिफाज़त के लिये रखा। अगर इसमें तरी न हो तो दिमाग गर्मी से पिघल कर बह जाये। और साथ ही ये तरी दिमाग से हर फासिद माददे को बाहर कर देती है। और मुंह में शीरनी रखी ये बनी आदम पर अल्लाह का एहसान है ताकि वह खाने पीने की लज्ज़त हासिल कर सके।

इस तरह हम देखते हैं कि कानों में मौजूद माद्दा जो आम आदमी की नज़र में गंदगी से ज्यादा कुछ नहीं दरअसल बहुत ही अहम है और कानों की हिफाज़त करता है। इसी तरह नाक की गंदगी भी हकीकत में निहायत अहम है। आँखों के आँसुओं की अहमियत तो जग जाहिर है ही। मतलब ये हुआ कि जिस्म का कोई भी हिस्सा यहां तक कि जिस्म से निकलने वाली गंदगी जो लोगों की नज़र में बेकार सी शय है और वो यही समझते हैं कि यह किसी मशीन से निकलने वाले वेस्ट मैटीरियल की तरह है, हकीकत में ऐसा नहीं है बल्कि ये वेस्ट मालूम होने वाला मैटीरियल भी जिस्म के लिये उतना ही ज़रूरी है जितना कि आँखें, और हाथ पैर वगैरा।
 
जानवरों के बारे में भी इमाम इंटेलिजेंट डिज़ाइन की बात करते हैं।  मसलन चीटियों के बारे में कहते हैं  ‘चींटी दाने हासिल करने के बाद उन को दरमियान से दो टुकड़े कर देती है कि कहीं ऐसा न हो कि ये दाने उनके सुराखों में पानी पाकर उग आयें और उनके काम के न रहें। और जब उन दानों को तरी पहुंच जाती है तो उनको निकाल कर फैला देती है ताकि खुश्क हो जायें। फिर ये भी है कि चींटियां ऐसे मुकाम पर अपना सूराख बनाती हैं जो बुलन्द हो ताकि पानी की रौ वहां तक पहुच कर उन्हें गर्क न कर दे। मगर ये सब बातें बगैर अक्ल व फिक्र के हैं और एक फितरी व कुदरती बातें हैं जो उन की मसलहत के वास्ते खुदाए अज्जोज़ल की मेहरबानी से उन की खिलकत में दाखिल कर दी गयी हैं।’  

जानवर किस तरह अपना पेट भरने के लिये शिकार करते हैं, इसपर उनके कुछ कौल तौहीद मुफ़ज़्ज़ल में इस तरह हैं :
लोमड़ी, जब उसे खुराक नहीं पहुंचती तो अपने को मुरदा बना लेती है और अपना पेट फुला लेती है। इसलिए कि परिन्दे उसे मुरदा समझें। और जैसे ही परिन्दे उसको नोचने और खाने के लिये उसपर गिरते हैं, फौरन उनपर हमला करती और पकड़ लेती है।
दुल्फीन (डाल्फिन) जब परिन्दों का शिकार चाहता है तो उसकी इस मामले में ये तदबीर होती है कि पहले मछली को पकड़ कर मार डालता है। ताकि वह पानी पर उभरी रहे, और खुद उसके नीचे छुपा रहता है और पानी को उछालता रहता है कि कहीं उसका जिस्म न दिखाई दे। जब कोई परिन्दा उस मरी हुई मछली पर गिरता है तो उसे उचक कर शिकार कर लेता है।
उस जानदार को देखो जिसे लैस (शेर) कहते हैं और आम लोग उस को मक्खियों का शेर कहते हैं। ये एक किस्म की मकड़ी है जो मक्खियों का शिकार करती है। तुम देखोगे जब उसे मक्खी का एहसास होता है कि उस के क़रीब आयी, तो देर तक उसे छोड़े रखती है गोया खुद एक मुरदा चीज़ है जिसमें कुछ हरकत ही नहीं। जब मक्खी को मुतमईन पाती है और खुद से उस को गाफिल देखती है तो निहायत आहिस्ता आहिस्ता उस की तरफ चलती है। जिस वक्त इतनी करीब पहुंच जाती है कि उसे पकड़ सके तब उसपर जस्त लगाकर पकड़ लेती है और फिर इस तरह उसके तमाम जिस्म से चिमटती है कि कहीं छूट न जाये और इतनी देर तक उसको मज़बूत थामे रहती है कि उसे महसूस हो जाता है कि मक्खी अब कमज़ोर हो गयी है और हाथ पाँव उसके ढीले हो गये। फिर मुत्वज्जे होती है और उसे किसी महफूज़ मुकाम पर ले जाकर अपनी गिज़ा बनाती है और उसी के ज़रिये से उसकी हयात है।
लेकिन आम मकड़ी, तो वह जाला तनती और उसे मक्खियों के शिकार का जाल और फन्दा बनाती है और खुद उसके अन्दर छुप कर बैठ जाती है। ज्योंही मक्खी उसमें फंसती है, उसको लपक कर दम बदम काटना शुरू कर देती है। उसकी जिंदगी इसी तरह बसर होती है।

Sunday, May 2, 2021

इमाम हज़रत अली (अ.) - नायाब मोती 2

 इमाम हज़रत अली (अ.) का अपने गवर्नर के नाम सन्देश : लोगों से अख़लाक़ के साथ मिलना, उनसे नरमी का बर्ताव करना, बड़े दिल के साथ पेश आना, और सबको एक नज़र से देखना कि बड़े लोग तुमसे अपनी नाहक़ तरफ़दारी की उम्मीद न रखें और छोटे लोग तुमसे अद्ल व इन्साफ में उनके मुक़ाबले में नाउम्मीद न हो जायें  

... अल्लाह के बन्दों मौत और उसकी आमद से डरो. उसके लिये सरोसामान फ़राहम करो. वह आयेगी और एक बड़े हादसे और सानिहे के साथ आएगी जिसमें या तो भलाई ही भलाई होगी कि जिसमें बुराई का कभी गुज़र न होगा या ऐसी बुराई होगी कि जिसमें कभी भलाई का शायबा न होगा
(नहजुल बलाग़ा - खत 27)

Saturday, May 1, 2021

इमाम हज़रत अली (अ.) - नायाब मोती 1

 कभी कभी बीमारी दवा और दवा बीमारी बन जाया करती है - इमाम हज़रत अली (अ.)

दुनिया में बस इतना ही अपना समझो जिससे अपनी आख़िरत की मंज़िल संवार सको।  अगर तुम हर उस चीज़ पर जो तुम्हारे हाथ से जाती रहे वावैला मचाते हो तो फिर हर उस चीज़ पर रंज व अफ़सोस करो कि जो तुम्हें नहीं मिली - इमाम हज़रत अली (अ.)

(नहजुल बलाग़ा - खत 31 वसीयतनामा) 

Sunday, April 25, 2021

आक्सीजन के बारे में इमाम हज़रत अली(अ.) का बयान

 आक्सीजन के बारे में इमाम हज़रत अली(अ.) का बयान जो नहजुल बलाग़ा के खुत्बा - 131 मे इस तरह मौजूद है, ‘और तरोताज़ा शादाब दरख्त सुबह व शाम उसके आगे सर बसुजूद हैं और अपनी शाखों से चमकती हुई आग भड़काते हैं...’

इस जुमले पर गौर करने पर दो चीज़ें नज़र आती हैं। पहली ये कि इसमें शादाब दरख्तों के सुबह व शाम सजदे में होने का ज़िक्र है। और दूसरी ये कि इसमें उन दरख्तों की शाखों का चमकती हुई आग भड़काने का ज़िक्र है। यानि तरोताज़ा शादाब दरख्तों में कोई ऐसा अमल हो रहा है जो सुबह व शाम के वक्त कुछ अलग होता है और दिन के बाक़ी अवक़ात में अलग। और इस अमल से तरोताज़ा शादाब दरख्तों की शाखों से कोई ऐसी चीज़ बनती है जो चमकती हुई आग को भड़काती है।
अगर यहाँ इमाम(अ.) शादाब दरख्तों की बजाय सूखे दरख्तों की बात करते तो ये जुमला एक मामूली जुमला होता। क्योंकि सूखे दरख्तों से आग भड़कने की बात हर एक की समझ में आती है। लेकिन जब शादाब दरख्तों से चमकीली आग के भड़कने का ज़िक्र हो तो इस जुमले का राज़ बहुत गहरा हो जाता है। और कम से कम इमाम अली(अ.) के ज़माने की साइंस उस राज़ तक नहीं पहुंच पायी थी।
और वह राज़ है हरे पौधों में फोटोसिंथेसिस का और उसके ज़रिये आक्सीजन के बनने का। इमाम(अ.) के इस जुमले में फोटोसिंथेसिस के ज़रिये आक्सीजन के ही बनने का ज़िक्र हो रहा है।
लेकिन ये दोनों ही अमल उस वक्त रुके होते हैं या उनकी रफ्तार न के बराबर हो जाती है जब इंसान अल्लाह की इबादत में और खासतौर से सज्दे में सर रखे होता है। उस वक्त न तो वह अपनी ज़रूरत की चीज़ें हासिल करता है, न ही दूसरों की ज़रूरत की चीज़ें तैयार करता है। उसका ज़हन व जिस्म उस वक्त सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की इबादत में मशगूल होता है।
तरोताज़ा शादाब दरख्त भी दो तरह के अमल करते हैं। पहला तो ये कि ज़मीन से पानी व नाईट्रेट और हवा से कार्बन डाई आक्साइड लेते हैं। साथ में साँस लेने के लिये आक्सीजन लेते हैं। जबकि दूसरे अमल में सूरज की रोशनी में फोटोसिंथेसिस करते हुए आक्सीजन बनाकर हवा में छोड़ते हैं। जो कि हर तरह के जानदारों के सांस लेने में काम आती है। इसी फोटोसिंथेसिस के ज़रिये वह तमाम जानदारों के लिये फल व अनाज वगैरा की शक्ल में खाने की अशिया भी बनाते हैं। चूंकि दिन के वक्त सूरज की रोशनी ज़्यादा होती है लिहाज़ा फोटोसिंथेसिस का अमल भी तेज़ होता है। यानि दरख्त फिज़ा में आक्सीजन ज़्यादा छोड़ते हैं और इसकी बनिस्बत साँस लेने में कम आक्सीजन लेते हैं। जबकि रात में इसका उलटा होता है, क्योंकि सूरज की रोशनी की गैरमौजूदगी में फोटोसिंथेसिस का अमल रुक जाता है जबकि पौधों का साँस लेना जारी रहता है।
लेकिन पूरे रात दिन में दो वक्त ऐसे होते हैं जब पौधे जितनी आक्सीजन साँस के ज़रिये लेते हैं उतनी ही फोटोसिंथेसिस के ज़रिये छोड़ते हैं। ये दो वक्त हैं सुबह तड़के फजिर का वक्त और शाम को मग़रिब का वक्त। हम कह सकते हैं कि इन दोनों अवक़ात में न तो नबातात फिज़ा को कुछ देते हैं, न लेते हैं। साइंसदानों ने इसे नाम दिया है Compensation Point यह ठीक वही सिचुएशन है जैसे इंसानों में सज्दे व इबादत के वक्त होती है।
इस तरह इमाम अली(अ.) तरोताज़ा शादाब दरख्तों के सज्दे के ज़रिये न सिर्फ Respiration और Photosynthesis की तरफ इशारा कर रहे हैं बल्कि दिन के अलग अलग अवक़ात में इसके बदलने की भी बात कर रहे हैं।
इमाम(अ.) के बयान के दूसरे हिस्से से पूरी तरह साफ हो जाता है कि इमाम अली(अ.) न सिर्फ फोटोसिंथेसिस की बात कर रहे हैं बल्कि उस अमल में आक्सीजन मिलती है, इस राज़ को भी ज़ाहिर कर रहे हैं। जैसा कि इमाम(अ.) फरमा रहे हैं कि , ‘तरोताज़ा शादाब दरख्त .... अपनी शाखों से चमकती हुई आग भड़काते हैं ’ यानि हरे व शादाब दरख्तों की शाखों में जो अमल होता है उसके नतीजे में कोई ऐसी चीज़ मिलती है जो चमकती हुई आग को भड़का देती है।
साइंस ने दरियाफ्त किया है कि आग को भड़काने में फिज़ा में मौजूद एक ही गैस का रोल होता है, और वह गैस है आक्सीजन। और यही गैस फोटोसिंथेसिस के अमल के दौरान हरे पौधों की शाखों पर मौजूद पत्तियों से बनकर निकलती है। साइंसी तारीख के मुताबिक आक्सीजन की दरियाफ्त सन 1772 में शीले नाम के साइंसदाँ ने की। इससे पहले कोई इस गैस के बारे में नहीं जानता था। लैवोज़िये ने इसी ज़माने में दरियाफ्त किया कि आक्सीजन जलने में मदद करती है। बिना आक्सीजन के किसी भी चीज़ का जलना नामुमकिन है। फोटोसिंथेसिस की दरियाफ्त वाॅन हेल्मोन्ट ने सत्रहवीं सदी में की। लेकिन उसे यह पता नहीं चला था कि इस प्रोसेस में आक्सीजन पैदा होती है। इसे मालूम किया जोसेफ प्रीस्टले ने अट्ठारहवीं सदी में। जब आक्सीजन की दरियाफ्त उसी वक्त में हुई थी।
प्रीस्टले ने बताया कि पौधे सूरज की रोशनी में आक्सीजन पैदा करते हैं। लेकिन आक्सीजन पैदा करने की प्रोसेस यानि फोटोसिंथेसिस दरख्तों की पत्तियों में होती है, जो कि दरख्तों की शाखों पर होती हैं यह बीसवीं सदी में पहले दुनिया नहीं जानती थी। बीसवीं सदी में वान नील नाम के साइंसदाँ ने इस बारे में बताया।
लेकिन इन सब साइंसदानों से बहुत पहले इमाम अली(अ.) पाँचवीं-छठी सदी में साफ साफ बता रहे हैं कि शादाब दरख्तों की शाखों में (फोटोसिंथेसिस का) अमल होता है जिसमें चमकती हुई आग को भड़काने वाली शय (आक्सीजन) पैदा होती है। यहाँ पर इमाम(अ.) आक्सीजन की खासियत को भी साफ साफ बयान कर रहे हैं। आक्सीजन आग को भड़काती है यानि जलने में मदद देती है, लेकिन खुद आग को पैदा नहीं करती। यानि किसी और तरीके से पैदा हुई आग को आगे जलते रहने के लिये आक्सीजन काम आती है, लेकिन हम अगर चाहें कि सिर्फ आक्सीजन की मदद से आग को पैदा भी कर दें तो यह मुमकिन नहीं। अगर ऐसा मुमकिन होता तो पूरी दुनिया में हर तरफ आग ही आग नज़र आती क्योंकि फिज़ा में बीस फीसदी आक्सीजन ही होती है।

इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : 
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म
लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी
प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी, लखनऊ 
ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :

Thursday, April 8, 2021

पैगम्बर मोहम्मद (स.) कौन थे ?

पैगम्बर मोहम्मद (स.) वह महापुरुष थे :

जिन्होंने बेटियों को क़ब्र में ज़िंदा दफनाने की रस्म बंद की
जिन्होंने उस बीमार बुढ़िया से हमदर्दी की जो रोज़ उनपर कूड़ा फेंकती थी
जिनके सच बोलने की गवाही पूरा अरब देता था चाहे उसमें दुश्मन हों या दोस्त।
जिन्होंने गरीबों की मदद के लिए ज़कात जैसा सिस्टम बनाया.
जिन्होंने छोटे छोटे क़बीलों में बंटे पूरे अरब को एक राष्ट्र का रूप दिया.
जिन्होंने अफ्रीका से लाये गये हब्शी गुलामों को समाज में वही स्थान दिलाया जो वहाँ और लोगों का था.
जिन्होंने अरबी क़बीलों के बीच सैंकड़ों सालों से चलने वाली पुश्तैनी लड़ाइयों को ख़त्म करवाया.
जिन्होंने मक्के की फतह के बाद उन तमाम लोगों को आम माफ़ी दे दी जिन्होंने उन्हें और उनके मानने वालों पर अत्याचार किये था और बहुतों को शहीद कर दिया था।
जिन्होंने अपनी पूरी दौलत ग़रीबों के कल्याण में लुटा दी और खुद अपना कोई निजी महल नहीं बनाया।
जिन्होंने बताया की कोई दूसरे से न तो ऊंचा है और न नीचा। केवल अच्छे कर्म ही एक को दूसरे से श्रेष्ठ करते हैं।
जिन्होंने न्याय के लिये ऐसे क़ानून बनाये जो सभी पर समान रूप से लागू थे।
जिन्होंने युद्धकाल में मानवाधिकार के क़ानून बनाये.
जिनके पास बाहर जाने वाले अपनी क़ीमती चीज़ें रखकर जाते थे और वापसी में वैसी ही पाते थे जैसी छोड़कर जाते थे।
जिन्होंने बताया की तुममें बेहतर वो है जिसकी वजह से किसी को तकलीफ न पहुंचे। न तो ज़बान से और न हाथों से.
जिन्होंने बताया की अच्छा पुरुष वो होता है जो औरतों की इज़्ज़त करे.
जिन्होंने नशामुक्त समाज के क़ानून बनाये.
जिन्होंने रिश्वत और सूद पर रोक लगाईं.
जिन्होंने गलत नापतौल पर सज़ा के क़ानून बनाये.
जिन्होंने जमाखोरी पर रोक लगाई और वेस्टेज से मना किया।
जिन्होंने बताया की अज्ञानी न बनो और ज्ञान हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश करो.
जिन्होंने प्रॉपर्टी के न्यायपूर्ण बंटवारे के क़ानून बनाये जिसमें बेटियों का भी हक़ था.
जिन्होंने महिलाओं को भी तलाक़ लेने का हक़ दिलाया।
और ये सब काम उन्होंने सिर्फ बीस साल की अवामी ज़िन्दगी में कर दिखाए थे जबकि उनके दुश्मन उनका जीना हराम कर रहे थे।