इमाम हज़रत अली (अ.) ने ही पहली बार इस्लामिक थिओलोजी को तर्क के साथ पेश किया और तौहीद का सही कांसेप्ट दुनिया के सामने पेश किया।
इमाम हज़रत अली (अ.) ने अज़ान में चार मरतबा कहे जाने वाले ‘अल्लाहो अकबर’ की तफसीर इस तरह बयान की है - अज़ान में पहली बार ‘अल्लाहो अकबर’ कहना अल्लाह की क़दामत, अज़लियत, अब्दियत, इल्म, क़ूव्वत, हिक्म व करम, जूद व अता व किबरियाई पर दलालत करता है। अल्लाह वह है कि जिसके लिये खल्क़ व अम्र है। और उसकी मशीयत से खल्क़ है और उसी की वजह से हर शय मख्लूक़ के लिये है, उसी की तरफ मख्लूक़ रुजूअ होती है। वह हर शय से पहले अव्वल है और हर शय के बाद आखिर है। लाईज़ाल है। वह हर शय पर ज़ाहिर है। मगर उसका अदराक नहीं किया जा सकता। और हर चीज़ के बगैर वह बातिन है कि जिसको महदूद नहीं किया जा सकता। पस वह बाक़ी है और उसके सिवा तमाम अशिया फानी है। और दूसरी मरतबा ‘अल्लाहो अकबर’ कहने के माअनी ये हैं कि वह अलीम व खबीर है। उसको तमाम अशिया का इल्म है। ख्वाह वह पैदा हुईं और क़िब्ल इसके वह पैदा हों। और तीसरे माअनी ‘अल्लाहो अकबर’ के ये हैं कि अल्लाह हर शय पर क़ादिर है और जो चाहता है उसपर कुदरत रखता है और अपनी क़ुदरत में क़वी है और अपनी मख्लूक़ पर मुक़्तदिर है। उसकी क़ुदरत तमाम अशिया पर क़ायम है। जब वह किसी अम्र का फैसला करता है तो कहता है कि हो जा पस वह हो जाता है। और चौथा ‘अल्लाहो अकबर’ उसके हलम व करम के मायने में है। वह हलम के साथ पेश आता है गोया उसको इल्म नहीं हुआ। वह दरगुज़र करता है गोया देख नहीं रहा और वह ऐब पोशी करता है गोया उसकी नाफरमानी नहीं की गयी। वह करम, हलम, और दरगुज़री की बिना पर सज़ा में जल्दी नहीं करता है। वह जव्वाद है। बेइंतिहा इनाम देने वाला और अफआल में करम करने वाला है।
(सन्दर्भ : किताब अल तौहीद, शेख सदूक़ अ र )
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