इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के खुत्बा 49 में फरमाते हैं ‘वह (अल्लाह) ज़ात ऐसी है कि जिसके वजूद के निशानात इस तरह उसकी शहादत देते हैं कि इंकार करने वाले का दिल भी इक़रार किये बगैर नहीं रह सकता।’
कायनात के बनने में लोग तरह तरह की थ्योरीज़ पेश करते हैं। जो अल्लाह को मानते हैं उनकी बात अगर छोड़ दी जाये तो इवोल्यूशन थ्योरी, बिग बैंग, स्टेडी स्टेट थ्योरी, ग्रेंड डिज़ाईन जैसी बहुत सी थ्योरीज़ साइंस पेश करती है। कुछ का मानना है कि यूनिवर्स खुद ही अपने को बनाता बिगाड़ता रहता है, तो कुछ मानते हैं कि फिज़िकल लॉज़ (Physical Laws) यूनिवर्स को बनाने में अहम किरदार निभाते हैं। अल्लाह के वजूद से इंकार करने वाले भी कहीं न कहीं किसी ताकत या Reason को इस कायनात के बनाने में शामिल मानते हैं।
इमाम जाफर सादिक(अ.) ने फरमाया कि खुदा वन्दे तआला का इंकार जहालत की पहचान है और आलिम ज़रूर खुदा पर ईमान रखता है। अगर चै वह खालिक के लिये खुदा के अलावा और किसी नाम को चुन लेता है।
आज के दौर में भी जो लोग खुदा के वजूद से इंकार करते हैं, उनमें से कोई इवोल्यूशन (Evolution) को खुदा मानता है। कुछ लोग ग्रेविटॉन (Graviton) को ग्रैविटेशनल फोर्स पैदा करने वाला ज़र्रा मानते हैं। इन लोगों के मुताबिक दुनिया का ख़ुदा जो इस कायनात का पैदा करने वाला और इस कायनात का मुहाफिज़ है वह ग्रैविटॉन है, क्योंकि कायनात में ग्रैविटॉन से ज़्यादा ताकतवर और तेज़ रफ्तार कोई चीज़ नहीं। ग्रैविटॉन 1 सेकंड में कायनात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचता है फिर वापस आ जाता है, जिसका फासला वैज्ञानिकों के मुताबिक तीन हज़ार मिलियन लाइट इयर था। मौजूदा डिस्कवरीज़ इस फासले को और ज्यादा बताती हैं। इस वक्त के हिसाब के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा फासले की चीज़ जो हम रोशनी की किरण के ज़रिये देख सकते हैं हमारी आँखों से इतने मीटर दूर है कि चार के आगे 26 ज़ीरो जोड़ दिये जायें। इस अधिकतम फासले के गोले को नाम दिया गया है हब्बल वोल्यूम।
मौजूदा दौर में साइंसदां एक नये पार्टिकिल की दरियाफ्त की संभावनाएं बताते हैं जिसका नाम उन्होंने हिग्स बोसोन रखा है। क्वांटम फिजिक्स के माहिर दुनिया के तमाम पार्टिकिल्स को हिग्स बोसोन से बना हुआ मानते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी पदार्थ एटम्स से मिलकर बना होता है। और इन एटम्स का ज्यादातर द्रव्यमान उनके मरकज़ में मौजूद प्रोटॉनों व न्यूट्रानों की वजह से होता है। ये ज़र्रे मैटर के फंडामेन्टल पार्टिकिल्स कहलाते हैं। इनमें से हर पार्टिकिल यानि प्रोटॉन या न्यूट्रान तीन सब पार्टिकिल्स से मिलकर बना होता है। जिन्हें क्वार्क (Quark) कहते हैं। इन क्वार्कों का द्रव्यमान भी नापा जा चुका है।इमाम जाफर सादिक(अ.) ने फरमाया कि खुदा वन्दे तआला का इंकार जहालत की पहचान है और आलिम ज़रूर खुदा पर ईमान रखता है। अगर चै वह खालिक के लिये खुदा के अलावा और किसी नाम को चुन लेता है।
आज के दौर में भी जो लोग खुदा के वजूद से इंकार करते हैं, उनमें से कोई इवोल्यूशन (Evolution) को खुदा मानता है। कुछ लोग ग्रेविटॉन (Graviton) को ग्रैविटेशनल फोर्स पैदा करने वाला ज़र्रा मानते हैं। इन लोगों के मुताबिक दुनिया का ख़ुदा जो इस कायनात का पैदा करने वाला और इस कायनात का मुहाफिज़ है वह ग्रैविटॉन है, क्योंकि कायनात में ग्रैविटॉन से ज़्यादा ताकतवर और तेज़ रफ्तार कोई चीज़ नहीं। ग्रैविटॉन 1 सेकंड में कायनात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचता है फिर वापस आ जाता है, जिसका फासला वैज्ञानिकों के मुताबिक तीन हज़ार मिलियन लाइट इयर था। मौजूदा डिस्कवरीज़ इस फासले को और ज्यादा बताती हैं। इस वक्त के हिसाब के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा फासले की चीज़ जो हम रोशनी की किरण के ज़रिये देख सकते हैं हमारी आँखों से इतने मीटर दूर है कि चार के आगे 26 ज़ीरो जोड़ दिये जायें। इस अधिकतम फासले के गोले को नाम दिया गया है हब्बल वोल्यूम।
मज़े की बात ये है कि जब तीनों क्वार्कों का कुल द्रव्यमान लिया जाता है तो वह उस फंडामेन्टल पार्टिकिल से बहुत ही कम यानि उसका एक फीसद आता है जिस पार्टिकिल को वे क्वार्क मिलकर बनाते हैं। यानि ज़र्रे का निन्यानवे फीसद द्रव्यमान किसी और वजह से पैदा होता है।
अब क्वांटम नज़रिया ये बताता है कि यह द्रव्यमान एक ताकत के ज़रिये पैदा होता है जो क्वार्कों को आपस में जोड़ती है। यह ताकत है उच्च नाभिकीय बल (Strong Nuclear Force). यह ताकत पैदा होती है मायावी (Virtual) ज़र्रात के एक मैदान के ज़रिये जिन्हें ग्लूऑन नाम दिया गया है। ये ज़र्रे मैदान में कहीं भी लम्हे भर के लिए ज़ाहिर होते हैं, और फिर फौरन ही गायब हो जाते हैं। इसी को कहते हैं क्वांटम थरथराहट (Quantum Fluctuation)। इस थरथराहट से पैदा हुई एनर्जी प्रोटॉन और न्यूट्रान के द्रव्यमान में जुड़ जाती है। चूंकि ग्लूआन का द्रव्यमान जीरो होता है, यानि ये मैटर के जर्रे नहीं होते। इनमें सिर्फ एनर्जी होती है। यही एनर्जी ये फंडामेन्टल पार्टिकिल के द्रव्यमान में जोड़कर खुद गायब हो जाते हैं। एक ग्लूआन कितना द्रव्यमान जोड़ता है, यह मालूम होता है आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण से (E=mc2)। जहां E ग्लूआन के ज़रिये पैदा हुई एनर्जी है और m फंडामेन्टल पार्टिकिल के द्रव्यमान में बढ़ोत्तरी है।
अब एक सवाल और पैदा होता है। जिस तरंह प्रोटान और न्यूट्रान के द्रव्यमान में मैटर पार्टिकिल क्वार्क और मायावी कण ग्लूआन शामिल है, क्या इसी तरंह क्वार्क भी मायावी कणों से मिलकर बने हैं? जिनका द्रव्यमान ज़ीरो हो और वे सिर्फ एनर्जी देकर गायब हो जाते हैं? साइंसदानों ने इसका जवाब सकारात्मक दिया है। और इन मायावी कणों को नाम दिया गया है हिग्स बोसॉन (Higgs Boson)।
इस तरह हम देखते हैं कि खुदा से अलग हटकर सोचने वाले तरह तरह की थ्योरीज़ पर विचार कर रहे हैं और किसी न किसी तरीके से ऐसी ताकत को कुबूल करते हैं जो इस पूरी कायनात को बनाने के लिये जिम्मेदार है कभी वो उसे पार्टिकिल की शक्ल में मानते हैं तो कभी फिजिकल लॉज़ की शक्ल में। यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के बयान से ज़ाहिर हो रही है।
इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब :
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म
ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :
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