tag:blogger.com,1999:blog-76963354682501875782024-03-14T08:30:34.866+05:30Ya Husain Ya Shah-E-Karbalazeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comBlogger152125tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-17091914496727941862023-07-06T16:43:00.003+05:302023-07-06T16:43:27.050+05:30इमाम हज़रत अली (अ) के खुत्बा अल बयान के कुछ अंश <p> <span style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">इमाम हज़रत अली (अ) खुत्बा अल बयान में अपनी फ़ज़ीलत इस तरह बयान करते हैं </span></p><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं वह हूँ जिसके बारे में रसूल (स) ने फ़रमाया मैं इल्म का शहर हूँ और अली (अ) उसका दरवाज़ा हैं। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं हर चीज़ की हक़ीक़त से खबरदार और आगाह हूँ। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं वह हूँ कि ख़िलक़त के आदाद व गिनती को शुमार करता और मालूम करता हूँ अगर चे वह बहुत हैं यहाँ तक कि अल्लाह तआला की तरफ उनको पहुंचाऊं। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं हूँ अली इब्ने अभी तालिब जिसकी आवाज़ जंगों में बिजली की आवाज़ों की तरह है। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं ज़मीन में खुदा का वली हूँ और अम्र खुदा मेरे सुपुर्द किया गया है </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं वह नूर हूँ कि जिस से मूसा (अ) ने रौशनी तलब की तो हिदायत पाई </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं वह हूँ की मैंने सातों आसमानों को बुलाया। उन्होंने मेरे हुक्म को क़ुबूल किया। मैंने उनको हुक्म दिया और वह क़ायम हो गये। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं वह हूँ कि जिसके लिये आफ़ताब को दो बार पलटाया गया। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं हूँ चीज़ों का ज़ाहिर करने वाला और मौजूदात का पैदा करने वाला जिस तरह चाहूँ। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं हूँ वह की पहली उम्मतों में से हज़ार उम्मत ने मेरी विलायत का इंकार किया पस अल्लाह तआला ने उनको मस्ख कर दिया। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं वह हूँ कि सब्ज़ी मलकूत में खड़ा हूँ जहाँ रूहें हरकत करती हैं। वहां मेरे सिवा कोई हरकत करने वाला नहीं। </div><div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: 13px; text-align: justify;">* मैं हूँ वह जो जो दुनिया की हर लुग़त व ज़बान में कलाम करता है।</div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-39134226381427445222023-02-05T19:56:00.001+05:302023-02-05T19:56:08.181+05:30अल्लाह के वजूद के निशानात<p>इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के खुत्बा 49 में फरमाते हैं ‘वह (अल्लाह) ज़ात ऐसी है कि जिसके वजूद के निशानात इस तरह उसकी शहादत देते हैं कि इंकार करने वाले का दिल भी इक़रार किये बगैर नहीं रह सकता।’</p><div>कायनात के बनने में लोग तरह तरह की थ्योरीज़ पेश करते हैं। जो अल्लाह को मानते हैं उनकी बात अगर छोड़ दी जाये तो इवोल्यूशन थ्योरी, बिग बैंग, स्टेडी स्टेट थ्योरी, ग्रेंड डिज़ाईन जैसी बहुत सी थ्योरीज़ साइंस पेश करती है। कुछ का मानना है कि यूनिवर्स खुद ही अपने को बनाता बिगाड़ता रहता है, तो कुछ मानते हैं कि फिज़िकल लॉज़ (Physical Laws) यूनिवर्स को बनाने में अहम किरदार निभाते हैं। अल्लाह के वजूद से इंकार करने वाले भी कहीं न कहीं किसी ताकत या Reason को इस कायनात के बनाने में शामिल मानते हैं।<br />इमाम जाफर सादिक(अ.) ने फरमाया कि खुदा वन्दे तआला का इंकार जहालत की पहचान है और आलिम ज़रूर खुदा पर ईमान रखता है। अगर चै वह खालिक के लिये खुदा के अलावा और किसी नाम को चुन लेता है।<br />आज के दौर में भी जो लोग खुदा के वजूद से इंकार करते हैं, उनमें से कोई इवोल्यूशन (Evolution) को खुदा मानता है। कुछ लोग ग्रेविटॉन (Graviton) को ग्रैविटेशनल फोर्स पैदा करने वाला ज़र्रा मानते हैं। इन लोगों के मुताबिक दुनिया का ख़ुदा जो इस कायनात का पैदा करने वाला और इस कायनात का मुहाफिज़ है वह ग्रैविटॉन है, क्योंकि कायनात में ग्रैविटॉन से ज़्यादा ताकतवर और तेज़ रफ्तार कोई चीज़ नहीं। ग्रैविटॉन 1 सेकंड में कायनात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचता है फिर वापस आ जाता है, जिसका फासला वैज्ञानिकों के मुताबिक तीन हज़ार मिलियन लाइट इयर था। मौजूदा डिस्कवरीज़ इस फासले को और ज्यादा बताती हैं। इस वक्त के हिसाब के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा फासले की चीज़ जो हम रोशनी की किरण के ज़रिये देख सकते हैं हमारी आँखों से इतने मीटर दूर है कि चार के आगे 26 ज़ीरो जोड़ दिये जायें। इस अधिकतम फासले के गोले को नाम दिया गया है हब्बल वोल्यूम।<br /></div>मौजूदा दौर में साइंसदां एक नये पार्टिकिल की दरियाफ्त की संभावनाएं बताते हैं जिसका नाम उन्होंने हिग्स बोसोन रखा है। क्वांटम फिजिक्स के माहिर दुनिया के तमाम पार्टिकिल्स को हिग्स बोसोन से बना हुआ मानते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी पदार्थ एटम्स से मिलकर बना होता है। और इन एटम्स का ज्यादातर द्रव्यमान उनके मरकज़ में मौजूद प्रोटॉनों व न्यूट्रानों की वजह से होता है। ये ज़र्रे मैटर के फंडामेन्टल पार्टिकिल्स कहलाते हैं। इनमें से हर पार्टिकिल यानि प्रोटॉन या न्यूट्रान तीन सब पार्टिकिल्स से मिलकर बना होता है। जिन्हें क्वार्क (Quark) कहते हैं। इन क्वार्कों का द्रव्यमान भी नापा जा चुका है।<br />मज़े की बात ये है कि जब तीनों क्वार्कों का कुल द्रव्यमान लिया जाता है तो वह उस फंडामेन्टल पार्टिकिल से बहुत ही कम यानि उसका एक फीसद आता है जिस पार्टिकिल को वे क्वार्क मिलकर बनाते हैं। यानि ज़र्रे का निन्यानवे फीसद द्रव्यमान किसी और वजह से पैदा होता है।<br />अब क्वांटम नज़रिया ये बताता है कि यह द्रव्यमान एक ताकत के ज़रिये पैदा होता है जो क्वार्कों को आपस में जोड़ती है। यह ताकत है उच्च नाभिकीय बल (Strong Nuclear Force). यह ताकत पैदा होती है मायावी (Virtual) ज़र्रात के एक मैदान के ज़रिये जिन्हें ग्लूऑन नाम दिया गया है। ये ज़र्रे मैदान में कहीं भी लम्हे भर के लिए ज़ाहिर होते हैं, और फिर फौरन ही गायब हो जाते हैं। इसी को कहते हैं क्वांटम थरथराहट (Quantum Fluctuation)। इस थरथराहट से पैदा हुई एनर्जी प्रोटॉन और न्यूट्रान के द्रव्यमान में जुड़ जाती है। चूंकि ग्लूआन का द्रव्यमान जीरो होता है, यानि ये मैटर के जर्रे नहीं होते। इनमें सिर्फ एनर्जी होती है। यही एनर्जी ये फंडामेन्टल पार्टिकिल के द्रव्यमान में जोड़कर खुद गायब हो जाते हैं। एक ग्लूआन कितना द्रव्यमान जोड़ता है, यह मालूम होता है आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण से (E=mc2)। जहां E ग्लूआन के ज़रिये पैदा हुई एनर्जी है और m फंडामेन्टल पार्टिकिल के द्रव्यमान में बढ़ोत्तरी है।<br />अब एक सवाल और पैदा होता है। जिस तरंह प्रोटान और न्यूट्रान के द्रव्यमान में मैटर पार्टिकिल क्वार्क और मायावी कण ग्लूआन शामिल है, क्या इसी तरंह क्वार्क भी मायावी कणों से मिलकर बने हैं? जिनका द्रव्यमान ज़ीरो हो और वे सिर्फ एनर्जी देकर गायब हो जाते हैं? साइंसदानों ने इसका जवाब सकारात्मक दिया है। और इन मायावी कणों को नाम दिया गया है हिग्स बोसॉन (Higgs Boson)। <br />इस तरह हम देखते हैं कि खुदा से अलग हटकर सोचने वाले तरह तरह की थ्योरीज़ पर विचार कर रहे हैं और किसी न किसी तरीके से ऐसी ताकत को कुबूल करते हैं जो इस पूरी कायनात को बनाने के लिये जिम्मेदार है कभी वो उसे पार्टिकिल की शक्ल में मानते हैं तो कभी फिजिकल लॉज़ की शक्ल में। यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के बयान से ज़ाहिर हो रही है।<div><div><div><div style="font-family: arial,sans-serif;">इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : </div><div style="font-family: arial,sans-serif;">नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म </div></div><div style="font-family: arial,sans-serif;"><div style="font-family: Arial,Helvetica,sans-serif;"><div>ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :</div><div><a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm&source=gmail&ust=1675692867226000&usg=AOvVaw3LvB7cq0J9xq4FFdItF_BM" href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/<wbr></wbr>ebook-zeashan-zaidi-nahjul-<wbr></wbr>balagha-ka-sciensi-ilm</a></div></div></div></div><div></div><div dir="ltr"></div></div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-33959721432710147652023-02-05T19:53:00.004+05:302023-02-05T19:53:53.670+05:30कुरआन की शान्ति का पैगाम देती हुई आयतें <p> [2:256] दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और अल्लाह ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती और अल्लाह सब कुछ सुनता और जानता है</p>
[2:272] (ऐ रसूल) उनका मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाना तुम्हारा काम नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ़ रास्ता दिखाना है) मगर हॉ अल्लाह जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे <br />[7:56] (लोगों) अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ाकर और चुपके - चुपके दुआ करो वह हद से तजाविज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और ज़मीन में असलाह के बाद फसाद न करते फिरो और (अज़ाब) के ख़ौफ से और (रहमत) की आस लगा के अल्लाह से दुआ मांगो<br />
[2:11-12] और जब उनसे कहा जाता है कि मुल्क में फसाद न करते फिरो (तो) कहते हैं कि हम तो सिर्फ इसलाह करते हैं. ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग फसादी हैं लेकिन समझते नहीं .<br />[88:21-22] तो तुम नसीहत करते रहो तुम तो बस नसीहत करने वाले हो. तुम कुछ उन पर दरोग़ा तो हो नहीं<br />
[109:5-6] और जिसकी मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत करने वाले नहीं. तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन<br />[9:6] और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं <br />
[4 : 80] जिसने रसूल की इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ खयाल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है<br />[6 : 107] और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो<br />
[10 : 99&100] और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ हालॉकि किसी शख्स को ये इखतियार नहीं कि बगै़र अल्लाह की मर्जी ईमान ले आए और जो लोग अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लोगों पर अल्लाह गन्दगी डाल देता है <br />
[11 : 28] (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ<br />
[16 : 82] तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है<br />[17 : 53&54] और (ऐ रसूल) मेरे (सच्चे) बन्दों (मोमिनों से कह दो कि वह (काफिरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख्त कलामी न करें) क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फसाद डलवाता है इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है <br />
[21 : 107 & 109] और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा-----फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है<br />
[22 : 67] इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ बुलाए जाओ<br />
[24 : 54] (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज़ है<br />
[36 : 16&17] तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीन्न उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो) हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे अल्लाह का पहुँचा देना फर्ज़ है<br />[39 : 41] (ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरआन) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं<br />
[42 : 6] और जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं अल्लाह उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो<br />[42 : 48] फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है<br />
[64 :12] और अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो फिर अगर तुमने मुँह फेरा तो हमारे रसूल पर सिर्फ़ पैग़ाम का वाज़ेए करके पहुँचा देना फर्ज़ है<br />[60 : 8&9] जो लोग तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है. अल्लाह तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई की और तुमको तुम्हारे घरों से निकाल बाहर किया और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग ज़ालिम हैं <br />
[4 : 80] जिसने रसूल की इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ खयाल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है<br />[6 : 107] और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो.<br />
[5.32]हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो “शख्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज़्यादतियॉ करते रहे<br />
[5:33] जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएँ या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाएँ या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुयी और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है<br />
इसका मतलब साफ़ है की अगर कोई तुमसे झगडा नहीं कर रहा है तो तुम्हें उससे झगड़ने या उसे तकलीफ पहुंचाने का कोई हक नहीं. मोमिन मियाँ ने दीने इस्लाम लगता है किसी तालिबानी मुल्ला से पढ़ा है, वरना वह ऐसी बातें हरगिज़ न कहते. <br />
अब बात करते हैं सुलह की जो मोहम्मद (स.अ.) ने मक्के के काफिरों से की थी, उस सुलह के नियमों की अवहेलना मक्के वाले खुले आम कर रहे थे और मुसलमानों को परेशान कर रहे थे. उसके बाद सूरे तौबा नाजिल हुई. <b>हर कानून में IF - Then होता है.</b> मोमिन मियाँ इस सूरे की 1, 5, 23 आयत तो पढ़ रहे हैं लेकिन आयत नं 12, 13 और 6 पढना भूल गए या टाल गए,<br />
[तौबा आयत नं 12] और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आएँ.<br />
[तौबा आयत नं 13] (मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-89626756762106352702022-02-15T13:17:00.003+05:302022-02-15T13:17:35.147+05:30 इमाम अली और मिस्र के पिरामिड्स की उम्र <p>इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इल्म व हिकमत के बारे में पैग़म्बर मुहम्मद(स.) फरमाते हैं कि मैं शहरे इल्म हूं और अली उसका दरवाज़ा हैं। और खुद इमाम अली(अ.) फरमाते हैं कि मैं ज़मीन से ज़्यादा आसमान के रास्तों को जानता हूं। इस इल्म की एक मिसाल मेजर इफ्तिखार हैदर ज़ैदी कि किताब ‘वजूद ए कायनात मौला अली और ग़दीरे खुम (पेज 237) में मिलती है। जब इमाम अली ने मिस्र के पिरामिड्स की उम्र का मसला एस्ट्रोनोमी की मदद से हल किया। किताब के मुताबिक साहबे ग़यासुल्लुग़ात अहराम मिस्र की बहस में तहरीर फरमाते हैं कि हज़रत इमाम अली (अ.) से जब किसी ने मिस्र के अहरामों (Pyramids) की उम्र के बारे में सवाल किया तो आपने पूछा - उसपर कोई क़ुत्बा या तस्वीर है? तो पूछने वाले ने कहा - जी हाँ एक गिद्ध की तस्वीर है जो अपने पंजों में केकड़ा दबाये हुए है। ये सुनकर इमाम(अ.) ने फरमाया, मामला साफ है, मिस्र के पिरामिडों की बुनियाद उस वक्त रखी गयी जब ‘सितारा नुस्र’ बुर्ज सरतान में था। ‘नुस्र’ दो हज़ार साल में एक बुर्ज से दूसरे बुर्ज में जाता है और आजकल (यानि इमाम अली(अ.) के ज़माने में) बुर्ज जदी में है। और इस तरह उन इमारतों की बुनियाद बारह हज़ार साल पहले रखी गयी।</p><div>मौजूदा दौर तहक़ीक़ात के मुताबिक अहराम मिस्र की उम्र 3000-4000 के लगभग बतायी जाती थी, लेकिन अब कुछ नयी तहक़ीकात में इस थ्योरी को रिजेक्ट करते हुए गेरी कैनन और मैलकम हटन जैसे हिस्टोरियन पिरामिड्स की उम्र 12500 साल के लगभग बताते हैं। यानि आइस एज से भी पहले।</div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-68777245140013762952021-08-19T18:39:00.000+05:302021-08-19T18:39:07.815+05:30The Secret of Kaaba<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw6XE1gdUnBSFv-gFQ5s_RDiO0SPWVBvrgTgSlFd8l9ZrPm5EvWkWr53EQdWmOA_vICGc08G2XECSYLETEBhThC2GvhE_4Y6QJCRMTivdsJY1lHzDlW3rmwMxK9gNhBnXIpJTN7syb4_Y/s247/K3.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="247" data-original-width="204" height="299" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw6XE1gdUnBSFv-gFQ5s_RDiO0SPWVBvrgTgSlFd8l9ZrPm5EvWkWr53EQdWmOA_vICGc08G2XECSYLETEBhThC2GvhE_4Y6QJCRMTivdsJY1lHzDlW3rmwMxK9gNhBnXIpJTN7syb4_Y/w247-h299/K3.jpg" width="247" /></a></div><br /><span style="font-size: 14pt; text-align: justify;">Alfred Wegener was a German scientist
who presented a theory in 1915 for the first time that all the continents are sliding
from their place with time. And millions of years ago, all these continents
were presented as a single landmass, joint together. And this supercontinent
was surrounded by the great ocean. This result was drawn by Wegener by studying
the maps of the continents. He said that when the edges of different continents
are joined together, they fit as if someone pulled them apart. So it is
possible that they may have joint each other millions of years ago and later
drifted apart. His theory of continent drift was new to the world and most of
the scientists did not accept his point, but when data analysis was done further
through new techniques in 1950, his words proved to be true. This merged
supercontinent was named as Pangea. Later it was also speculated that Pangea
was also formed by the union of some earlier continents. Their names were given
Gondwana and Euremerica. In this way, the formation and deformation of new from
old continents is a cyclic process.</span><p></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">But the most important thing that is
found in the shifting of the continents is that the age of the Earth has been
estimated at about 4-5 billion years. The upper crust of the Earth on which the
living beings lying and on which the sea and dry places are present, this
entire crust is in the form of plates (called tectonic plates). Different
plates are constantly moving. Because of their shifting, continents are
shifting. And when these continents presented in the form of single
supercontinent, there was a centre of that entire dry land. That was the same
place where today is the Kaaba Sharif and Mecca Mukarrama.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">In such a situation, we can remember some
very old hadiths of Islam, which seem to narrate this fact, for which the
science before the twentieth century was in the dark.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">According to the Hadith recorded in
the book ‘ElalushSharaa’ of Sheikh Sudduk (A.R.), Hazrat Imam Hasan bin Ali bin
Abi Talib narrates that once a few Jewish Messengers came to met Prophet
Muhammad (S.A.) and asked many questions. One of them was that why was the name
of Kaaba named Kaaba? Rasool (S.A.) answered because it is the markaz (centre)
of the world.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">According to another hadith recorded
in the same book, Imam Muhammad Baqir (A.S.) said that Allah Ta'ala created the
Kaabah before living creatures. After this God created the land and laid the
ground from under the Kaaba.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">According to Usool-e-Kafi vol 124
Hadith 17, Imam Muhammad Baqir (A.S.) narrates that the Messenger of Allah
(s.a.) said to me that the twelve Imams to my descendants and you, Ali, all
these are pegs and mountains for this land so that the land with its inhabitants
lying in the stable state. When the twelfth from my descendants will no more,
then the land will sink down with all the inhabitants then they will not get breather.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">These hadiths are presenting such
amazing inquisitions, whose reality can be understood only by the current
science. The Kaaba is the centre of the world in many ways. The special thing
that is observed in the map of the super continent Pangea millions of years ago
is that Mecca i.e. Kaaba is seen in its center. At the same time, scientists
have estimated that after about two hundred billion years, all the continents
will be united once again. They also prepared a predicted map of it. And the
surprising thing is that in that map once again the Kaaba (Mecca) is visible in
the center. In this way it is almost proved that every time the land is united
or separated, its centre has always remained the Kaaba. The same thing comes
out in the research of Dr. Saleh Muhammad, a geologist at Baghdad University.
According to Dr. Saleh, the tectonic plates of land on which the oceans and
continents are present, are constantly changing their places at a very slow
rate. At the same time, their shape is also changing. Some of them keep on
joining together and some break and make new plates. Sometimes their speed
becomes erratic, as a result of which floods and tsunamis arise. Now it is a
scientific fact that all the deteriorating plates are moving around a centre i.e.
Arabian plate at a sluggish speed i.e. doing Tawaaf. And the centre of this
Arabian plate is Kaaba.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">If a circle is drawn, including the
old civilizations that were arose in the world, which includes Mesopotamia,
Indus Valley, Roman and African civilizations, then its centre tends towards
Mecca Mukarrama and Kaaba. All the old civilizations developed within a radius
of 8000 km from this center.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">If the radius of 13000 km is drawn
considering the Kabe as the center, then the cities of America, Australia and
all the continents are included in it.<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">A question that remains a puzzle for
scientists is that from where did the formation of these continents begin? Some
might say that these great lands may have always existed. But it's not like
that. According to the research done by the scientists, long ago the earth was
a ball of fire which was revolving around the sun. Then how did it change into
the shape of today's earth, of which 71 percent is the water? Where did so much
water come from on the Earth? it is an unsolved puzzle for the scientists. <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">According to some scientists, water
was always present in the form of steam at the Earth. Whereas according to
some, this water came on the earth due to the collision of the icy comet. This
water cooled the whole earth and also spread everywhere in the form of ocean
through heavy rain. At that time there was no existence of dry land and no
continent was present. Then through a process called mantle convection, high
cores were formed in the middle of the ocean, around which continents were
formed due to the gradual solidification of rocks. <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">Science is currently silent about
which part of the land the first core was formed. But the way that the Earth's
plates are present around the Arabian Plates and other scientific data is being
analysed, it seems that the first core was formed at the same place where the
Kaaba is present now. Therefore, the scientific data is in favour of the hadith
that ' After this God created the land and laid the ground from under the Kaaba
'<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="EN-IN" style="font-size: 14.0pt; line-height: 107%;">The way that different plates of the Earth
exist and connected to each other and the material of the earth underneath them
is in molten and hot condition, it is certainly surprising that those plates
are stable and is completely supporting the hadith of Rasool (S.A.) 'the twelve
Imams to my descendants and you, Ali, all these are pegs and mountains for this
land so that the land with its inhabitants lying in the stable state. When the
twelfth from my descendants will no more, then the land will sink down with all
the inhabitants then they will not get breather.' Another thing is evident from
this that ultimately time will arrive when the plates of the earth will not
remain in its place and will sink and the continents will collapse they will
not exist further.<o:p></o:p></span></p>
<span lang="EN-IN" style="font-family: "Calibri","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 107%; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Arial; mso-bidi-language: AR-SA; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: Calibri; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-latin; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">And finally a special thing about Kaaba. The
south pole of the Earth's magnetic field is currently in the direction of
Canada. In this way the equatorial line of the magnetic field passes through
Mecca i.e. Kaaba. The vertical component of the magnetic field is zero
everywhere on this line. In this way we can say that Kaaba is lying in the
middle of the magnetic field. Definitely, the Kaabe has played such an
important role in relation to the affairs of the land inhabitants that
performing tawaaf around it is a great worship.</span>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-40216796647145398562021-05-28T20:22:00.004+05:302021-05-28T20:22:28.516+05:30इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) और कायनात की इंटेलिजेंट डिज़ाईन <p> दुनिया के बनने के सिलसिले में पूरी दुनिया के लोग जिन थ्योरीज़ को पेश करते हैं उन्हें दो कैटेगरीज़ में रखा जा सकता है। पहली है इवोल्यूशन और दूसरी है इंटेलिजेंट डिज़ाईन। पहली थ्योरी क्रियेटर के अस्तित्व से इंकार करती है और दूसरी क्रियेटर को लाज़मी मानती है। इंटेलीजेंट डिज़ाईन के बारे में चौदह सौ साल पहले एक वैज्ञानिक ने मज़बूत दलीलें पेश की थीं जो तौहीद मुफ़ज़्ज़ल के नाम से मशहूर है. ये महान वैज्ञानिक थे इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) जिन्होंने अरब की पहली यूनिवर्सिटी क़ायम की थी और चार हज़ार शागिर्दों को अपने ज्ञान से सैराब किया।</p><br />तौहीद मुफज़्ज़ल यूनिवर्स की इण्टेलिजेंट डिज़ाईन की बात करती है और तमाम दलीलों के ज़रिये साबित करती है कि सब कुछ सिस्टेमैटिक है और इसलिए इसे बनाने वाली एक सुपरपावर मौजूद है।<div>इस किताब में होंठों के बारे में इमाम फरमाते हैं,<br />‘होंठों के ज़रिये से इंसान पानी को चूस सकता है ताकि जो पानी पेट के अन्दर जाये वह बाअन्दाजा मुअय्यन (एक खास अन्दाज़े के साथ) और बिल क़स्द (जितनी ज़रूरत है) जाये न कि ग़रग़राता हुआ बह जाये, जिससे पीने वाले के गले में फंदा न लगे और जोर से बह कर जाने के सबब से किसी अन्दरूनी हिस्से में खराश न पड़ जाये। फिर अलावा इसके ये दोनों होंठ दरवाज़े के मुशाबिह हैं जो मुंह को ढांके रहते हैं जब आदमी चाहे बन्द करे।’’</div><div> कानों के बारे में इमाम फरमाते हैं , कान का भीतरी हिस्सा कैदखाने की तरह क्यों टेढ़ा मेढ़ा बनाया गया है? इसीलिये न कि उसमें आवाज़ जारी हो सके और उस पर्दे तक पहुंच जाये जिससे आवाज़ सुनाई देती है और इसलिए कि हवा की तेज़ी का ज़ोर टूट जाये ताकि सुनने के पर्दे में खराश न डाले।’ यानि कानों की भीतरी बनावट टेढ़ी मेढ़ी होने के पीछे खास राज़ है, वह यह कि हवा का दबाव कान के पर्दे पर न पड़े और खालिस आवाज़ ही कान के पर्दे तक पहुंचे क्योंकि यह पर्दा बहुत नाज़ुक होता है और हवा का सीधा असर इसको चोट पहुंचा सकता है।<br /><br />किताब एललुश-शराये में दर्ज हदीस के मुताबिक इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने आँखों में नमकीनी, कानों में तल्खी, नाक में तरी और मुंह में शीरनी की वजह बताते हुए फरमाया कि अल्लाह तआला ने बनी आदम की दोनों आँखों को दो चरबी के टुकड़ों से बनाया और उनमें नमकीनियत रख दी। अगर ऐसा न होता तो वह पिघल कर बह जातीं। और अगर उनमें कोई धूल का ज़र्रा पड़ जाता तो बहुत तकलीफ देता। आँखों में कोई ज़र्रा या तिनका पड़ जाता है तो नमकीनी उसको निकाल कर फेंक देती है। और कानों में जो तल्खी रखी है वह दिमाग के लिये एक परदा है। कान में अगर कोई कीड़ा मकोड़ा पड़ जाये तो वह फौरन उसमें से निकल भागने की कोशिश करता है। अगर ये तल्खी न हो तो वह दिमाग तक पहुंच जाये। और नाक में तरी को भी दिमाग की हिफाज़त के लिये रखा। अगर इसमें तरी न हो तो दिमाग गर्मी से पिघल कर बह जाये। और साथ ही ये तरी दिमाग से हर फासिद माददे को बाहर कर देती है। और मुंह में शीरनी रखी ये बनी आदम पर अल्लाह का एहसान है ताकि वह खाने पीने की लज्ज़त हासिल कर सके।<br /><br />इस तरह हम देखते हैं कि कानों में मौजूद माद्दा जो आम आदमी की नज़र में गंदगी से ज्यादा कुछ नहीं दरअसल बहुत ही अहम है और कानों की हिफाज़त करता है। इसी तरह नाक की गंदगी भी हकीकत में निहायत अहम है। आँखों के आँसुओं की अहमियत तो जग जाहिर है ही। मतलब ये हुआ कि जिस्म का कोई भी हिस्सा यहां तक कि जिस्म से निकलने वाली गंदगी जो लोगों की नज़र में बेकार सी शय है और वो यही समझते हैं कि यह किसी मशीन से निकलने वाले वेस्ट मैटीरियल की तरह है, हकीकत में ऐसा नहीं है बल्कि ये वेस्ट मालूम होने वाला मैटीरियल भी जिस्म के लिये उतना ही ज़रूरी है जितना कि आँखें, और हाथ पैर वगैरा।<br /> </div><div>जानवरों के बारे में भी इमाम इंटेलिजेंट डिज़ाइन की बात करते हैं। मसलन चीटियों के बारे में कहते हैं ‘चींटी दाने हासिल करने के बाद उन को दरमियान से दो टुकड़े कर देती है कि कहीं ऐसा न हो कि ये दाने उनके सुराखों में पानी पाकर उग आयें और उनके काम के न रहें। और जब उन दानों को तरी पहुंच जाती है तो उनको निकाल कर फैला देती है ताकि खुश्क हो जायें। फिर ये भी है कि चींटियां ऐसे मुकाम पर अपना सूराख बनाती हैं जो बुलन्द हो ताकि पानी की रौ वहां तक पहुच कर उन्हें गर्क न कर दे। मगर ये सब बातें बगैर अक्ल व फिक्र के हैं और एक फितरी व कुदरती बातें हैं जो उन की मसलहत के वास्ते खुदाए अज्जोज़ल की मेहरबानी से उन की खिलकत में दाखिल कर दी गयी हैं।’ <div><br />जानवर किस तरह अपना पेट भरने के लिये शिकार करते हैं, इसपर उनके कुछ कौल तौहीद मुफ़ज़्ज़ल में इस तरह हैं :<br />लोमड़ी, जब उसे खुराक नहीं पहुंचती तो अपने को मुरदा बना लेती है और अपना पेट फुला लेती है। इसलिए कि परिन्दे उसे मुरदा समझें। और जैसे ही परिन्दे उसको नोचने और खाने के लिये उसपर गिरते हैं, फौरन उनपर हमला करती और पकड़ लेती है।<br />दुल्फीन (डाल्फिन) जब परिन्दों का शिकार चाहता है तो उसकी इस मामले में ये तदबीर होती है कि पहले मछली को पकड़ कर मार डालता है। ताकि वह पानी पर उभरी रहे, और खुद उसके नीचे छुपा रहता है और पानी को उछालता रहता है कि कहीं उसका जिस्म न दिखाई दे। जब कोई परिन्दा उस मरी हुई मछली पर गिरता है तो उसे उचक कर शिकार कर लेता है।<br />उस जानदार को देखो जिसे लैस (शेर) कहते हैं और आम लोग उस को मक्खियों का शेर कहते हैं। ये एक किस्म की मकड़ी है जो मक्खियों का शिकार करती है। तुम देखोगे जब उसे मक्खी का एहसास होता है कि उस के क़रीब आयी, तो देर तक उसे छोड़े रखती है गोया खुद एक मुरदा चीज़ है जिसमें कुछ हरकत ही नहीं। जब मक्खी को मुतमईन पाती है और खुद से उस को गाफिल देखती है तो निहायत आहिस्ता आहिस्ता उस की तरफ चलती है। जिस वक्त इतनी करीब पहुंच जाती है कि उसे पकड़ सके तब उसपर जस्त लगाकर पकड़ लेती है और फिर इस तरह उसके तमाम जिस्म से चिमटती है कि कहीं छूट न जाये और इतनी देर तक उसको मज़बूत थामे रहती है कि उसे महसूस हो जाता है कि मक्खी अब कमज़ोर हो गयी है और हाथ पाँव उसके ढीले हो गये। फिर मुत्वज्जे होती है और उसे किसी महफूज़ मुकाम पर ले जाकर अपनी गिज़ा बनाती है और उसी के ज़रिये से उसकी हयात है।<br />लेकिन आम मकड़ी, तो वह जाला तनती और उसे मक्खियों के शिकार का जाल और फन्दा बनाती है और खुद उसके अन्दर छुप कर बैठ जाती है। ज्योंही मक्खी उसमें फंसती है, उसको लपक कर दम बदम काटना शुरू कर देती है। उसकी जिंदगी इसी तरह बसर होती है।</div></div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-38969018985460579022021-05-02T19:40:00.006+05:302021-05-02T19:40:37.928+05:30इमाम हज़रत अली (अ.) - नायाब मोती 2<p> इमाम हज़रत अली (अ.) का अपने गवर्नर के नाम सन्देश : <span class="sewb93vqwxq2c5b"></span><span class="sewb93vqwxq2c5b"></span>लोगों से अख़लाक़ के साथ मिलना, उनसे नरमी का बर्ताव करना, बड़े दिल के साथ पेश आना, और सबको एक नज़र से देखना कि बड़े लोग तुमसे अपनी नाहक़ तरफ़दारी की उम्मीद न रखें और छोटे लोग तुमसे अद्ल व इन्साफ में उनके मुक़ाबले में नाउम्मीद न हो जायें </p>... अल्लाह के बन्दों मौत और उसकी आमद से डरो. उसके लिये सरोसामान फ़राहम करो. वह आयेगी और एक बड़े हादसे और सानिहे के साथ आएगी जिसमें या तो भलाई ही भलाई होगी कि जिसमें बुराई का कभी गुज़र न होगा या ऐसी बुराई होगी कि जिसमें कभी भलाई का शायबा न होगा<br />(नहजुल बलाग़ा - खत 27)zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-63828206215970617742021-05-01T20:33:00.004+05:302021-05-01T20:33:41.945+05:30इमाम हज़रत अली (अ.) - नायाब मोती 1<p> कभी कभी बीमारी दवा और दवा बीमारी बन जाया करती है - इमाम हज़रत अली (अ.)</p>दुनिया में बस इतना ही अपना समझो जिससे अपनी आख़िरत की मंज़िल संवार सको। अगर तुम हर उस चीज़ पर जो तुम्हारे हाथ से जाती रहे वावैला मचाते हो तो फिर हर उस चीज़ पर रंज व अफ़सोस करो कि जो तुम्हें नहीं मिली - इमाम हज़रत अली (अ.)<div><br /><div><span class="sewj7acsxmyz5e3"></span><span class="sewj7acsxmyz5e3"></span>(नहजुल बलाग़ा - खत 31 वसीयतनामा) </div></div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-4877941752376002292021-04-25T22:31:00.000+05:302021-04-25T22:31:02.760+05:30आक्सीजन के बारे में इमाम हज़रत अली(अ.) का बयान<p> आक्सीजन के बारे में इमाम हज़रत अली(अ.) का बयान जो नहजुल बलाग़ा के खुत्बा - 131 मे इस तरह मौजूद है, ‘और तरोताज़ा शादाब दरख्त सुबह व शाम उसके आगे सर बसुजूद हैं और अपनी शाखों से चमकती हुई आग भड़काते हैं...’</p><div dir="ltr">इस जुमले पर गौर करने पर दो चीज़ें नज़र आती हैं। पहली ये कि इसमें शादाब दरख्तों के सुबह व शाम सजदे में होने का ज़िक्र है। और दूसरी ये कि इसमें उन दरख्तों की शाखों का चमकती हुई आग भड़काने का ज़िक्र है। यानि तरोताज़ा शादाब दरख्तों में कोई ऐसा अमल हो रहा है जो सुबह व शाम के वक्त कुछ अलग होता है और दिन के बाक़ी अवक़ात में अलग। और इस अमल से तरोताज़ा शादाब दरख्तों की शाखों से कोई ऐसी चीज़ बनती है जो चमकती हुई आग को भड़काती है।<br />अगर यहाँ इमाम(अ.) शादाब दरख्तों की बजाय सूखे दरख्तों की बात करते तो ये जुमला एक मामूली जुमला होता। क्योंकि सूखे दरख्तों से आग भड़कने की बात हर एक की समझ में आती है। लेकिन जब शादाब दरख्तों से चमकीली आग के भड़कने का ज़िक्र हो तो इस जुमले का राज़ बहुत गहरा हो जाता है। और कम से कम इमाम अली(अ.) के ज़माने की साइंस उस राज़ तक नहीं पहुंच पायी थी। <br />और वह राज़ है हरे पौधों में फोटोसिंथेसिस का और उसके ज़रिये आक्सीजन के बनने का। इमाम(अ.) के इस जुमले में फोटोसिंथेसिस के ज़रिये आक्सीजन के ही बनने का ज़िक्र हो रहा है।<br />लेकिन ये दोनों ही अमल उस वक्त रुके होते हैं या उनकी रफ्तार न के बराबर हो जाती है जब इंसान अल्लाह की इबादत में और खासतौर से सज्दे में सर रखे होता है। उस वक्त न तो वह अपनी ज़रूरत की चीज़ें हासिल करता है, न ही दूसरों की ज़रूरत की चीज़ें तैयार करता है। उसका ज़हन व जिस्म उस वक्त सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की इबादत में मशगूल होता है।<br />तरोताज़ा शादाब दरख्त भी दो तरह के अमल करते हैं। पहला तो ये कि ज़मीन से पानी व नाईट्रेट और हवा से कार्बन डाई आक्साइड लेते हैं। साथ में साँस लेने के लिये आक्सीजन लेते हैं। जबकि दूसरे अमल में सूरज की रोशनी में फोटोसिंथेसिस करते हुए आक्सीजन बनाकर हवा में छोड़ते हैं। जो कि हर तरह के जानदारों के सांस लेने में काम आती है। इसी फोटोसिंथेसिस के ज़रिये वह तमाम जानदारों के लिये फल व अनाज वगैरा की शक्ल में खाने की अशिया भी बनाते हैं। चूंकि दिन के वक्त सूरज की रोशनी ज़्यादा होती है लिहाज़ा फोटोसिंथेसिस का अमल भी तेज़ होता है। यानि दरख्त फिज़ा में आक्सीजन ज़्यादा छोड़ते हैं और इसकी बनिस्बत साँस लेने में कम आक्सीजन लेते हैं। जबकि रात में इसका उलटा होता है, क्योंकि सूरज की रोशनी की गैरमौजूदगी में फोटोसिंथेसिस का अमल रुक जाता है जबकि पौधों का साँस लेना जारी रहता है।<br />लेकिन पूरे रात दिन में दो वक्त ऐसे होते हैं जब पौधे जितनी आक्सीजन साँस के ज़रिये लेते हैं उतनी ही फोटोसिंथेसिस के ज़रिये छोड़ते हैं। ये दो वक्त हैं सुबह तड़के फजिर का वक्त और शाम को मग़रिब का वक्त। हम कह सकते हैं कि इन दोनों अवक़ात में न तो नबातात फिज़ा को कुछ देते हैं, न लेते हैं। साइंसदानों ने इसे नाम दिया है Compensation Point यह ठीक वही सिचुएशन है जैसे इंसानों में सज्दे व इबादत के वक्त होती है। <br />इस तरह इमाम अली(अ.) तरोताज़ा शादाब दरख्तों के सज्दे के ज़रिये न सिर्फ Respiration और Photosynthesis की तरफ इशारा कर रहे हैं बल्कि दिन के अलग अलग अवक़ात में इसके बदलने की भी बात कर रहे हैं।<br /><div dir="ltr">इमाम(अ.) के बयान के दूसरे हिस्से से पूरी तरह साफ हो जाता है कि इमाम अली(अ.) न सिर्फ फोटोसिंथेसिस की बात कर रहे हैं बल्कि उस अमल में आक्सीजन मिलती है, इस राज़ को भी ज़ाहिर कर रहे हैं। जैसा कि इमाम(अ.) फरमा रहे हैं कि , ‘तरोताज़ा शादाब दरख्त .... अपनी शाखों से चमकती हुई आग भड़काते हैं ’ यानि हरे व शादाब दरख्तों की शाखों में जो अमल होता है उसके नतीजे में कोई ऐसी चीज़ मिलती है जो चमकती हुई आग को भड़का देती है।</div>साइंस ने दरियाफ्त किया है कि आग को भड़काने में फिज़ा में मौजूद एक ही गैस का रोल होता है, और वह गैस है आक्सीजन। और यही गैस फोटोसिंथेसिस के अमल के दौरान हरे पौधों की शाखों पर मौजूद पत्तियों से बनकर निकलती है। साइंसी तारीख के मुताबिक आक्सीजन की दरियाफ्त सन 1772 में शीले नाम के साइंसदाँ ने की। इससे पहले कोई इस गैस के बारे में नहीं जानता था। लैवोज़िये ने इसी ज़माने में दरियाफ्त किया कि आक्सीजन जलने में मदद करती है। बिना आक्सीजन के किसी भी चीज़ का जलना नामुमकिन है। फोटोसिंथेसिस की दरियाफ्त वाॅन हेल्मोन्ट ने सत्रहवीं सदी में की। लेकिन उसे यह पता नहीं चला था कि इस प्रोसेस में आक्सीजन पैदा होती है। इसे मालूम किया जोसेफ प्रीस्टले ने अट्ठारहवीं सदी में। जब आक्सीजन की दरियाफ्त उसी वक्त में हुई थी। <br />प्रीस्टले ने बताया कि पौधे सूरज की रोशनी में आक्सीजन पैदा करते हैं। लेकिन आक्सीजन पैदा करने की प्रोसेस यानि फोटोसिंथेसिस दरख्तों की पत्तियों में होती है, जो कि दरख्तों की शाखों पर होती हैं यह बीसवीं सदी में पहले दुनिया नहीं जानती थी। बीसवीं सदी में वान नील नाम के साइंसदाँ ने इस बारे में बताया।<br />लेकिन इन सब साइंसदानों से बहुत पहले इमाम अली(अ.) पाँचवीं-छठी सदी में साफ साफ बता रहे हैं कि शादाब दरख्तों की शाखों में (फोटोसिंथेसिस का) अमल होता है जिसमें चमकती हुई आग को भड़काने वाली शय (आक्सीजन) पैदा होती है। यहाँ पर इमाम(अ.) आक्सीजन की खासियत को भी साफ साफ बयान कर रहे हैं। आक्सीजन आग को भड़काती है यानि जलने में मदद देती है, लेकिन खुद आग को पैदा नहीं करती। यानि किसी और तरीके से पैदा हुई आग को आगे जलते रहने के लिये आक्सीजन काम आती है, लेकिन हम अगर चाहें कि सिर्फ आक्सीजन की मदद से आग को पैदा भी कर दें तो यह मुमकिन नहीं। अगर ऐसा मुमकिन होता तो पूरी दुनिया में हर तरफ आग ही आग नज़र आती क्योंकि फिज़ा में बीस फीसदी आक्सीजन ही होती है।</div><div dir="ltr"><br /></div><div dir="ltr"><div><div><div style="font-family: arial,sans-serif;">इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : </div><div style="font-family: arial,sans-serif;">नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म</div><div style="font-family: arial,sans-serif;">लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी</div><div style="font-family: arial,sans-serif;">प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी, लखनऊ </div></div><div style="font-family: arial,sans-serif;"><div style="font-family: Arial,Helvetica,sans-serif;"><div>ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :</div><div><a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm&source=gmail&ust=1619456326459000&usg=AFQjCNEcjgcGzktao3kMfdnpHvfRANQWdw" href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/<wbr></wbr>ebook-zeashan-zaidi-nahjul-<wbr></wbr>balagha-ka-sciensi-ilm</a></div></div></div></div><div></div><div dir="ltr"></div></div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-38199858518611138272021-04-08T20:37:00.005+05:302021-04-08T20:37:55.208+05:30 पैगम्बर मोहम्मद (स.) कौन थे ?<p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">पैगम्बर मोहम्मद (स.) वह महापुरुष थे :</span></p><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने बेटियों को क़ब्र में ज़िंदा दफनाने की रस्म बंद की</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने उस बीमार बुढ़िया से हमदर्दी की जो रोज़ उनपर कूड़ा फेंकती थी </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिनके सच बोलने की गवाही पूरा अरब देता था चाहे उसमें दुश्मन हों या दोस्त।</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने गरीबों की मदद के लिए ज़कात जैसा सिस्टम बनाया. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने छोटे छोटे क़बीलों में बंटे पूरे अरब को एक राष्ट्र का रूप दिया. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने अफ्रीका से लाये गये हब्शी गुलामों को समाज में वही स्थान दिलाया जो वहाँ और लोगों का था. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने अरबी क़बीलों के बीच सैंकड़ों सालों से चलने वाली पुश्तैनी लड़ाइयों को ख़त्म करवाया. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने मक्के की फतह के बाद उन तमाम लोगों को आम माफ़ी दे दी जिन्होंने उन्हें और उनके मानने वालों पर अत्याचार किये था और बहुतों को शहीद कर दिया था। </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने अपनी पूरी दौलत ग़रीबों के कल्याण में लुटा दी और खुद अपना कोई निजी महल नहीं बनाया। </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने बताया की कोई दूसरे से न तो ऊंचा है और न नीचा। केवल अच्छे कर्म ही एक को दूसरे से श्रेष्ठ करते हैं। </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने न्याय के लिये ऐसे क़ानून बनाये जो सभी पर समान रूप से लागू थे।</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने युद्धकाल में मानवाधिकार के क़ानून बनाये. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिनके पास बाहर जाने वाले अपनी क़ीमती चीज़ें रखकर जाते थे और वापसी में वैसी ही पाते थे जैसी छोड़कर जाते थे। </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने बताया की तुममें बेहतर वो है जिसकी वजह से किसी को तकलीफ न पहुंचे। न तो ज़बान से और न हाथों से. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने बताया की अच्छा पुरुष वो होता है जो औरतों की इज़्ज़त करे. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने नशामुक्त समाज के क़ानून बनाये. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने रिश्वत और सूद पर रोक लगाईं. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने गलत नापतौल पर सज़ा के क़ानून बनाये.</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने जमाखोरी पर रोक लगाई और वेस्टेज से मना किया। </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने बताया की अज्ञानी न बनो और ज्ञान हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश करो. </div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने प्रॉपर्टी के न्यायपूर्ण बंटवारे के क़ानून बनाये जिसमें बेटियों का भी हक़ था.</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">जिन्होंने महिलाओं को भी तलाक़ लेने का हक़ दिलाया।</div><div dir="auto" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">और ये सब काम उन्होंने सिर्फ बीस साल की अवामी ज़िन्दगी में कर दिखाए थे जबकि उनके दुश्मन उनका जीना हराम कर रहे थे।</div>zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-4841046596470462712020-07-11T23:06:00.000+05:302020-07-11T23:06:50.085+05:30इम्यून सिस्टम के बारे में बताया इमाम हज़रत अली (अ.) ने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कोरोना महामारी के इस वक्त में जो चीज़ सबसे ज़्यादा सुनने को मिलती है वो है जिस्म का इम्यून सिस्टम। इस वक्त यही एक चीज़ है जो इस बीमारी को मात दे रही है। ये इम्यून सिस्टम क्या है? दरअसल न सिर्फ इंसानी जिस्म बल्कि दूसरे जानदारों के जिस्म में भी कुछ ऐसे सिस्टम मौजूद होते हैं जो बाहरी हमलों यानि बीमारियों के जरासीमों (बैक्टीरिया, वायरस वगैरा) से जिस्म की हिफाज़त करते हैं। ये जिस्म के लिये खतरनाक जरासीमों की पहचान करते हैं और उनके जिस्म पर असर करने से पहले ही उन्हें खत्म कर देते हैं। हमारे ऊपर न जाने कितनी बीमारियों के वायरस या बैक्टीरिया व दूसरे माइक्रोआर्गेनिज़्म हमला करते रहते हैं लेकिन जिस्म का हिफाज़ती सिस्टम उन्हें असरअंदाज़ नहीं होने देता। </div>
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<br />इम्यून सिस्टम की खोज अट्ठारहवीं सदी की मानी जाती है। उस ज़माने में पियरे लुइस नाम के साइंटिस्ट ने देखा कि कुछ कुत्तों और चूहों पर ज़हरीले साँपों के काटने का कोई असर नहीं होता। उसने अंदाज़ा लगाया कि इनके जिस्म के अन्दर कोई ऐसा सिस्टम है जो इस ज़हर का तोड़ है। </div>
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बाद में लुइस पाश्चर ने बताया कि बदन में बीमारियों के लिये निहायत महीन कीड़े, जर्म या जरासीम ज़िम्मेदार होते हैं। उसने बताया कि इस तरह के जरासीम साँस लेने में या खाते पीते वक्त हवा, पानी या खाने के ज़रिये हमारे जिस्म में पहुंच जाते हैं और बीमारियों को फैलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जिस्म में एक मज़बूत हिफाज़ती सिस्टम (<b><span style="color: #333333; font-family: "Times New Roman",serif; font-size: 15pt;">Immunological System</span></b>) पाया जाता है जो इन जरासीमों के खिलाफ लड़ता रहता है। अगर कभी ये सिस्टम कमज़ोर पड़ जाता है या किसी नये जरासीम की पहचान नहीं कर पाता तो वहीं से इंसान बीमारी में घिर जाता है। लुइस पाश्चर ने जिस्म के इम्म्यून सिस्टम का गहराई के साथ अध्ययन किया और ये पाया कि जब कोई बैक्टीरिया या वायरस वगैरा पहली बार जिस्म में दाखिल होता है तो यह सिस्टम उसकी पहचान अपनी मेमोरी में स्टोर कर लेता है और उसके खिलाफ एण्टीबाडीज़ डेवलप कर लेता है। जिससे कि दोबारा वो बैक्टीरिया या वायरस कभी दाखिल हो जाये तो इम्म्यून सिस्टम तुरंत उसे पहचान कर उसे खत्म कर दे। इसी फैक्ट का इस्तेमाल करके वैक्सीन बनायी जाती है। वैक्सीन दरअसल जिंदा या मुर्दा बैक्टीरिया या वायरस की कोई कमज़ोर हालत होती है। जिसे जिस्म में दाखिल कराया जाता है। इससे जिस्म में उस खास जरासीम के लिये इम्म्यूनिटी डेवलप हो जाती है। और आगे जब भी उस तरह के जरासीम का कोई खतरनाक हमला होता है तो जिस्म का सिस्टम उसके खिलाफ लड़ लेता है। </div>
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अब एक सवाल पैदा होता है क्या अट्ठारहवीं सदी से पहले दुनिया इम्यून सिस्टम के बारे में जानकारी रखती थी? हज़ार साल पुरानी किताब नहजुल बलाग़ा का एक बयान इसका जवाब हाँ में देता है। </div>
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इमाम हज़रत अली का ये बयान खुत्बा नंबर 81 के तौर पर इस किताब में दर्ज है और इसमें कहा गया है, ‘उसने तुम्हारे लिये कान बनाये ताकि ज़रूरी और अहम चीज़ों को सुनकर महफूज़ रखें और उसने तुम्हें आँखें दी हैं ताकि वह कोरी व बे बसरी से निकल कर रोशन व ज़ियाबार हों और जिस्म के मुख्तलिफ हिस्से ...... अलावह दीगर बड़ी नेमतों और एहसानमन्द बनाने वाली बख़्शिशों और सलामती के हिसारों के।’ इमाम अली(अ.) के इस बयान के आखिरी अलफाज़ पर गौर करें - ‘और सलामती के हिसारों के....’। इंसानी जिस्म के बारे में बताते हुए यहां पर इमाम फरमा रहे हैं कि हमारे जिस्म की सलामती के लिये परवरदिगार ने कुछ हिसार यानि घेरे (
<span style="color: #333333; font-family: "Times New Roman",serif; font-size: 15pt;">Protection covers</span> ) भी अता किये हैं। </div>
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<br />क्या मतलब है इन घेरों का? क्या हमारे जिस्म पर कछुए की तरह कोई कवच है? या हमारी खाल गेंडे की तरह सख्त है? या हाथी की तरह मोटी है? जिसपर सर्दी, गर्मी या चोट का कोई असर नहीं होता?<br />लेकिन हमारे जिस्म की न तो खाल मोटी है और न ही अल्लाह ने हमें कोई कुदरती कवच बख्शा है। तो फिर इमाम अली(अ.) के ‘सलामती के हिसार’ का क्या मतलब हुआ? साफ है कि इनसे इमाम का मतलब इम्यून सिस्टम ही था।</div>
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<br />जिस्म का ये हिफाज़ती सिस्टम कितना अहम है इसका पता एड्स जैसी बीमारियों में चलता है, जब ये घेरा टूट जाता है। उस वक्त एक मामूली वायरस या बैक्टीरिया भी जानलेवा साबित होता है। जिस्म का यही हिफाज़ती सिस्टम है ‘सलामती का हिसार’ जिसकी तरफ साइंस ने ध्यान दिया अट्ठारहवीं सदी में, यानि इमाम अली(अ.) के बयान के पूरे तेरह सौ साल बाद।</div>
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<br />जिस्म का हिफाज़ती सिस्टम ऐसा हैरतअंगेज़ सिस्टम है जो माबूद ने न सिर्फ इंसानों को बल्कि हर एक जानदार को बख्शा है। अगर ये न हो तो शायद इंसान एक दिन भी ज़िन्दा न रह सके। यह सिस्टम खामोशी से लगातार अपना काम करता रहता है और हमें जिन्दा व सेहतमन्द रखता है। अट्ठारहवीं सदी से पहले दुनिया इस सिस्टम से पूरी तरह अंजान थी लेकिन इमाम अली(अ.) की इमामत की नज़र इसे भरपूर तरीके से देख रही थी और सामने वाले को ‘....और सलामती के हिसारों’ जैसी आम फहम ज़बान में बता भी रही थी। ज़रूरत थी तो बस इमाम(अ.) के अलफाज़ पर गौर करने की।</div>
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इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : </div>
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नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म</div>
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लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी</div>
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प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी</div>
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ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :</div>
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<a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm&source=gmail&ust=1594575204996000&usg=AFQjCNFkjfg1NCUMhyTHD5qiw6Pn5xUAmA" href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/<wbr></wbr>ebook-zeashan-zaidi-nahjul-<wbr></wbr>balagha-ka-sciensi-ilm</a></div>
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zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-7509628559899954392019-05-25T16:53:00.000+05:302019-05-25T16:55:26.619+05:30इमाम हज़रत अली का बयान दुनिया के बारे में <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
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इमाम हज़रत अली (अ.) नहजुल बलाग़ा के खुत्बा नं 109 में बयान करते हैं, ‘वह (दुनिया) धोकेबाज़ है और उसकी हर चीज़ धोका।’</div>
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यकीनन पल पल बदलती दुनिया को धोकेबाज़ ही कहा जा सकता है, जिसकी इंसान ख्वाहिश करता है लेकिन नतीजे में उसे मौत के सिवा कुछ हासिल नहीं होता। लेकिन यहाँ खास बात ये है कि जदीद साइंस भी दुनिया को ‘धोका’ ही बता रही है। देखते हैं किस तरह।</div>
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हमारे आसपास दो तरह की चीज़ें पायी जाती हैं। अलमारी, मेज़, कुर्सी वगैरा को हम छूकर महसूस कर सकते हैं। ये चीज़ें जगह घेरती हैं। यानि अगर किसी जगह पर एक मेज़ रखी है, तो उस जगह पर दूसरी मेज़ या कोई और चीज़ नहीं रखी जा सकती। इस तरह की चीज़ों में हम कहते हैं कि मैटर या द्रव्यमान मौजूद है, जिसकी वजह से वह चीज़ जगह घेर रही है। इनके अलावा कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो मौजूद तो होती हैं लेकिन जगह नहीं घेरतीं। जैसे कि रोशनी, रेडियो वेव्स वगैरा। एक कामन लफ्ज़ इनके लिये एनर्जी का है। यानि एनर्जी जैसी चीज़ जगह नहीं घेरती, इसलिए इसमें द्रव्यमान नहीं होता। लेकिन अब क्वांटम फिज़िक्स के मौजूदा नज़रियात ये बता रहे हैं कि जिन चीज़ों को हम छूकर महसूस कर रहे हैं, वह सिर्फ एक धोका है और द्रव्यमान भी दरअसल एनर्जी की ही शक्ल है। यानि द्रव्यमान का अलग से कोई वजूद नहीं होता।</div>
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जदीद साइंस के मुताबिक जो चीज़ें जगहें घेरती हैं, यानि जिनमें द्रव्यमान होता है वो फर्मियान्स नाम के ज़र्रात से मिलकर बनी होती हैं। फर्मियान्स में द्रव्यमान होता है और अगर किसी जगह पर एक फर्मियान मौजूद है तो वहाँ दूसरा फर्मियान नहीं आ सकता। दूसरी तरफ बोसान्स नाम के ज़र्रात होते हैं जो ऐसी चीज़ों को बनाते हैं जो जगह नहीं घेरतीं। जैसे कि रोशनी या ताक़तें। </div>
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इनका रेस्ट मास (रुका हुआ द्रव्यमान) ज़ीरो होता है। अगर किसी जगह पर एक बोसान मौजूद है तो वहाँ दूसरा बोसॉन भी आ सकता है।<br />
जब साइंसदानों ने बिग बैंग का नज़रिया दरियाफ्त किया जिसके मुताबिक एक महाधमाके ने यूनिवर्स की पैदाइश की और उसके बाद ही द्रव्यमान रखने वाले फर्मियान्स पैदा हुए। उससे पहले पूरा यूनिवर्स एनर्जी की हालत में एक प्वाइंट में सिमटा हुआ था। यानि जितना भी द्रव्यमान पैदा हुआ वह एनर्जी के बाद ही पैदा हुआ। इस दरियाफ्त ने साइंसदानों को यह सोचने पर मजबूर किया कि हो न हो, द्रव्यमान भी दरअसल एनर्जी की ही हालत है। सन 1964 ई. में पीटर हिग्स नाम के साइंसदाँ ने ‘गॉड पार्टिकिल’ का कान्सेप्ट दिया।</div>
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उसके मुताबिक दुनिया के तमाम फर्मियान्स में द्रव्यमान खास तरह के बोसान्स के मिलने से पैदा होता है। ये बोसान्स गॉड पार्टिकिल कहलाते हैं। गॉड पार्टिकिल पूरे यूनिवर्स में हिग्स फील्ड की सूरत में बिखरे हुए हैं। जब इनमें से बहुत से पार्टिकिल एक जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं तो एक फर्मियान ज़र्रे की पैदाइश करते हैं जिसे महसूस किया जा सकता है। जबकि खुद गॉड पार्टिकिल को महसूस नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये लगातार ज़ाहिर व ग़ायब होते रहते हैं। यानि इन्हें हम एक ‘धोका’ कह सकते हैं। तो फिर इनसे बनी तमाम दुनिया भी एक ‘धोके’ के सिवा कुछ नहीं, ऐसा जदीद साइंस के नज़रिये से साबित हो जाता है।</div>
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<br />
इससे पूरी तरह अलग साइंस के कुछ और नज़रियों के मुताबिक भी दुनिया एक धोके के सिवा कुछ नहीं। साइंस ने दरियाफ्त किया है कि, ‘जिसे हम बाहरी दुनिया के तौर पर देखते व महसूस करते हैं, वह सिर्फ दिमाग़ के ज़रिये पैदा एक नज़रिया होता है जो हमारे हास्सों से आने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल पर आधारित होता है।’<br />
दुनिया के रंग जो हम देखते हैं, चीज़ों को छूकर उनकी सख्ती या नर्मी जो हम महसूस करते हैं। चीज़ों की लज़्ज़तें जो हमारी ज़बान चखती है। तरह तरह की आवाज़ें जो हम अपने कानों से सुनते हैं। खुश्बुएं जो हम सूंघते हैं और इसके अलावा अपने आसपास की हर चीज़, हमारा काम, हमारा घर, फर्नीचर, बच्चे, जिन्हें हम अपने क़रीब या दूर देखते हैं, जिनका हमें एहसास होता है वह सब सिर्फ और सिर्फ इलेक्ट्रिक सिग्नल होते हैं जिन्हें हमारे हास्से हमारे दिमाग तक भेजते हैं। </div>
<div>
<br />
इसको देखते हुए बर्टरैण्ड रसेल और एलक विटिगेन्स्टाइन का कहना है, ‘एक नींबू दरहक़ीक़त वजूद में है या नहीं और यह कैसे वजूद में आया इसे मालूम नहीं किया जा सकता। एक नींबू दरअसल एक ग्रुप होता है ज़ायके, जिसे ज़बान से महसूस करते हैं, खुशबू जिसे नाक महसूस करती है, रंग व सूरत जिसे आँख महसूस करती है, और सिर्फ यही फीचर्स नापे जा सकते हैं यानि इनका मुतालिया किया जा सकता है। साइंस कभी भी फिज़िकल दुनिया को नहीं जान सकती।</div>
<div>
<br />
फ्रेडरिक वेस्टर का कहना है कि, ‘कुछ साइंसदानों का बयान कि ‘‘इंसान एक इमेज है। सब कुछ जिसका तजुर्बा किया जाता है वह टेम्प्रेरी है और बदलने वाला है और ये पूरा यूनिवर्स एक साये की तरह है’ एक दिन साइंस यकीनन इस बयान को साबित कर देगी।’’</div>
<div>
<br />
इस तरह बहुत से साइंसदाँ इस दुनिया को एक साये की तरह मानते हैं जिसका असलियत में कोई वजूद नहीं।<br />
हम सिर्फ एक बात को ही कन्फर्मेशन के साथ कह सकते हैं कि दुनिया को देखने का तजुर्बा हर शख्स का अपना ज़ाती होता है, जिसे ‘फिश आई तजुर्बा’ भी कह सकते हैं। पानी में तैरने वाली मछली को जो दुनिया कर्व दिखाई देती है वह हमारी नज़र में सीधी होती है। बड़ी मछली व छोटी मछली को भी एक ही दुनिया अलग अलग शक्लों में नज़र आती है और उनके लिये दुनिया की वही शक्ल असली होती है जबकि हकीकत कुछ और ही होती है।</div>
<div>
<br /></div>
लिहाज़ा ये साबित हुआ कि दुनिया एक धोके (Mirage) के सिवा कुछ नहीं। इमाम अली(अ.) के फरमान पर जदीद साइंस मोहर लगा चुकी है।</div>
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इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : </div>
<div style="font-family: arial, sans-serif;">
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif;">
लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif;">
प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी</div>
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ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :</div>
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<a href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm" style="color: #1155cc;" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/<wbr></wbr>ebook-zeashan-zaidi-nahjul-<wbr></wbr>balagha-ka-sciensi-ilm</a></div>
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zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-80140720451083376452019-05-24T23:33:00.000+05:302019-05-24T23:33:18.801+05:30इमाम हज़रत अली का बयान अल्लाह की अब्दियत के बारे में <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
आज से ठीक चौदह सौ साल पहले एक ज़ालिम की ज़हर बुझी तलवार ने एक ऐसी अज़ीम हस्ती को क़त्ल कर दिया था जो हर मज़लूम का सहारा था और इंसाफ चाहने वाली हर नज़र उसी की तरफ उठती थी और उससे तलब करने वाला कभी मायूस नहीं होता था। इमाम हज़रत अली इल्म, अदालत, सखावत, बहादुरी हर गुण में बेमिसाल थे। उनके इल्म की एक हल्की सी झलक नहजुल बलाग़ा के खुत्बा नं 107 के इन अलफाज़ में मिलती है, ‘तू अबदी है जिसकी कोई हद नहीं और तू ही मंज़िले मुनतहा है कि जिससे कोई गुरेज़ की राह नहीं।’’ यानि अल्लाह के लिये किसी हद का तसव्वुर नहीं। इमाम(अ.) ने यहाँ पर ‘अब्दी’ लफ्ज़ का इस्तेमाल किया है जिसका एक खास मफहूम है।</div>
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<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
साइंसदाँ आज ये देख चुके हैं कि यूनिवर्स लगातार फैल रहा है। यानि यूनिवर्स की तमाम चीज़ें सितारे व गैलेक्सीज़ वगैरा एक दूसरे से दूर जा रहे हैं। ये फैलाव किसी गुब्बारे की तरह हो रहा है। इस फैलाव की मुनासिबत से देखते हुए अगर तारीख में पीछे की तरफ जाया जाये तो यूनिवर्स छोटा और छोटा होता जायेगा और आखिर में एक प्वाइंट में जाकर सिमट जायेगा। इस नतीजे से साइंसदानों को एक थ्योरी मिलती है ‘बिग बैंग’। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
<br />बिग बैंग थ्योरी में दिखने वाले यूनिवर्स की शुरूआत आइंस्टीन की रिलेटिविटी समीकरणों में भी दिखाई देती है और यह शुरूआत एक ऐसे प्वाइंट को दिखाती है जहाँ पर टेम्प्रेचर, घनापन (Density) और यूनिवर्स का टेढ़ापन (Curvature) सब कुछ अनन्त या ‘अबदी’ है। इस अबदी प्वाइंट को साइंस ‘सिंगुलैरिटी (Singularity)’ नाम से पुकारती है। साइंसदानों के मुताबिक इस तरह की सिचुएशन का तसव्वुर ही नहीं किया जा सकता, लिहाज़ा उनके मुताबिक थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी यहाँ पर आकर रुक जाती है। यानि शुरूआत के बाद यूनिवर्स कैसे फैला, ये तो बताया जा सकता है, लेकिन शुरूआत हुई कैसे इस बारे में बताने से थ्योरी फेल हो जाती है। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
<br />यूनिवर्स की सिंगुलैरिटी एक ऐसा प्वाइंट है जिसके बारे में बताने से रिलेटिविटी समीकरणें लाचार हैं। लेकिन साथ ही ये समीकरणें उस प्वाइंट के वजूद को कन्फर्म भी करती हैं। ठीक इसी तरह अल्लाह इस मायने में अबदी है कि दुनिया की तमाम समीकरणें उसके बारे में बताने से लाचार हैं, लेकिन साथ ही उसके वजूद को कन्फर्म भी करती हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
<br />मैथेमैटिक्स व साइंस की तमाम इक्वेशंस तरह तरह की सिंगुलैरिटीज़ से भरी पड़ी हैं। मसलन काम्प्लेक्स नंबर इक्वेशन में पोल्स (Poles) की सिंगुलैरिटी, या फिर डोमेन वाल नाम की सिंगुलैरिटी जो टू डाईमेन्शन में दिखाई देती है। फिज़िकल साइंस में ग्रैविटेशनल फील्ड (Gravitational Field) की सिंगुलैरिटी स्पेस-टाइम में नज़र आती है जहाँ पर ग्रैविटेशनल फील्ड को नापने वाली क्वांटिटीज़ इनफाईनाइट हो जाती हैं। ब्लैक होल के भीतर या शिवर्ज़चाइल्ड रेडियस से बड़े सितारे के खात्मे में भी सिंगुलैरिटी की झलक दिखती है।</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
<br />इस तरह हम देखते हैं कि अब्दियत या सिंगुलैरिटी साइंस के लिये जानी पहचानी हक़ीक़त है जो जगह जगह नज़र आती है, ऐसे प्वाइंट की शक्ल में जहाँ पर कोई इक्वेशन इन्फार्मेशन देने से लाचार हो जाती है। यानि उस प्वाइंट की इन्फार्मेशन हमारे डाईमेन्शन सिस्टम से बाहर निकल जाती है, लेकिन साथ ही ऐसे प्वाइंट का वजूद भी कन्फर्म होता है। इस तरह अब्दियत (Singularity) की ये मिसालें अल्लाह के वजूद की अब्दियत को साबित करती हैं। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
<br />हम अल्लाह की अब्दियत को इस तरह कह सकते हैं कि अगर तमाम कायनात की खिलक़तों को इक्वेशन माना जाये तो इन खिलक़त की इक्वेशन्स की सिंगुलैरिटी ही है अल्लाह की अब्दियत। खिलक़त की इक्वेशन्स एक सिंगुलैरिटी यानि खालिक़ की तरफ इशारा करती हैं, लेकिन उस खालिक़ के बारे में इन्फार्मेशन किसी इक्वेशन के ज़रिये हासिल होना नामुमकिन है। यही है खालिक़ की अब्दियत।<br />लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं लेना चाहिए कि अल्लाह किसी सिंगुलर प्वाइंट की तरह किसी जगह में सिमटा हुआ है। दरअसल यहाँ पर उस गुण की बात हो रही है जिसका नाम ‘सिंगुलैरिटी’ है। और अपने इन अलफाज़ के ज़रिये इमाम अली(अ.) ‘सिंगुलैरिटी’ के कान्सेप्ट को ज़ाहिर कर रहे हैं, जहाँ तक साइंस की पहुंच इमाम अली(अ.) के बहुत बाद के ज़माने में हुई। और खिलक़त की अब्दियत को तो साइंस ने चौदह सौ साल बाद समझा। वह भी पूरी तरह नहीं। </div>
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<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">
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इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब : </div>
<div style="font-family: arial, sans-serif;">
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif;">
लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी</div>
<div style="font-family: arial, sans-serif;">
प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी</div>
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ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :</div>
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<a href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-nahjul-balagha-ka-sciensi-ilm" style="color: #1155cc;" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/<wbr></wbr>ebook-zeashan-zaidi-nahjul-<wbr></wbr>balagha-ka-sciensi-ilm</a></div>
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zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-25461909310782549142018-03-03T22:35:00.004+05:302018-03-03T22:35:49.382+05:30कितने अक्षर हो सकते हैं एक आदर्श भाषा में?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<h3 class="gmail-post-title entry-title" style="color: #19591e; font-family: Georgia, Times, serif; font-size: 21.6px; line-height: 1.2em; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px 0px 4px; text-align: left;">
<br /></h3>
<div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
अक्षर हमारी ज़बान और भाषा के मूल होते हैं। अक्षरों के बिना कोई भी भाषा शुरू नहीं होती। अलग अलग भाषाओं में अक्षरों की संख्या अलग अलग है। अगर अंग्रेजी में 26 अक्षर हैं तो उर्दू में 38। हिन्दी में 47 अक्षर हैं तो मराठी में 52। अगर म अक्षरों से निकलने वाली आवाजों की बात करें तो अलग अलग भाषाओं के अक्षरों को समरूपता के आधार पर एक मान सकते हैं। मिसाल के तौर पर अंग्रेजी का ‘ए’, हिन्दी का ‘अ’ और उर्दू का ‘अलिफ’ एक ही माने जायेंगे। इसी तरह अंग्रेजी का ‘डी’, हिन्दी का ‘ड’ और उर्दू का ‘डाल’ एक जैसी आवाज़ निकालते हैं। </div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
कुछ ऐसी भी आवाजें होती हैं जिनके एक भाषा में तो अक्षर मिलते हैं लेकिन दूसरी में नहीं। जैसे ‘प’ के लिये हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी में तो अक्षर हैं लेकिन अरबी में नहीं। इसी तरह अंग्रेजी ‘ज़ेड’ के लिये हिन्दी में शुद्ध अक्षर नहीं है अत: उसे लिखने के लिये ज के नीचे बिन्दी लगानी पड़ती है। </div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
एक ही भाषा में कई ऐसे भी अक्षर हो सकते हैं जिनकी आवाज़ एक जैसी निकले। जैसे हिन्दी का ग और ज्ञ। या श और ष। अगर एक जैसी आवाजों वाले अक्षर कम कर दिये जायें, तो वर्णमाला में कम अक्षरों से काम चल सकता है। तो एक बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि एक आदर्श वर्णमाला में कितने अक्षर कम से कम रखे जायें कि सारी आवाजें निकल आयें? </div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
अगर अंग्रेजी को आदर्श मानें तो उसमें द, त और श के लिये अक्षर नहीं हैं। यानि इनके लिये 26 से ज्यादा अक्षर होने चाहिए। इसी तरह अरबी को भी आदर्श नहीं मान सकते वरना ‘प’ के लिये कोई अक्षर नहीं मिलेगा। उर्दू और हिन्दी में ज़रूरत से ज्यादा अक्षर हैं।</div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिये आईए रुख करते हैं इस्लाम की तरफ। </div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
<br /></div>
<span style="font-family: arial;">इस्लामी विद्वान शेख सुद्दूक (र.) की किताब ‘अय्यून अखबारुलरज़ा’ में इसके मुताल्लिक इमाम अली रज़ा (अ.स.) का कौल मौजूद है जो इस तरफ हमारी रहनुमाई करता है। इमाम अली रज़ा (अ-स-) खलीफा मामून रशीद के दौर की सबसे अहम शख्सियत थे, और पैगम्बर मोहम्मद (स.अ.) के सातवीं पीढ़ी के वंशज थे। उनके कौल के मुताबिक, ‘अल्लाह की पहली खिलक़त़ व इरादा और मशीयत हुरूफ अबजद (वर्णमाला या alphabet) हैं। जिन्हें अल्लाह ने हर चीज़ की बुनियाद और हर चीज़ की दलील और फैसला करने वाला बनाया। और इन्ही हुरूफ (अक्षरों) से हक़ व बातिल के तमाम नामों में जुदाई कायम की और इन्ही हुरूफ को फेअल व मफ़ऊल (एक्शन व रिएक्शन ), मतलब व गैर मतलब का जरिया बनाया और तमाम कामों का दारोमदार इन्ही हुरूफ पर रखा और अलग अलग हुरूफ की तखलीक से सिर्फ उन्ही हुरूफ के मतलब पेशे नज़र रखे गये।</span> </div>
<div>
<span style="font-family: arial;">और अल्लाह जो कि आसमानों और जमीन का नूर है, उस ने अपने नूर से ही अजीम (महान) हुरूफों की तखलीक़ की और ये उस का सबसे पहला काम है। यानि हुरूफ ज़ाते हक़ के फेले अव्वल के मफऊल अव्वल हैं। और यह हुरूफ ही हैं जिन पर कलाम और इबादाते इलाही का दारोमदार है। अल्लाह तआला ने तैंतीस (33) हुरूफ खल्क किये जिन में अरबी जबान में अट्ठाइस हुरूफ इस्तेमान होते हैं। और इन्ही अट्ठाइस हुरूफ में से बाइस (22) हुरूफ सूरयानी (Suryani) व इबरानी (हिब्रू) में मौजूद हैं। और पाँच दूसरे हुरूफ अज्मी (अरब से बाहर की ज़बानें जैसे अफ्रीका वगैरा की) और दूसरी ज़बानों में बोले जाते हैं। और यूं इन की कुल तादाद तैंतीस (33) है।</span> </div>
<div>
<br /></div>
<div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
इस तरह यह साफ होता है अल्लाह ने तैंतीस (33) अक्षरों की खिलकत की है। और यह खिलकत मैटर की खिलकत से भी पहले की खिलकत है। यानि इंसान की पैदाइश बाद में हुई, लेकिन उसकी ज़बान की पैदाइश उससे पहले ही हो गयी थी। अब इमाम अली रज़ा (अ-स-) के कौल के मुताबिक किसी भी भाषा में अलग अलग आवाजों के तैंतीस हुरूफ यानि अक्षर हो सकते हैं। </div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
यानि अगर किसी ज़बान में तैंतीस अक्षर अलग अलग आवाजों के लिये जायें तो उनसे पूरी ज़बान यानि भाषा मुकम्मल तरीके से बोली जा सकती है। किसी भी ज़बान में अगर इससे ज्यादा अक्षर हैं तो उनकी आवाजें एक दूसरे से मिलने लगती हैं। जो कि हमारे लिये अनुपयोगी होता है। भाषा विज्ञानी को अगर इसपर अच्छी तरह रिसर्च करें तो आवाज़ पर चलने वाले कम्प्यूटर जैसे यन्त्र विकसित किये जा सकते हैं। जो बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं। और शायद आगे चलकर ऐसे कम्प्यूटर विकसित हो जायें जो केवल हमारी आवाज पर काम करने लगें।</div>
<div style="font-family: arial; line-height: 25px;">
<br /></div>
<span style="font-family: arial;">फिलहाल आज भी साइंस इस्लामी साइंस से पीछे ही चल रही है।</span> </div>
<div>
<br /></div>
नोट : इस तरह की और जानकारियों के लिये पढ़ें मेरी किताब - आधुनिक वैज्ञानिक खोजें जो दरअस्ल इस्लाम की हैं. यह ई बुक निम्न लिंक पर उपलब्ध है :</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?hl=en&q=https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain&source=gmail&ust=1520182783791000&usg=AFQjCNH7m9x82S8gY2JJynKA4a2p-YTXOw" href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain" style="color: #1155cc;" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/e<wbr></wbr>book-zeashan-zaidi-adhunik-vai<wbr></wbr>gyanik-khojen-jo-darasl-islam-<wbr></wbr>ki-hain</a> </div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-88084295140358719712018-03-01T10:40:00.001+05:302018-03-01T10:40:34.510+05:30कहाँ बनते हैं ला ऑफ़ नेचर यानी कुदरत के कानून?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<span style="font-family: arial;"><h3 class="gmail-post-title entry-title" style="color: #19591e; font-family: Georgia, Times, serif; font-size: 21.6px; line-height: 1.2em; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px 0px 4px; text-align: left;">
<br /></h3>
<div style="font-family: Arial;">
<span style="font-family: arial;">कुदरत के कानूनों के बारे में हम बहुत कुछ जानते हैं। ज़मीन सूरज के गिर्द चक्कर लगा रही है, चाँद जमीन के गिर्द चक्कर लगा रहा है, यह कुदरत का कानून है। बकरी घास खाती है जबकि शेर गोश्त खाता है, यह भी कुदरत का कानून है। कुदरत के कानून पूरे यूनिवर्स में मौजूद हैं। इसी के नतीजे में बादल बनते हैं और उनसे पानी बरसता है। इसी के नतीजे में मुर्गी के अण्डों में से मुर्गी के ही बच्चे निकलते हैं और साँप के अण्डों में से संपोलिये निकलते हैं। डर और गुस्से में इंसान काँपने लगता है जबकि बहुत ज्यादा थक जाने पर उसमें आराम की ख्वाहिश जाग उठती है। यह भी कुदरत के ही कानून हैं।</span> </div>
</span></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<div style="font-family: arial;">
खास बात ये है कि कोई भी कुदरत का कानून अपनी मर्जी का मालिक नहीं है। <b>बल्कि हर कुदरत के कानून के पीछे मैथेमैटिक्स की बड़ी बड़ी समीकरणें छुपी हुई हैं।</b> अगर हम ग्रैविटी की बात करें तो उसके पीछे मैथ का एक नियम ‘इनवर्स स्क्वायर ला’ मौजूद है। इसी तरह इंसान का बच्चा इंसान और जिराफ का बच्चा जिराफ हो इसके पीछे भी एक निहायत मुश्किल गणित डी-एन-ए- कोडिंग की शक्ल में मौजूद होती है। यानि कुदरत के कानूनों के पीछे एक पूरी मैथेमैटिक्स कुछ इस तरह मौजूद है जिसके बारे में जानने में साइंसदाँ अगर पूरी जिंदगी गुजार दें तब भी उसकी गहराई तक नहीं पहुंच सकते। </div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
अब सवाल पैदा होता है यूनिवर्स में वह कौन सी जगह है जहाँ ये निहायत मुश्किल व अहम कानून बनते हैं। वह कौन सी जगह है जहां वजूद में आने से पहले या वजूद में आने के बाद किसी चीज का पूरा ज्ञान मौजूद है?</div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;">उस जगह का नाम है अर्श । यहीं पर बनते हैं कुदरत के कानून और यहीं पर हर मखलूक की किस्मत का फैसला होता है।</span></b> आईए समझते हैं अर्श को कुरआन और हदीस के जरिये। </div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
कुरआन में कई जगह पर अर्श और कुर्सी का जिक्र है। जैसे कि</div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: blue;">सूरे बक़रा आयत 255 : अल्लाह ही वह ज़ाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं। (वह) जिन्दा है और सारे जहान का संभालने वाला है। उसको न ऊंघ आती है न नींद। जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है उसी का है। कौन ऐसा है जो बगैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफारिश करे जो कुछ उनके सामने मौजूद है और जो कुछ उनके पीछे है जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे। उसकी कुर्सी सब आसमानों व ज़मीनों को घेरे हुए है और उन दोनों की निगेहदाश्त उसपर कुछ भी मुश्किल नहीं और वह आलीशान बुजुर्ग व मरतबा है। </span></b></div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: #674ea7;">सूरे हदीद आयत 4 : और वही तो है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छह दिन में पैदा किया फिर अर्श पर आमादा हुआ जो चीज़ ज़मीन में दाखिल होती है और जो उससे निकलती है और जो चीज़ आसमान से नाजिल होती है और जो उसकी तरफ चढ़ती है उसको मालूम है और तुम जहाँ कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है और जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है।</span></b></div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: blue;">सूरे ताहा आयत 5 : वही रहमान है जो अर्श पर आमादा और मुस्तईद है</span></b></div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
इन आयतों से कुछ ऐसा मालूम होता है कि अर्श कोई ऐसी जगह है जहाँ अल्लाह मौजूद है। और कुर्सी से उसे कुछ ऐसा लगता है जैसे यह अल्लाह के बैठने की गद्दी है जहाँ वह किसी दुनियावी बादशाह की तरह विराजमान है। लेकिन यह बात पूरी तरह गलत है। क्योंकि उसी ने (अल्लाह ने) जगह और मकान (स्पेस और डाइमेंशन) बनाये हैं। वह तो उस वक्त भी मौजूद था जब कि कोई जगह मौजूद न थी। <b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;">इसलिये वह अर्श पर मौजूद है और कुर्सी पर बैठा है यह सोचना हरगिज जायज़ नहीं। </span></b></div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: blue;">तो फिर अर्श और कुर्सी की असलियत क्या है? इसको समझने के लिये गौर करते हैं इमाम जाफर सादिक (अ-स-) के कौल पर जो शेख सुद्दूक (र.) की किताब ‘अल तौहीद’ में मौजूद है।</span></b> </div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: purple;">इमाम जाफर सादिक (अ-स-) ने फरमाया </span><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: blue;">अर्श और कुर्सी दोनों गैब में हैं (यानि आँखों को दिखाई नहीं देते)। अर्श मुल्क पर हावी है और यह मुल्क अशिया में वाके (happen) होने वाले हालात व अहवालों का मुल्क है। फिर यह कि अर्श मुत्तसिल होने में कुर्सी से बिल्कुल बेनजीर व यगाना है। क्योंकि वह दोनों गय्यूब के दरबाये कबीरा से हैं और वह दोनों भी गैब हैं। गैब में दोनों साथ साथ हैं क्योंकि कुर्सी उस गैब का जाहिरी दरवाजा है जो मतला ईजाद व इब्तिदा है और जिससे तमाम अशिया मौजूद हुईं। और </span><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: purple;">अर्श वह दरे बातिन है जिसमें हालत व कैफियत, वजूद, कद्र, हद और ऐन व मशीयत और सिफते इरादत का इल्म है और अलफाज़ व हरकात और तर्क का इल्म है और इख्तिताम और इब्तिदा का इल्म है </span><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: blue;">पस ये दोनों इल्म के करीबी दरवाजे हैं क्योंकि मुल्के अर्श मुल्के कुर्सी से सिवा है और इस का इल्म कुर्सी के इल्म से ज्यादा गैब में (छुपा हुआ) है तो इसी वजह से कुरआन में कहा गया है रब्बिल अर्शिल अज़ीम (अल्लाह महान अर्श का रब है।) यानि इस की सिफत कुर्सी की सिफत से ज्यादा अज़ीम है। और वह दोनों इस वजह से एक साथ हैं। अर्श कुर्सी का हमसाया इस तरह हो गया कि उस में कैफियत व अहवाल का इल्म है। और उस में अबवाब बिदा व मुकामात व मवाज़ा जाहिर हैं। और उन की इस्लाह व दुरुस्ती की हद है। ये दोनों पड़ोसी हैं। इन दोनों में से एक ने अपने साथी को बतौर सिर्फ कलाम उठा रखा है।</span></b></div>
<div style="font-family: arial;">
<b>आसान अलफाज़ में कहा जाये तो अर्श वह जगह है जहाँ चीजों की हालत, उनकी शुरुआत व खात्मा, उनका मशीनरी सिस्टम, यूनिवर्स की बनावट जैसी हर चीज़ का ज्ञान मौजूद है। यहीं पर शब्द पैदा होते हैं और यहीं मख्लूकात की किस्मत में तब्दीली होती है। यह चीज़ों की खिलकत का शुरूआती मरकज़ है और पूरे यूनिवर्स का कण्ट्रोल रूम है. </b></div>
<div style="font-family: arial;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: purple;">दूसरी तरफ कुर्सी एक तरह का दरवाज़ा है जहाँ से यह ज्ञान निकलकर अपने वक्त पर सामने आता है। दुनिया में जो कुछ भी होता है चीजें और जानदार जिस तरह भी बिहेव करते हैं उसका इल्म इसी कुर्सी के जरिये अर्श से निकलकर जाहिर होता है।</span></b> यहीं पर तमाम कुदरत के कानूनों का भी इल्म मौजूद है और यहीं पर ये कानून खल्क भी होते रहते हैं जो इस तमाम कायनात को चला रहे होते हैं। </div>
<span style="font-family: arial;">इन कानूनों का खालिक अल्लाह है। </span><b style="font-family: arial;"><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;">लेकिन ये सोचना गलत है कि अल्लाह अर्श नाम की जगह पर बैठकर इन कानूनों की खिलकत करता रहता है। हकीकत ये है कि वह तमाम जगहों और वक्त का खालिक है।</span></b> </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
नोट : इस तरह की और जानकारियों के लिये पढ़ें मेरी किताब - आधुनिक वैज्ञानिक खोजें जो दरअस्ल इस्लाम की हैं. यह ई बुक निम्न लिंक पर उपलब्ध है :</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?hl=en&q=https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain&source=gmail&ust=1519966948036000&usg=AFQjCNF38LlKqkiesnZ32j6ddnnJX-Uwzw" href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain" style="color: #1155cc;" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/e<wbr></wbr>book-zeashan-zaidi-adhunik-vai<wbr></wbr>gyanik-khojen-jo-darasl-islam-<wbr></wbr>ki-hain</a> </div>
<div>
<br /></div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-49077965384521310642018-02-17T20:55:00.000+05:302018-02-17T20:55:29.919+05:30किसने बताया ज़मीन गोल है और अपने अक्ष पर घूम रही है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<h3 class="gmail-post-title entry-title" style="color: #19591e; font-family: Georgia, Times, serif; font-size: 21.6px; line-height: 1.2em; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px 0px 4px; text-align: left;">
<br /></h3>
ज़मीन की शक्ल कैसी है और दिन रात कैसे बनते हैं इस बारे में साइंस हमेशा असमंजस में रही। और इसके बारे में लोगों ने तरह तरह की थ्योरीज़ ईजाद कर लीं जो वक्त के साथ साथ बदलती रहीं।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
ज़मीन को कुछ लोगों ने चौकोर बताया तो कुछ ने गोल। हालांकि जिन लोगों ने गोल बताया वह भी अपनी थ्योरी में कन्फर्म नहीं थे और अटकलों से ही यह बात कह रहे थे। ईसाईयों ने ज़मीन को एक ऐसे गोल घेरे की तरह माना जिस का केन्द्र ईसा मसीह का जन्मस्थल यानि येरुशलम था। पुराने ज़माने के जो नक्शे मिलते हैं, उसमें कहीं पर ज़मीन को चौकोर दिखाया गया है तो कहीं गोल घेरे की तरह। और कुछ ऐसे नक्शे भी मिले हैं जिसमें ज़मीन पूरी तरह गेंद की तरह गोल भी दिखाई गयी है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
यूरोपियन इतिहास के अनुसार पहली बार जिसने इस बात को पूरी तरह कनफर्म किया वह था पुर्तगाली नाविक माजीलान। जो सोलहवीं शताब्दी में जन्मा था। वह अधिकतर समुन्द्री यात्राओं पर रहता था और दूर तक फैले समुन्द्र का कर्व रूप देखकर उसने यह निष्कर्ष निकाला था।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<b>अब सवाल उठता है कि माजीलान से पहले इस्लामी विद्वानों का इस बारे में क्या विचार था? वह ज़मीन को गोल मानते थे या चपटी?</b> </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
कुछ लोग कुरआन हकीम की 71 वीं सूरे नूह की उन्नीसवी और बीसवीं आयत ‘और अल्लाह ने ही तुम्हारे लिये ज़मीन को फर्श बनाया ताकि तुम उसके बड़े बड़े कुशादा रास्तों में चला फिरा करो।’ को आधार बनाकर कहा करते हैं कि कुरआन में ज़मीन को चपटा बताया गया है। जबकि इस आयत से ऐसा कुछ नहीं साबित होता। <b>हकीकत ये है कि इस्लाम ने हमेशा ज़मीन को गोल माना। </b> </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
शेख सुद्दूक (र.) की किताब अल तौहीद का हम इससे पहले भी जिक्र कर चुके हैं। इस किताब में इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने रसूल अल्लाह मोहम्मद (स.) की एक हदीस कुछ इस तरह से बयान की है कि एक बार एक अत्तारह (इत्र बेचने वाली) रसूल अल्लाह (स.) के घर में इत्र बेचने के लिये आयी जब उसकी रसूल अल्लाह (स.) से मुलाकात हुई तो उसने अल्लाह की अज़मत के बारे में दरियाफ्त किया। जवाब में रसूल अल्लाह (स.) ने फरमाया कि अल्लाह का जलाल बड़ी शान वाला है। मैं उस के जलाल के मुताल्लिक तुमसे थोड़ा सा बयान करूंगा। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
उसके बाद रसूल अल्लाह (स.) ने फरमाया, कि <b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: purple;">'ये ज़मीन, इसमें जो कुछ है और जो कुछ इस के ऊपर है, जिस के नीचे चटियल मैदान हैं, दायरे की तरह है और ये दोनों और जो भी इन दोनों में और दोनों के ऊपर है उस के नज़दीक है कि जिस के नीचे बे आब व ग्याह मैदान में हल्क़े की तरह है और तीसरी यहाँ तक कि सातवीं तक मुन्तही होती है।...........'</span></b></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
अगर इस हदीस पर गौर किया जाये तो<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;"> ज़मीन को एक हल्के (गोले को ही उर्दू में हल्क़ा कहते हैं।) की तरह बताया जा रहा है जो एक ऐसे चटियल मैदान में मौजूद है जहाँ कुछ नहीं यानि कि स्पेस या निर्वात है।</span></b> और अगर हदीस बयान करने वालों की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाये तो मुमकिन है यहां रसूल अल्लाह (स.) का मतलब ज़मीन का दायरे की शक्ल में घूमने से भी था। लेकिन चूंकि हदीस लिखने वाले को ये बात मालूम नहीं था इसलिये उसने अपनी तरफ से अलफाज़ में कमी बेशी कर दी। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
अब बात करते हैं ज़मीन की अपने अक्ष पर घूमने की। जिसकी वजह से दिन और रात बनते हैं। वास्तव में उन्नीसवीं सदी तक दुनिया इससे अनजान थी कि ज़मीन अपने अक्ष पर किसी लट्टू की तरह घूमती है। यहाँ तक कि सत्रहवीं शताब्दी में जब न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की तब भी यह मालूम नहीं हो पाया था कि दिन रात कैसे बनते हैं। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
ज़मीन का अपने अक्ष पर घूमना कनफर्म हुआ पहली बार फोको पेंडुलम की ईजाद के बाद। इसे बनाया था लियोन फोको ने सन 1851 में। इस पेंडुलम की मदद से उसने पेरिस में कुछ तजुर्बात किये और उससे सिद्ध किया कि ज़मीन अपने अक्ष के चारों तरफ घूम रही है। उसके बाद बीसवीं शताब्दी में जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के बाहर गये तो वहाँ से उन्होंने ज़मीन के घूमने का नज़ारा किया।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<div style="line-height: 25px;">
कुरआन हकीम की 27 वीं सूरे है अलनम्ल जिसकी आयत नं- 88 इस तरह है,<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;"> ‘‘तुम पहाड़ों को देखते हो और समझते हो कि ये जामिद (ठहरे हुए हैं।) हैं। लेकिन ये बादलों की तरह चल रहे हैं। ये अल्लाह की कुदरत का करिश्मा है जिस ने हर चीज़ को हिकमत से अस्तवार किया है वह खूब जानता है जो तुम किया करते हो।’</span></b>’</div>
<div style="line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="line-height: 25px;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: purple;">आज से चौदह सौ साल पहले नाज़िल हुआ कुरआन साफ साफ बयान कर रहा है कि पहाड़ बादलों की तरह चल रहे हैं और ये तभी मुमकिन है जब पूरी ज़मीन ही बादलों की तरह चल रही हो।</span></b> अगर इसमें रसूल (स.) की हदीस शामिल की जाये तो ये गोल ज़मीन की गर्दिश साबित होती है। और <b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;">इस सच्चाई पर मोहर लगायी रसूल (स.) की पाँचवीं पीढ़ी से इमाम जाफर सादिक (अ.) ने...........</span></b> </div>
<div style="line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="line-height: 25px;">
स्ट्रेसबर्ग यूनिवर्सिटी के इस्लामिक रिसर्च सेंटर में 1940-50 के बीच एक रिसर्च हुई। इस रिसर्च में 25 विद्वानों, साइंसदानों वगैरा ने हिस्सा लिया था। यह रिसर्च हुई थी इमाम जाफर सादिक (अ.) के बारे में, और रिसर्च करने वालों में ज्यादातर तादाद गैर मुस्लिम्स की थी। इस थीसिस का ईरान में ‘मग्ज़े मुत्फक्किरे जहाने शिया-जाफर अल सादिक़ (यानि इस्लाम के शिया फिरके का दिमाग - जाफर अल सादिक अलैहिस्सलाम) नाम से फारसी में तर्जुमा हुआ। अब इसका उर्दू और हिन्दी में तर्जुमा मौजूद है। इस किताब का एक अंश इस तरह है, </div>
<div style="line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="line-height: 25px;">
‘<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: purple;">‘इमाम जाफर सादिक (अ.) ने आज से बारह सौ साल पहले ये मालूम कर लिया था कि ज़मीन अपने गिर्द घूमती है और एक के बाद एक दिन व रात का सबब ज़मीन के गिर्द सूरज की गर्दिश नहीं बल्कि अपने गिर्द ज़मीन की गर्दिश है जिस से रात और दिन वजूद में आते हैं और हमेशा ज़मीन का आधा हिस्सा तारीक और रात की हालत में और दूसरा आधा हिस्सा रोशन और दिन के आलम में रहता है। उस ज़माने में जो लोग ज़मीन के गोल होने की हकीकत से वाकिफ थे, ये जानते थे कि हमेशा ज़मीन के आदेह हिस्से में रात व आधे में दिन रहता है लेकिन वह इसका सबब सूरज की ज़मीन के चारों तरफ की गर्दिश को मानते थे।</span></b>’’</div>
<br class="gmail-Apple-interchange-newline" /><div style="line-height: 25px;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: #990000;">इमाम जाफर सादिक (अ.) के बाद दसवीं शताब्दी में अबू रेहान अल बिरूनी नामक मुस्लिम वैज्ञानिक हुआ जिसने ज़मीन की त्रिज्या त्रिकोणमिति के ज़रिये ज्ञात की</span></b> उसमें ज़मीन के अपने अक्ष पर घूमने के तथ्य का इस्तेमाल हुआ था। उसकी कैलकुलेशन से ज़मीन की त्रिज्या निकल कर आयी थी 6339.9 किलोमीटर जो मौजूदा वैल्यू 6356.7 किलोमीटर से सिर्फ 16.8 के अन्तर पर थी।</div>
<div style="line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="line-height: 25px;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;">तो इस तरह रसूल अल्लाह (स.), इस्लामी विद्वानों और इमामों को बखूबी मालूम था कि ज़मीन न सिर्फ गोल है बल्कि अपने अक्ष पर गर्दिश भी कर रही है।</span></b></div>
<div style="line-height: 25px;">
<b><span class="gmail-Apple-style-span" style="color: red;"><br /></span></b></div>
<div style="font-family: Arial;">
नोट : इस तरह की और जानकारियों के लिये पढ़ें मेरी किताब - आधुनिक वैज्ञानिक खोजें जो दरअस्ल इस्लाम की हैं. यह ई बुक निम्न लिंक पर उपलब्ध है :</div>
<div style="font-family: Arial;">
<a href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain" style="color: #1155cc;" target="_blank">https://pothi.com/pothi/book/e<wbr></wbr>book-zeashan-zaidi-adhunik-vai<wbr></wbr>gyanik-khojen-jo-darasl-islam-<wbr></wbr>ki-hain</a> </div>
<div>
<br /></div>
</div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-9686679325602975262018-02-15T20:02:00.000+05:302018-02-15T20:02:04.690+05:30क्या काबा ज़मीन का केन्द्र (Centre) है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
यह एक हकीकत है की हम जिस ज़मीन पर सांस ले रहे हैं वह गोल है और उसकी बाहरी परत पर हम और तमाम जानदार व बेजान चीज़ें ज़मीन की ग्रैविटी की वजह से तिकी हुई हैं. यह भी तय है कि किसी गोले की बाहरी सतह पर कोई भी पॉइन्ट केन्द्र नहीं होता या दूसरे शब्दों में आप किसी भी पॉइन्ट को केन्द्र मान सकते हैं.</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
लेकिन अगर हम कुछ पुरानी इस्लामी हदीसों की स्टडी करें तो कुछ इस तरह की बातें मिलती हैं :</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<div>
शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एलालुश्शाराए में दर्ज हदीस के मुताबिक हज़रत इमाम हसन बिन अली बिन अबी तालिब अलैहिस्सलाम से रवायत है कि एक मर्तबा चन्द यहूदी रसूल अल्लाह (स.) की खिदमत में आये और आपने मुख्तलिफ बातें पूछीं। उनमें से एक बात ये थी कि काबे का नाम काबा क्यों रखा गया? आनहज़रत (स.) ने फरमाया इसलिए कि ये दुनिया का विसत या मरकज़ (केन्द्र) है।</div>
<div>
इसी किताब में दर्ज एक और हदीस के मुताबिक इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने मख्लूकात से पहले काबे को खल्क किया। इसके बाद ज़मीन को खल्क किया और काबे के नीचे से ज़मीन बिछायी।</div>
<div>
उसूले काफी के बाब 124 हदीस 17 में इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम से रवायत है कि रसूल अल्लाह (स.) ने फरमाया मैं और बारह इमाम मेरी औलाद से और तुम ऐ अली ये सब इस ज़मीन के लिये मेखें और पहाड़ हैं ताकि ज़मीन अपने साकिनों के साथ हिले डुले नहीं। जब बारहवां मेरी औलाद से ख़त्म हो जायेगा तो ज़मीन मय अपने साकिनों के बैठ जायेगी और फिर उनको मोहलत न मिलेगी। </div>
<div>
तो क्या इस्लाम की इन हदीसों को ग़लत मान लिया जाये?</div>
<div>
इसके लिये एक अहम् साइंसी खोज पर चर्चा करना मुनासिब होगा। </div>
</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
अलफ्रेड वेगनर एक जर्मन साइंसदां था जिसने 1915 में पहली बार दुनिया के सामने एक थ्योरी पेश की कि सभी महाद्वीप (Continents) वक्त के साथ अपनी जगह से खिसक रहे हैं। और करोड़ों साल पहले ये सब महाद्वीप एक दूसरे से मिले हुए एक ही जगह पर मौजूद थे। और यह सुपरमहाद्वीप चारों तरफ से महासमुन्द्र में घिरा हुआ था। यह नतीजा वेगनर ने महाद्वीपों के नक्शों की स्टडी करके निकाला था। उसने कहा कि अलग अलग महाद्वीप के किनारे आपस में जोड़ने पर इस तरह फिट हो जाते हैं जैसे किसी ने खींच कर उन्हें अलग कर दिया हो। इसलिए यह मुमकिन है कि करोड़ों साल पहले वे एक दूसरे से मिले हुए हों और बाद में खिसक कर अलग हो गये हों। उसकी यह थ्योरी दुनिया के लिये नयी थी और ज्यादातर साइंसदानों ने उसकी इस बात को कुबूल नहीं किया लेकिन जब 1950 में नयी तकनीकों के ज़रिये डाटा एनेलिसिस की गयी तो उसकी बात सच साबित हुई। इस मिले हुए सुपरमहाद्वीप को नाम दिया गया पैंगिया Pangaea । बाद में ये भी अंदाज़ा लगाया गया कि पैंगिया भी कुछ पहले के महाद्वीपों के आपस में मिलने से बना था। इनके नाम गोंडवाना व यूरेमेरिका दिये गये। इस तरह पुराने महाद्वीपों से नये का बनना व बिगड़ना साइक्लिक प्रोसेस है। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
लेकिन जो सबसे खास बात महाद्वीपों के खिसकने में मिलती है वह ये कि ज़मीन की उम्र का अंदाज़ा लगभग 4-5 बिलियन वर्ष लगाया गया है। ज़मीन की ऊपरी पपड़ी जिसपर जानदार रहते हैं और जिसके ऊपर समुन्द्र तथा खुश्क जगहें मौजूद हैं ये पूरी पपड़ी प्लेट्स की शक्ल में है। अलग अलग प्लेट्स लगातार खिसक रही हैं। इनके खिसकने की वजह से ही महाद्वीप खिसक रहे हैं। और जब ये महाद्वीप एक में मिले हुए थे उस वक्त उस पूरी खुश्क ज़मीन का मरकज़ वही जगह थी जहां आज मक्का में मौजूद काबा शरीफ है। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
ऐसे में उपरोक्त हदीसें नज़र में फिर जाती हैं जो इस हकीकत को बयान करती हैं जिनकी तरफ बीसवीं सदी से पहले की सांइस अँधेरे में थी। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
उपरोक्त हदीसें ऐसे हैरतअंगेज़ इन्किशाफ कर रही हैं जिनकी हकीकत मौजूदा साइंस से ही समझ में आती है। काबा हर तरह से दुनिया का केन्द्र है। करोड़ों साल पहले के सुपर महाद्वीप पैंगिया के नक्शे में खास बात जो नज़र आती है वह ये कि मक्का यानि कि काबा उसके केन्द्र में नज़र आता है। साथ ही साइंसदानों ने अंदाज़ा लगाया है कि लगभग दो सौ बिलियन सालों के बाद सारे महाद्वीप एक बार फिर मिलकर एक हो जायेंगे। उसका उन्होंने एक अनुमानित नक्शा भी तैयार किया है। और हैरत की बात ये है कि उस नक्शें में एक बार फिर काबा केन्द्र में नज़र आ रहा है। इस तरह ये बात लगभग साबित हो जाती है कि ज़मीन जितनी बार भी एक हुई या अलग हुई हमेशा उसका मरकज़ काबा ही रहा। यही बात बगदाद यूनिवर्सिटी के जियोलोजिस्ट डा0सालेह मुहम्मद की रिसर्च में निकलकर सामने आती है। डा0सालेह के अनुसार ज़मीन की प्लेट्स जिनके ऊपर समुन्द्र और महाद्वीप मौजूद हैं, लगातार निहायत धीमी रफ्तार से अपनी जगह बदल रही हैं। साथ ही उनकी शक्ल भी बदल रही है। उनमें से कुछ आपस में जुड़कर तो कुछ टूटकर नयी प्लेट्स बनाती रहती हैं। कभी कभी इनकी रफ्तार अनियमित भी हो जाती है नतीजे में ज़लज़ले और सूनामी पैदा होते हैं। अब ये साइंसी फैक्ट है कि सभी बनती बिगड़ती प्लेटें एक मरकज़ यानि अरबियन प्लेट के चारों तरफ सुस्त रफ्तारी से घूम रही हैं यानि कि तवाफ कर रही हैं। और इस अरबियन प्लेट का मरकज़ है काबा। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
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<br /></div>
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दुनिया में जितनी पुरानी सभ्यताएं पैदा हुई जिनमें मेसोपोटामिया, सिन्धु घाटी, रोमन व अफ्रीकन सभ्यताएं शामिल हैं उनको शामिल करते हुए अगर एक दायरा खींचा जाये तो उसका मरकज़ मक्का मुकर्रमा और काबा आता है। इस केन्द्र से 8000 किलोमीटर के दायरे में सभी पुरानी सभ्यताएं विकसित हुईं।</div>
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<br /></div>
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अगर काबे को केन्द्र मानते हुए 13000 किलोमीटर का दायरा खींचा जाये तो इसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया व सभी महाद्वीपों के शहर शामिल हो जाते हैं। </div>
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एक सवाल जो साइंसदानों के लिये पहेली बना हुआ है कि इन महाद्वीपों के बनने की शुरूआत कहा से हुई? कुछ लोग कह सकते हैं कि हो सकता है ये महा ज़मीनें हमेशा से मौजूद रही हों। लेकिन ऐसा नहीं है। साइंसदानों ने जो रिसर्च की है उसके अनुसार बहुत पहले ज़मीन एक आग का गोला थी जो सूरज के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था। तो फिर ये आज की धरती की शक्ल में जिसका 71 प्रतिशत हिस्सा समुन्द्र है किस तरह बदल गयी? ज़मीन पर इतना पानी कहां से आया यह साइंसदानों के लिये एक अनसुलझी पहेली है। कुछ साइंसदानों के अनुसार ज़मीन पर से पानी हमेशा से भाप की शक्ल में मौजूद था। जबकि कुछ के अनुसार बर्फीले पुच्छल तारे (Comet) के टकराने से यह पानी धरती पर आया। इस पानी ने पूरी पृथ्वी को ठंडा किया और साथ ही तेज़ बारिश के ज़रिये समुन्द्र की शक्ल में हर तरफ फैल गया। उस वक्त खुश्की का कोई वजूद नहीं था और कोई महाद्वीप नहीं बना था। फिर एक प्रोसेस मैण्टिल कन्वेक्शन के ज़रिये समुन्द्र के बीच में ऊंची कोर्स (Cores) का निर्माण हुआ जिनके चारों तरफ धीरे धीरे चट्टानों के जमने से महाद्वीप बने। पहली कोर ज़मीन के किस हिस्से में बनी इस बारे में फिलहाल साइंस खामोश है। लेकिन जिस तरह ज़मीन की प्लेट्स अरबियन प्लेटस के चारों तरफ मौजूद हैं और दूसरे साइंसी डाटा मिल रहे हैं उससे यही अंदाज़ा लगता है कि पहली कोर वहीं पर बनी जहां काबा मौजूद है। लिहाज़ा साइंसी डाटा इस हदीस के फेवर में हैं कि ‘इसके बाद ज़मीन को खल्क किया और इसी के नीचे से ज़मीन बिछायी।’</div>
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जिस तरह ज़मीन की अलग अलग प्लेटस एक दूसरे से जुड़ी हुई मौजूद हें और उनके नीचे ज़मीन का मैटीरियल पिघली और गर्म हालत में है, उससे उन प्लेटस का टिका रहना यकीनन हैरतअंगेज़ है और रसूल (स.) की हदीस के पूरी तरह म्वाफिक है कि ‘मैं और बारह इमाम मेरी औलाद से और तुम ऐ अली ये सब इस ज़मीन के लिये मेखें और पहाड़ हैं ताकि ज़मीन अपने साकिनों के साथ हिले डुले नहीं। जब बारहवां मेरी औलाद से ख़त्म हो जायेगा तो ज़मीन मय अपने साकिनों के बैठ जायेगी और फिर उनको मोहलत न मिलेगी।’ इससे एक बात और जाहिर होती है कि एक वक्त आयेगा जब ज़मीन की प्लेटस अपनी जगह पर टिकी न रहकर धंस जायेगी और महाद्वीपों का वजूद मिट जायेगा। </div>
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<br /></div>
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और आखिर में एक खास बात और काबे के सिलसिले में। ज़मीन के चुंबकीय क्षेत्र का दक्षिणी सिरा मौजूदा वक्त में में कनाडा की दिशा में है। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र की equatorial line मक्का यानि कि काबे से होकर गुज़रती है। इस लाइन पर सभी जगह चुम्बकीय क्षेत्र का Vertical Component शून्य होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि काबा चुम्बकीय क्षेत्र के बीचों बीच (विसत में) मौजूद है। यकीनन काबे ने ज़मीन की खिलकत के सिलसिले में इतना अहम किरदार निभाया है कि उसका तवाफ करना बहुत बड़ी इबादत है।</div>
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<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
नोट : इस तरह की और जानकारियों के लिये पढ़ें मेरी किताब - आधुनिक वैज्ञानिक खोजें जो दरअस्ल इस्लाम की हैं. यह ई बुक निम्न लिंक पर उपलब्ध है :</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain</div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-60347372642912892422018-02-12T22:21:00.000+05:302018-02-12T22:21:40.694+05:30क्या ज़मीन बिछौने की तरह है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<span style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; text-align: left;">कुछ एतराज़ करने वाले जब क़ुरआन की</span><span style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; text-align: left;"> </span>सूरे बक़रा की आयत 22 ‘‘जिस ने तुम्हारे लिये ज़मीन को बिछौना बनाया’’ पढ़ते हैं तो उससे यह मतलब निकालते हैं कि कुरआन में ज़मीन को चपटा कहा जा रहा है। क्योंकि बिछौना या फर्श भी चपटा होता है। हालांकि थोड़ी सी अक्ल लगाने पर उनकी यह बात गलत साबित हो जाती हैं। क्योंकि बिछौने की सही डिफनीशन चपटा होना नहीं है बल्कि इंसान को आराम पहुंचाने वाला बिस्तर है। चपटा तो वह इसलिए होता है क्योंकि उसके नीचे का बेड चपटा होता है। हमारे इमामों ने चौदह सौ साल पहले इस आयत की जो तफसीर बतायी है उसमें भी यही मतलब लिया गया है कि ज़मीन अल्लाह ने कुछ इस तरह खल्क़ की है जो यहां बसने वाली मख्लूक़ात के लिए आरामदेय हो। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<b>शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब अल-तौहीद में इमाम अली इब्ने हुसैन यानि इमाम ज़ैनुलआबिदीन अलैहिस्सलाम ने इरशादे इलाही के बारे में फरमाया <span class="Apple-style-span" style="color: #660000;">‘‘जिस ने तुम्हारे लिये ज़मीन को बिछौना बनाया (सूरे बक़रा आयत 22)’’ कि अल्लाह ने जानदारों के तब्कों के मुताबिक मुनासिब तुम्हारे अजसाम के म्वाफिक बनाया। उसको शदीद गर्मी और हरारत वाला नहीं बनाया कि जो तुम को जला दे और न इन्तिहाई ठण्डक वाला बनाया कि तुमको जमा दे। और न इतनी ज़बरदस्त खुश्बू रखी जो तुम्हारी खोपड़ियों में दर्द पैदा कर दे। और न उसको शदीद फित्नों वाली बनाया कि वह तुमको हलाक़ कर दे और न इतना ज्यादा नर्म बनाया जैसे कि पानी कि वह तुमको गर्क कर दे। और न इतना सख्त बनाया कि तुम्हारे हरकत करने मकानों व इमारतों को बनाने में रुकावट हो और तुम्हारे मुर्दों की कब्र बनाने में रुकावट हो। बल्कि अल्लाह अज्ज़ोजल ने उसमें ऐसी मज़बूती व पायदारी रखी है कि जिससे तुम फायदा हासिल करते हो। और मज़बूती के साथ चिमटे रहते हो। और इसी पर तुम्हारे बदन और तुम्हारी इमारात कायम रहती हैं। इसी वजह से ज़मीन को तुम्हारे लिये फर्श (बिछौना) करार दिया है।’’</span></b></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
और जदीद साइंस पूरी तरह इमाम के क़ौल को साबित करती है। </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
इंसान का वजूद जिन बातों पर निर्भर करता है और साथ साथ दूसरी मख्लूकात का वजूद, उन बातों की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट है। इंसान के वजूद के लिए कार्बन, हाईड्रोजन और आक्सीज़न ज़रूरी है और बहुत कम मात्रा में लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस वगैरा चाहिए। साथ ही कुछ का मौजूद न होना भी जरूरी है। जैसे हमें मीथेन, सल्फर डाई आक्साइड या अमोनिया का वायुमण्डल नहीं चाहिए, जैसा कि सौरमंडल के दूसरे ग्रहों पर है। साथ ही ग्रह का तापमान एक निश्चित सीमा में बना रहना चाहिए वरना हमारे शरीर की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं (Bio-Chemical Processes) नहीं चल पायेंगी।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
टेम्प्रेचर मेन्टेन रखने के लिए ग्रह को एक समान एनर्जी देने वाला तारा चाहिए। ऐसा तारा जिसका जीवनकाल काफी लम्बा हो और वह बिना उतार चढ़ाव के ग्रह को नियमित रूप से ऊर्जा दे। इसके लिए ग्रह की कक्षा भी दीर्घवृत्त न होकर वृत्ताकार होनी चाहिए। ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण इतना होना चाहिए कि वह वायुमंडल को बाँध कर रख सके। लेकिन यह गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा भी नहीं होना चाहिए कि चलने फिरने में हड्िडयां टूटने की नौबत आ जाये।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
हमारी ज़मीन और सूरज इन सब शर्तों को बखूबी पूरा करते हैं इसलिए यहां हमारा और दूसरे जानदारों का वजूद है। क्या ऐसा नहीं लगता कि किसी ने अपनी कुदरत से ज़मीन को हम सब लोगों के निवास के काबिल बनाया? ऐसी ज़मीन जहां बहुत सी आसानियाँ हमें हासिल हैं। मिसाल के तौर पर बाहरी वायुमंडल में मौजूद ओजोन की परत सूरज से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी हिफाज़त करती है। ज़मीन पर ताकतवर चुम्बकीय क्षेत्र इस पर मौजूद जानदारों को कास्मिक किरणों और सबएटामिक पार्टिकिल्स की बमबारी से बचाता है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
इसी तरंह आम नियम है कि ताप घटने के साथ साथ द्रव का घनत्व बढ़ता है और जब वह ठोस में बदलने लगता है तो उसका घनत्व द्रव रूप की अपेक्षा कम हो जाता है और भारी होकर वह द्रव की सतह में बैठ जाता है। लेकिन पानी इसका अपवाद है। ताप घटने पर इसका घनत्व पहले चार डिग्री सेण्टीग्रेड तक बढ़ता है लेकिन ताप और कम होने पर इसका घनत्व फिर घटने लगता है। यही कारण है कि बर्फ पानी से हल्की होती है। पानी के इस गुण के कारण ठण्डे स्थानों में जब पूरा तालाब बर्फ में परिवर्तित हो जाता है तो नीचे की सतह पहले की तरंह द्रव रूप में रहती है और उसमें उपस्थित मछलियां अपना जीवन यापन करती रहती हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
ज़मीन सूरज से एक संतुलित दूरी पर मौजूद है। अगर यह सूरज के पास होती तो ज्वारीय बलों (Tidal Forces) के कारण इसकी घूर्णन गति समाप्त हो जाती। नतीजा यह होता कि ग्रह के एक तरफ हमेशा दिन होता जबकि दूसरी तरफ रात। फलस्वरूप दोनों तरफ टेम्प्रेचर चरम सीमा पर पहुंच जाता। और आखिर में एक तरफ पानी और वायुमण्डल समाप्त हो जाते जबकि दूसरी ताफ जमकर बर्फ में परिवर्तित हो जाते। स्पष्ट था कि फिर जीवन पनपने का कोई आसार ही नहीं रह जाता।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial; font-size: 14px; text-align: justify;">
यहां पर लगता है कि ज़मीन को जीवन क्षेत्र बनाने के लिए पूरी तरंह ‘सुविधायुक्त’ किया गया। और इसी की तरफ आयत और इमाम की हदीस इशारा कर रही है, ‘‘जिस ने तुम्हारे लिये ज़मीन को बिछौना बनाया’’</div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-27119542742095270532017-09-24T11:11:00.000+05:302017-09-24T11:11:34.089+05:30इमाम हज़रत अली(अ.) का साइंसी इल्म - Part 1<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; margin-bottom: 6px;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
इमाम हज़रत अली(अ.) के कलाम नहजुलबलाग़ा के पहले खुत्बे में बयान है कि ‘‘हर सिफत शाहिद है कि वह अपने मौसूफ की ग़ैर है और हर मौसूफ शाहिद है कि वह सिफत के अलावा कोई चीज़ है।’’</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यहाँ पर इमाम अली (अ.) यूनिवर्स की बहुत बड़ी हकीक़त को ज़ाहिर कर रहे हैं। सिफत यानि कि गुण (property) और मौसूफ, जिसमें वह गुण पाया जाये। गुस्सा, प्यार, ताकत, कमज़ोरी वगैरा गुण हैं, और इंसान में ये गुण हैं इसलिये वह मौसूफ है। ग्रैविटेशन फोर्स एक गुण है और माद्दा जिसमें ये गुण पाया जाता है मौसूफ है। ऑक़्सीजन मौसूफ है <span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;">और ‘जलने में मदद देना’ इसकी सिफत यानि गुण है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;"><br /></span></div>
<span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-family: inherit;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">अब यूनिवर्स की हकीक़त ये है कि हर मौसूफ को उसकी सिफत से अलग किया जा सकता है। और ये बात साइंटिफिक एक्सपेरिमेन्ट्स से ज़ाहिर होती है। किसी चुम्बक का चुम्बकीय गुण एक खास टेम्प्रेचर (क्यूरी टेम्प्रेचर) के बाद खत्म हो जाता है। इलेक्ट्रान पर निगेटिव चार्ज होता है। देखा ये गया है कि घूमने (spin) की एक खास कण्डीशन में उसका निगेटिव चार्ज खत्म हो जाता है। हर चीज़ में कुछ ऐसी सिफत होती हैं जिनसे उस चीज़ की पहचान होती है। इसके बावजूद उस चीज़ से वे सिफतें हटाई जा सकती हैं। हालांकि अभी साइंस उस लेवेल तक नहीं पहुंच पायी है। लेकिन हो सकता है आने वाले कल में ऐसी बॉडीज़ बनने लगें जिसमें ग्रैविटेशन का गुण न मौजूद हो। ज़ाहिर है कि इसका रिवर्स भी मुमकिन होना चाहिये। यानि ग्रैविटेशन फोर्स मौजूद होना चाहिये बिना किसी बॉडी की मौजूदगी के। बिना चुम्बक चुम्बकीय गुण मौजूद होना चाहिये। साइंस अभी इसपर रिसर्च कर रही है कि क्या बिना किसी ज़रिये (source) के चुम्बकीय क्षेत्र पैदा किया जा सकता है? या ग्रैविटेशन फोर्स ऐसी जगह मौजूद हो सकता है जहाँ किसी बॉडी का असर न हो?</span><span style="font-family: inherit;"> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrhWrc5ngNfRVfYAvM68veqaoiX72j-KE5WmJ7d_KGNdZPzOZMZAO2OA0RieZOXuCbI0ZJpvzxMj343UBw1ISPhjs5QW9MEifjQH2BEe4iKMsjtcuATZG4x1XTq7nSXBzM3HKiP1cVen0/s1600/20170803_092242.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="900" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrhWrc5ngNfRVfYAvM68veqaoiX72j-KE5WmJ7d_KGNdZPzOZMZAO2OA0RieZOXuCbI0ZJpvzxMj343UBw1ISPhjs5QW9MEifjQH2BEe4iKMsjtcuATZG4x1XTq7nSXBzM3HKiP1cVen0/s320/20170803_092242.jpg" width="180" /></a></div>
</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">कुछ हद तक साइंस को इसमें कामयाबी मिली है। साइंस उन ज़र्रात (particles) को ढूंढने में कामयाबी पा चुकी है जो इलेक्ट्रोमैग्नीटिक फोर्स और न्यूक्लियर फोर्स को पैदा करने के जिम्मेदार हैं। ये ज़र्रात हैं फोटॉन और मेसॉन। और माना जाता है कि ग्रैविटेशन फोर्स की पैदाइश के लिये ग्रैविटॉन नाम के ज़र्रे ज़िम्मेदार हैं। ज़ाहिर है कि चूँकि ये ज़र्रे उन बॉडीज़ से अलग हैं जिनमें ये ताकतें मौजूद होती हैं। इसका मतलब हुआ कि इन ताकतों को उन बाडीज़ से अलग करके पैदा किया जा सकता है। इस तरह इमाम हज़रत अली(अ.) की इमामत का इल्म चौदह सौ साल पहले उन ज़र्रात को देख रहा था जो सिफत की पैदाईश करते हैं।</span></div>
</span><br />
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब :</span><span style="font-family: inherit;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">नहजुलबलाग़ा का साइंसी इल्म</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी, रुस्तम नगर, दरगाह हज़रत अब्बास, लखनऊ - 226003</span><span style="font-family: inherit;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;">मो. : 9415102990, 9369444864</span></div>
</div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-7778768450627012172017-07-09T20:45:00.000+05:302017-07-09T20:45:30.077+05:30नहजुल बलाग़ह का साइंसी इल्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif;">
मेरी नई किताब "<b>नहजुल बलाग़ह का साइंसी इल्म</b>" का कवर पेज.</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsoCJhK0cTvInm_Tthy4bQcOQS7czfbdjQHeR-CvBTl0D1LzB0NOtkXWXOOi_xVTxrAfenrXzEWXecdx2bNfZYKNH2fQITX1kwZSea7eIKw5d5HRfjDLwyxLctBxCuBWIW0p9kNs0wMXA/s1600/nahjulcover+copy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="880" data-original-width="596" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsoCJhK0cTvInm_Tthy4bQcOQS7czfbdjQHeR-CvBTl0D1LzB0NOtkXWXOOi_xVTxrAfenrXzEWXecdx2bNfZYKNH2fQITX1kwZSea7eIKw5d5HRfjDLwyxLctBxCuBWIW0p9kNs0wMXA/s320/nahjulcover+copy.jpg" width="216" /></a></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif;">
किताब शीघ्र ही आपके सामने होगी। जिसके प्रकाशक हैं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif;">
अब्बास बुक एजेंसी,<br />दरगाह हज़रत अब्बास, लखनऊ<br />Ph : (+91) 9415102990, (+91) 9369444864</div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-26692191293523843152017-06-17T13:25:00.000+05:302017-06-17T13:25:34.664+05:30ज़मीन का वायुमण्डल, आसमान का रंग और सूरज की परिधि इमाम हज़रत अली (अ.) ने बताई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश्शरा में दर्ज हदीस के मुताबिक़ एक मरतबा हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम मस्जिदे कूफा में थे। मजमे से एक मर्द शामी उठा और अर्ज किया या अमीरलमोमिनीन में आपसे चन्द चीजों के मुताल्लिक कछ दरियाफ्त करना चाहता हूं। आपने फरमाया सवाल करना है तो समझने के लिये सवाल करो। महज़ परेशान करने के लिये सवाल न करना। उसके बाद सायल ने सवाल किये उनमें से तीन सवाल इस तरह थे,</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
उसने सवाल किया कि ये दुनियावी आसमान किस चीज़ से बना? आपने फरमाया आँधी और बेनूर मौजों से। उसने सूरज का तूल व अर्ज (परिधि) के मुताल्लिक पूछा। आपने फरमाया नौ सौ फरसख को नौ सौ फरसख से ज़र्ब दे दो। उसने सातों आसमान के रंग और उनके नाम दरियाफ्त किये। तो आपने फरमाया पहले आसमान का नाम रफीअ है और उसका रंग पानी व धुएं की मानिन्द है।....</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
अब हम इन सवालो व जवाबों को मौजूदा साइंस की रोशनी में गौर करते हैं।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
अगर ज़मीन के आसमान की बात की जाये तो पूछने वाले का मतलब वायुमंडल से था जो ज़मीन के ऊपर हर तरफ मौजूद है। हम जानते हैं कि वायुमंडल में गैसें हैं और साथ में आयनोस्फेयर है जहां पर आयनों की शक्ल में गैसों की लहरें हैं। ये गैसें कभी एक जगह पर तेजी के साथ इकट्ठा होती हैं तो आँधियों की शक्ल में महसूस होती हैं और कभी बिखरती है तो मौसम पुरसुकून होता है। इसके बावजूद फिज़ा कभी इन गैसों से खाली नहीं होती। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
अगर आम आदमी को समझाने के लिये कहा जाये तो ज़मीन की फिज़ा में आँधियां हैं और लहरें या मौजें। चूंकि ये मौजें रोशनी की नहीं है बल्कि मैटर की हैं लिहाज़ा हम इन्हें बेनूर मौजें कह सकते हैं। और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के जवाब में आ रही है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
सवाली का दूसरा सवाल सूरज के तूल व अर्ज़ यानि कि परिधि के मुताल्लिक था। जवाब में हज़रत अली (अ.) ने फर्सख में ये लम्बाई बतायी जो उस वक्त लम्बाई नापने की आम यूनिट थी। फर्सख फासला नापने की फारसी यूनिट होती है। ये उस फासले के बराबर होती है जो एक घोड़ा एक घण्टे में तय करता है। 19 वीं सदी में इसे 6.23 किलोमीटर के बराबर माना गया। जबकि अरब में इसे 4.83 किलोमीटर के बराबर माना गया। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
सूरज की डायमीटर नासा के अनुसार 1391000 किलोमीटर है। इस तरह इसकी परिधि की लम्बाई हुई 4370000 यूनिट्स। 900 को 900 से ज़र्ब देने पर नतीजा आता है 810000 फर्सख। अगर इसे फारसी यूनिट के अनुसार किलोमीटर में बदला जाये तो नतीजा आयेगा 5046300 यूनिट्स। जबकि अरबी यूनिट के अनुसार नतीजा होगा 3912300 यूनिट्स। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
अगर फर्सख को किलोमीटर में बदलने में अलग अलग जगहों के फर्क को नज़र में रखा जाये तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सरूज की परिधि के बारे में जो बताया वह पूरी तरह मौजूदा साइंस की कैलकुलेशन से मैच कर रहा है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
चाँद का साइज़ बताने में कई दूसरे साइंसदानों जैसे कि आर्यभट वगैरा का भी जिक्र आता है। और ये उतनी हैरत की बात भी नहीं क्योंकि चाँद की तरफ नज़र की जा सकती है और यह ज़मीन के करीब भी है। लेकिन सूरज जिसकी तरफ नज़र टिक ही नहीं सकती, उसके बारे में इतनी सटीक कैलकुलेशन यकीनन इमाम अली अलैहिस्सलाम की इमामत का चमत्कार ही कहा जायेगा। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
तीसरा सवाल आसमान के रंग के मुताल्लिक था। जब हम ज़मीन पर रहते हुए आसमान की तरफ नज़र करते हैं तो यह नीले रंग का दिखाई देता है। जबकि शाम या सुबह के वक्त इसका रंग थोड़ा बदला हुआ लाल या काला मालूम होता है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
लेकिन जो लोग स्पेसक्राफ्ट के ज़रिये ज़मीन से बाहर जा चुके हैं। उन्हें न तो ये आसमान नीला दिखाई दिया और न ही लाल। इसलिए क्योंकि ये रंग ज़मीन पर इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि ज़मीन का वायुमंडल सूरज की रोशनी में से खास रंग को हर तरफ बिखेर देता है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
चूकि ज़मीन के बाहर वायुमंडल नहीं है इसलिए वहां ये रंग नहीं दिखाई देते। तो फिर वहां कौन सा रंग दिखाई देगा? ज़ाहिर है कि वहां चारों तरफ ऐसा कालापन दिखाई देगा जिसमें पानी की तरह रंगहीनता (colorlessness) होगी। यही रंग बाहर जाने वाले फिज़ाई मुसाफिरों ने देखी और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने जवाब में बता रहे हैं कि पहले आसमान का रंग पानी व धुएं की मानिन्द है। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
पानी का रंग नहीं होता और धुएं का रंग काला होता है। दोनों को मिक्स करने पर जो रंग बनता है वही फिज़ाई मुसाफिरों को ज़मीन से बाहर निकलने पर दिखाई देता है।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
जो बातें आज साइंसदानों को ज़मीन से बाहर निकलने पर मालूम हुई हैं वह इमाम अली अलैहिस्सलाम चौदह सौ साल पहले मस्जिद में बैठे हुए बता रहे थे। और इस्लाम के सच और इल्म की गवाही दे रहे थे। वह इल्म जो दुनिया के सामने चौदह सौ साल बाद आने वाला था।</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
-----</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;">
इस तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिये मेरी किताब "51 जदीद साइंसी तहक़ीक़ात जो दरअस्ल इस्लाम की हैं" देखें जो अब्बास बुक एजेंसी लखनऊ ने प्रकाशित है. </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-28123023644982743822017-06-02T12:18:00.000+05:302017-06-02T12:18:33.264+05:30मोर मोरनी की किवंदती और इमाम हज़रत अली(अ.)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
मोर मोरनी की कहानी भी बहुत
पुरानी किवंदती है और हज़ारों साल से बड़े बड़े जस्टिस शर्मा जैसे विद्वान भी
इसे सच मानते आ रहे हैं। लेकिन आज से चौदह सौ साल पहले ही इस्लाम के
धर्माधिकारी इसे गलत बता चुके हैं। आज से चौदह सौ साल पहले का इमाम हज़रत
अली(अ.) का मोर के बारे में यह बयान किताब नहजुल बलाग़ा में खुत्बा नंबर 163
में दर्ज है। किताब ‘नहजुल बलाग़ा’ आसानी से हर जगह लगभग हर भाषा में
उपलब्ध है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />इमाम अली(अ.) नहजुल बलाग़ा के इस खुत्बे में कहते हैं कि
‘‘मोर भी और मुरगों की तरह जफ्ती खाता है और (अपनी मादा को) गर्भवती करने
के लिये जोश व हीजान में भरे हुए नरों की तरह जोड़ खाता है। मैं इस (बयान)
के लिये ‘एक्सपेरीमेन्ट’ को तुम्हारे सामने पेश करता हूं। अटकल लगाने वालों
की ये सिर्फ अटकल या वहम है कि वह अपने आँख के बहाये हुए उस आँसू से अपनी
मादा को अण्डों पर लाता है कि जो उसकी पलकों के दोनों किनारों में आकर ठहर
जाता है और मोरनी उसे पी लेती है और फिर वह अण्डे देने लगती है।’’<br />इस
तरह चौदह सौ साल पहले ही इमाम अली(अ.) मोर के बारे में उस ज़माने में फैली
गलत मान्यताओं को नकार रहे हैं। गलत मान्यता ये है कि मोर अपनी आँखों में
बसे आँसुओं के क़तरे से मोरनी को अण्डे देने के लिये तैयार करता है। जब
मोरनी उन आँसुओं को पी लेती है तो अण्डे देने लगती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />इमाम अली(अ.)
फरमाते हैं कि इन बातों में कोई सच्चाई नहीं। हक़ीक़त ये है कि मोर व मोरनी
के बीच उसी तरह ताल्लुक क़ायम होता है जिस तरह दूसरे परिन्दों में नर व मादा
के बीच, जैसे कि मुर्ग व मुर्गी। </div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-80286695496351262262016-06-14T18:13:00.000+05:302016-06-14T18:13:14.444+05:30आधुनिक वैज्ञानिक खोजें जो दरअस्ल इस्लाम की हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">इस किताब में ऐसी आधुनिक साइंसी खोजों को शामिल किया गया है जिनके बारे में पुरानी इस्लामी किताबों में ज़िक्र मौजूद है. मिसाल के तौर पर इसके कुछ लेख इस तरह हैं :</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* क्या बिग बैंग थ्योरी गलत है?</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* क्या 'ग्रैंड डिजाइन' स्टीफन हॉकिंग ने चोरी की है?</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* डी.एन.ए. का कांसेप्ट दिया इस्लाम ने.</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">*</span><span style="font-family: Mangal, serif;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif;">क्या कोशिका की खोज रोबर्ट हुक ने की थी? </span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* क्या क्वासर के बारे में इस्लाम कुछ कहता है?</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* डार्क मैटर की हकीकत बताता है इस्लाम.</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* इमाम अली (अ.) ने पेश की जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी.</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;">* इस्लाम ने ही पेश की महाद्वीपों के एक होने की थ्योरी.</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px;">इसका ई संस्करण प्रकाशित हो चुका है जिसे आप निम्न फोटो लिंक से डाउनलोड करके स्मार्ट फोन, किंडल या कंप्यूटर पर पढ़ सकते हैं.</span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-adhunik-vaigyanik-khojen-jo-darasl-islam-ki-hain" target="_blank"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEdIiU3jExqG3-zKFA982MNPGMQjiW3YDd7xlmAc_0xd1oh819kl2VYjdC7Nzf9PvOw1WOskSzzljkx3KawAjiFDTIwEIYZZ8KGCIuqbnBnxTNurhOoDYeyryErd8yMhDpBoZhJDSq1jg/s320/AdhunikVayganikCover.jpg" width="209" /></a></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px;"><br /></span></span></div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-29080443015008824832016-05-27T23:11:00.000+05:302016-05-28T10:17:24.930+05:30 "ख़ुदा को किसने बनाया?"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: "mangal" , serif;"><span style="font-size: 13.3333px;">जब किसी नास्तिक से कहा जाता है कि पूरी दुनिया ख़ुदा ने बनाई तो वह पलट कर सवाल करता है की फिर ख़ुदा को किसने बनाया?</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: "mangal" , serif;"><span style="font-size: 13.3333px;">इस तरह के तमाम अटपटे सवालों के जवाब इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक़ देती है किताब - "ख़ुदा को किसने बनाया?"</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: "mangal" , serif;"><span style="font-size: 13.3333px;">इसका ई संस्करण प्रकाशित हो चुका है जिसे आप निम्न फोटो लिंक से डाउनलोड करके स्मार्ट फोन, किंडल या कंप्यूटर पर पढ़ सकते हैं.</span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://pothi.com/pothi/book/ebook-zeashan-zaidi-khuda-ko-kisne-banaya" target="_blank"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEieJhMvbkMYqDDia7JIX7oMzA2s0755iduSY-VvePnO2nsVdFZc7SUErHHjDtp3zawNGbdg9ixgbbipLT8jPfIxWF25tA3ESPBh-TxiHkSSEbN6H2uf_ga2xN08OS32v_7AmDUwpQxUDMQ/s320/KhudaKoCoverf.jpg" width="186" /></a></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="font-family: "mangal" , serif;"><span style="font-size: 13.3333px;"><br /></span></span></div>
<div>
<span style="font-family: "mangal" , serif;"><span style="font-size: 13.3333px;"><br /></span></span></div>
</div>
zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-19303131829276300612016-04-24T13:48:00.000+05:302016-04-24T13:48:04.239+05:30क्या कुरआन में गलतियां हैं? (भाग-3)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
उस शख्स ने कुरआन पर अगला एतराज़ कुछ यूं किया, ‘(अश-शूरा 51) और किसी आदमी के लिये ये मुमकिन नहीं कि खुदा उससे बात करे मगर 'वही' (दिल में सीधे उतारना) के जरिये या पर्दे के पीछे से, या कोई रसूल (फ़रिश्ता भेज दे) यानि वह अपने अज्ऩ व अख्तियार से जो चाहता है पैगाम भेजता है।’ और उस ने फरमाया ‘(निसा 164) अल्लाह ने मूसा से बातें कीं।’ उसने ये भी कहा, ‘(आराफ 22) और उन दोनों के परवरदिगार ने उन को आवाज़ दी।’ और उसने ये भी फरमाया ‘(अहज़ाब 59) ऐ नबी तुम अपनी बीबियों और लड़कियों से कह दो।’ और उसने ये फरमाया, ‘(मायदा 67) ऐ रसूल जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से नाजिल हुआ है उसे पहुंचा दो।’ तो ये सब बातें कैसे एक साथ सच हैं?</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
अब जवाब में इमाम हजरत अली (अ-) ने फरमाया, कि किसी बशर के लिये मुनासिब नहीं कि अल्लाह से बगैर 'वही' कलाम करे और ऐसा वाकिया होने वाला नहीं है मगर पर्दे के पीछे से या किसी फ़रिश्ते को भेजे फिर वह उसकी इजाज़त से जो चाहे वही करे। इस वास्ते अल्लाह ने अपने लिये ‘बहुत बलन्द’ फरमाया है। रसूल पर आसमानी रसूलों (फरिश्तों) के जरिये वही की जाती थी। तो फ़रिश्ते ज़मीन के रसूलों तक पहुंचते थे। और ज़मीन के रसूलों और उस के दरमियान गुफ्तगू बगैर उस कलाम के होती थी जो आसमानी रसूलों के जरिये भेजा जाता था। रसूल अल्लाह (स-अ-) ने फरमाया ऐ जिब्रील क्या तुमने अपने रब को देखा है? तो जिब्रील ने अर्ज़ किया कि बेशक मेरा रब देखा नहीं जा सकता। तब रसूल (स-अ-) ने फरमाया तुम ‘वही’ कहां से लेते हो? उन्होंने कहा इस्राफील से लेता हूं। आप ने फरमाया इस्राफील कहां से लेते हैं? जिब्रील कहने लगे कि वह उस फ़रिश्ते से लेते हैं जो रूहानीन से बुलन्द है। आप ने फरमाया कि वह फ़रिश्ता कहां से लेता है? जिब्रील ने कहा कि उस के दिल में तेजी के साथ बगैर किसी रुकावट के ऊपर से आती है तो यही ‘वही’ है। और यह अल्लाह का कलाम है और अल्लाह का कलाम एक तरह का नहीं होता। वह रसूलों से बात करता है तो वह उसी की तरफ से होता है और उस के जरिये से वह दिल में डालता है। और उसी की तरफ से रसूलों को ख्वाब दिखाता है और उसी की तरफ से ‘वही’ लिखी है जो तिलावत की जाती है और पढ़ी जाती है वही कलाम अल्लाह है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
आगे उस शख्स ने कहा कि मैं अल्लाह को कहते हुए पाता हूं, ‘(यूनुस 61) और तुम्हारे रब से न ज़मीन में न आसमान में जर्रा बराबर शय गायब रह सकती है।’ और वह फरमाता है ‘(आले इमरान 77) और अल्लाह कयामत के दिन उन की तरफ रहमत की नज़र से न देखेगा और न उन को पाक करेगा।’ </div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
वह किस तरह नज़र व रहमत करेगा जो उस से छुपे होंगे?</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
इसके जवाब में इमाम हज़रत अली (अ-स-) ने फरमाया, ‘कि हमारा रब इसी तरह का है कि जिस से कोई शय गायब व पोशीदा नहीं है और ये क्योंकर हो सकता है कि जिसने चीजों को खल्क किया उस को मालूम न हो कि उसने क्या खल्क फरमाया और वह तो सब से बड़ा पैदा करने वाला इल्म वाला है। उसके दूसरे जुमले का मतलब है वह बता रहा है कि उन को खैर में से कुछ नहीं पहुंचेगा जैसे कि कहावत है क़सम खुदा की फलां हमारी तरफ नहीं देखता। इस से वह ये मतलब लेते हैं कि उससे हमें खैर में से कुछ नहीं पहुंचता। तो इसी तरह अल्लाह का अपनी मखलूक के साथ नज़र से मतलब है। उस की मखलूक की तरफ नज़र से मुराद रहमत है।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
इसके बाद उस शख्स ने कहा, ‘(मुल्क 16) क्या तुम उस की ज़ात से जो आसमानों पर है बेखौफ हो के वह तुम को जमीन में धंसा दे फिर वह जोश में आकर उलटने पलटने लगे।’ उस ने ये भी फरमाया, ‘(ताहा 5) वह रहमान है जो अर्श पर तैयार हो।’ और उसने ये भी फरमाया ‘(ईनाम 3) वही अल्लाह आसमानों और जमीन में है वह तुम्हारी खुफिया और एलानिया बातों को जानता है।’ फिर उसने कहा, ‘(हदीद 3) वही जाहिर और पोशीदा है।’ और उसने फरमाया, ‘(हदीद 4) और वह तुम्हारे साथ है जहाँ कहीं भी हो।’ और उसने कहा कि ‘(क़ाफ 16) और हम तो उसकी शह रग से भी ज्यादा करीब हैं।’ तो ये बातें एक दूसरे से कितनी अलग हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">
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जवाब में इमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ-स-) ने फरमाया कि अल्लाह की जात बुलन्द व अलग है उससे कि जो कुछ मखलूक से सरज़द हो, उस से सरज़द हो वह तो लतीफ व खबीर है (आप जो कुछ भी मखलूक के बारे में सोचते हैं या देखते हैं, अल्लाह तआला की ज़ात उससे अलग है।) वह जलील तर है इसलिये कि उस से कोई चीज़ ऐसी जाहिर हो जो उस की मखलूक से जाहिर हो रही हो। मिसाल के तौर पर मखलूक अगर सामने है तो पोशीदा नहीं हो सकती। लेकिन अल्लाह की जात के लिये यह कायदा नहीं है। अगर अर्श की बात की जाये तो उस का इल्म अर्श पर छाया हुआ है। वह हर राज व सरगोशी का गवाह है और वह हर शय पर किफायत करने वाला है और तमाम अशिया का मुदबिर है। अल्लाह तआला की ज़ात बहुत बुलन्द है इस से कि वह अर्श पर हो।</div>
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इस तरह उस शख्स ने इमाम हज़रत अली (अ-स-) से कुरआन के मुताल्लिक अनेकों सवाल किये और उन के मुनासिब जवाब पाकर इत्मिनान जाहिर किया। यकीनन पूरे कुरआन का इल्म हर एक को नहीं हासिल है जिसकी वजह से लोग अक्सर शक में मुब्तिला हो जाते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि कुरआन हर लिहाज से अल्लाह का कलाम है। और जिस तरह अल्लाह की बनाई दुनिया राजों से भरी हुई है लेकिन उन राजों से परदा उठाने के लिये गौरो फिक्र जरूरी है उसी तरह कुरआन के बारे में भी गौरो फिक्र तमाम शक व शुबहात को दूर कर देती है। </div>
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सन्दर्भ : शेख सुद्दूक (अ र) की किताब अल तौहीद</div>
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zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.com0