आज से ठीक चौदह सौ साल पहले एक ज़ालिम की ज़हर बुझी तलवार ने एक ऐसी अज़ीम हस्ती को क़त्ल कर दिया था जो हर मज़लूम का सहारा था और इंसाफ चाहने वाली हर नज़र उसी की तरफ उठती थी और उससे तलब करने वाला कभी मायूस नहीं होता था। इमाम हज़रत अली इल्म, अदालत, सखावत, बहादुरी हर गुण में बेमिसाल थे। उनके इल्म की एक हल्की सी झलक नहजुल बलाग़ा के खुत्बा नं 107 के इन अलफाज़ में मिलती है, ‘तू अबदी है जिसकी कोई हद नहीं और तू ही मंज़िले मुनतहा है कि जिससे कोई गुरेज़ की राह नहीं।’’ यानि अल्लाह के लिये किसी हद का तसव्वुर नहीं। इमाम(अ.) ने यहाँ पर ‘अब्दी’ लफ्ज़ का इस्तेमाल किया है जिसका एक खास मफहूम है।
साइंसदाँ आज ये देख चुके हैं कि यूनिवर्स लगातार फैल रहा है। यानि यूनिवर्स की तमाम चीज़ें सितारे व गैलेक्सीज़ वगैरा एक दूसरे से दूर जा रहे हैं। ये फैलाव किसी गुब्बारे की तरह हो रहा है। इस फैलाव की मुनासिबत से देखते हुए अगर तारीख में पीछे की तरफ जाया जाये तो यूनिवर्स छोटा और छोटा होता जायेगा और आखिर में एक प्वाइंट में जाकर सिमट जायेगा। इस नतीजे से साइंसदानों को एक थ्योरी मिलती है ‘बिग बैंग’।
बिग बैंग थ्योरी में दिखने वाले यूनिवर्स की शुरूआत आइंस्टीन की रिलेटिविटी समीकरणों में भी दिखाई देती है और यह शुरूआत एक ऐसे प्वाइंट को दिखाती है जहाँ पर टेम्प्रेचर, घनापन (Density) और यूनिवर्स का टेढ़ापन (Curvature) सब कुछ अनन्त या ‘अबदी’ है। इस अबदी प्वाइंट को साइंस ‘सिंगुलैरिटी (Singularity)’ नाम से पुकारती है। साइंसदानों के मुताबिक इस तरह की सिचुएशन का तसव्वुर ही नहीं किया जा सकता, लिहाज़ा उनके मुताबिक थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी यहाँ पर आकर रुक जाती है। यानि शुरूआत के बाद यूनिवर्स कैसे फैला, ये तो बताया जा सकता है, लेकिन शुरूआत हुई कैसे इस बारे में बताने से थ्योरी फेल हो जाती है।
यूनिवर्स की सिंगुलैरिटी एक ऐसा प्वाइंट है जिसके बारे में बताने से रिलेटिविटी समीकरणें लाचार हैं। लेकिन साथ ही ये समीकरणें उस प्वाइंट के वजूद को कन्फर्म भी करती हैं। ठीक इसी तरह अल्लाह इस मायने में अबदी है कि दुनिया की तमाम समीकरणें उसके बारे में बताने से लाचार हैं, लेकिन साथ ही उसके वजूद को कन्फर्म भी करती हैं।
मैथेमैटिक्स व साइंस की तमाम इक्वेशंस तरह तरह की सिंगुलैरिटीज़ से भरी पड़ी हैं। मसलन काम्प्लेक्स नंबर इक्वेशन में पोल्स (Poles) की सिंगुलैरिटी, या फिर डोमेन वाल नाम की सिंगुलैरिटी जो टू डाईमेन्शन में दिखाई देती है। फिज़िकल साइंस में ग्रैविटेशनल फील्ड (Gravitational Field) की सिंगुलैरिटी स्पेस-टाइम में नज़र आती है जहाँ पर ग्रैविटेशनल फील्ड को नापने वाली क्वांटिटीज़ इनफाईनाइट हो जाती हैं। ब्लैक होल के भीतर या शिवर्ज़चाइल्ड रेडियस से बड़े सितारे के खात्मे में भी सिंगुलैरिटी की झलक दिखती है।
इस तरह हम देखते हैं कि अब्दियत या सिंगुलैरिटी साइंस के लिये जानी पहचानी हक़ीक़त है जो जगह जगह नज़र आती है, ऐसे प्वाइंट की शक्ल में जहाँ पर कोई इक्वेशन इन्फार्मेशन देने से लाचार हो जाती है। यानि उस प्वाइंट की इन्फार्मेशन हमारे डाईमेन्शन सिस्टम से बाहर निकल जाती है, लेकिन साथ ही ऐसे प्वाइंट का वजूद भी कन्फर्म होता है। इस तरह अब्दियत (Singularity) की ये मिसालें अल्लाह के वजूद की अब्दियत को साबित करती हैं।
हम अल्लाह की अब्दियत को इस तरह कह सकते हैं कि अगर तमाम कायनात की खिलक़तों को इक्वेशन माना जाये तो इन खिलक़त की इक्वेशन्स की सिंगुलैरिटी ही है अल्लाह की अब्दियत। खिलक़त की इक्वेशन्स एक सिंगुलैरिटी यानि खालिक़ की तरफ इशारा करती हैं, लेकिन उस खालिक़ के बारे में इन्फार्मेशन किसी इक्वेशन के ज़रिये हासिल होना नामुमकिन है। यही है खालिक़ की अब्दियत।
लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं लेना चाहिए कि अल्लाह किसी सिंगुलर प्वाइंट की तरह किसी जगह में सिमटा हुआ है। दरअसल यहाँ पर उस गुण की बात हो रही है जिसका नाम ‘सिंगुलैरिटी’ है। और अपने इन अलफाज़ के ज़रिये इमाम अली(अ.) ‘सिंगुलैरिटी’ के कान्सेप्ट को ज़ाहिर कर रहे हैं, जहाँ तक साइंस की पहुंच इमाम अली(अ.) के बहुत बाद के ज़माने में हुई। और खिलक़त की अब्दियत को तो साइंस ने चौदह सौ साल बाद समझा। वह भी पूरी तरह नहीं।
इस तरह की और जानकारियों के लिये देखें किताब :
नहजुल बलाग़ाह का साइंसी इल्म
लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी
प्रकाशक : अब्बास बुक एजेंसी
ई बुक के तौर पर यह किताब इस लिंक से हासिल की जा सकती है :
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