Monday, June 27, 2011

क्रियेटर और क्रियेशन - 6 (पानी)

क्रियेटर और उसके क्रिये’शन को समझने के इस सफर में अब हम गौरो फिक्र करेंगे जिंदगी के निहायत अहम जुज़ पानी की करि’मायी सिफात पर। 

पहाड़ी इलाकों में जो तालाब पाये जाते हैं वह जाड़ों में जम जाते हैं। इसके बावजूद तालाब में मौजूद मछलियों और दूसरे जानदारों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। दरअसल तालाब में बर्फ सिर्फ पानी की ऊपरी सतह पर जमती है। इसके पीछे एक खास वजह है। पानी में एक ऐसी क्वालिटी होती है जो और किसी लिक्विड में नहीं होती। कोई भी लिक्विड ठंड बढ़ने पर सिकुड़ता है। लेकिन पानी चार डिग्री सेण्डीग्रेड टेम्प्रेचर होने तक सिकुड़ता है, उससे कम टेम्प्रेचर पर फिर फैलने लगता है। यानि बर्फ में बदलने पर वह हलका होकर पूरे तालाब को ढंक लेता है और नीचे फ्रे’श वाटर में मछलियां आराम से तैरती रहती हैं।

इसके अलावा बर्फ में गर्मी रोकने की भी खासियत होती है। जो पानी को हद से ज्यादा ठण्डा होने से रोक देती हैं। और इसमें रहने वाले जानदार एक आरामदेय माहौल में अपना गुज़र बसर करते रहते हैं। इस तरह खुदावन्देआलम ने पानी के जरिये न सिर्फ ज़मीनी मख्लूकात को खल्क़ किया बल्कि उनके लिए एक ऐसा माहौल भी पैदा कर दिया है जो उनके वजूद के लिए ज़रूरी है।

पानी की एक बड़ी क्वालिटी इसका लिक्विड फार्म में होना है। लिक्विड होने की वजह से यह जानदारों के पूरे जिस्म में आसानी से फैल जाता है और जिस्म के लिए जरूरी चीज़ों को अंदर फैला देता है। जानदारों के लिए जरूरी ज्यादातर चीज़ें पानी में आसानी से घुल जाती हैं। जैसे कि नमक, ग्लूकोज और चीनी। पानी महीन से महीन चीज़ों के भीतर पहुंच सकता है। इसीलिए वह हाथी से लेकर निहायत बारीक बैक्टीरिया तक तमाम जानदारों के जिस्म में जरूरियात पहुंचाने का जरिया है।  पानी में ऑक्सीजन जैसी अहम गैस भी आसानी के साथ घुल जाती है। पानी में रहने वाले जानदारों मछलियों वगैरा के लिए यह ऑक्सीजन रहमत होती है। अगर हम सिर्फ मछलियों के साँस लेने का तरीका देख लें तो परवरदिगार की बनाई हुई इस डिज़ाइन पर हैरत करने पर मजबूर हो जायेंगे।
मछलियों में पानी गिल्स के जरिये अंदर जाता है जहां एक पूरा मशीनरी सिस्टम चंद लम्हों के अन्दर उस पानी से आक्सीज़न को अलग कर लेता है। ये आक्सीजन मछलियों के सांस लेने में काम आ जाती है। फिर अन्दर बनने वाली कार्बन डाईआक्साइड को लेकर बचा हुआ पानी बाहर आ जाता है। मछलियों का ये सिस्टम इतना परफेक्ट तरीके से काम करता है कि पानी में मौजूद लगभग अस्सी फीसद ऑक्सीजन को मछलियां इस्तेमाल कर लेती हैं। जबकि इंसानी फेफड़े हवा से सिर्फ पच्चीस फीसद ऑक्सीज़न को ही हासिल कर पाते हैं। अल्लाह की बनाई हुई यह एक ऐसी म’शीनरी है जिसके सामने बड़े बड़े कम्प्यूटर फेल हैं।

आईए अब पानी के बड़े जखीरे यानि समुन्द्र पर बात करें। समुन्द्र में दो तरह की धाराएं यानि स्ट्रीम्स होती है गर्म और ठण्डी। गर्म स्ट्रीम इक्वेटर के पास पैदा होती है क्योंकि सूरज की रो’शनी वहां सीधी पड़ती है। दूसरी तरफ ठण्डी स्ट्रीम पोल्स के पास पैदा होती है। हवाओं के चलने से समुन्द्र में कन्वेक्’शन की प्रोसेस शुरू होती हैं और ये धाराएं एक दूसरे की जगह पर पहुँचती हैं, जिससे पूरे समुन्द्र का टेम्प्रेचर मेन्टेन होता है और जानदारों के मुताबिक़ होता है। अगर ऐसा न हो तो समुन्द्र कहीं पर बहुत ज्य़ादा गर्म हो जायेगा और कहीं बहुत ज्य़ादा ठण्डा, जिससे उसमें रहने वाले जानदारों का वजूद खतरे में पड़ सकता है।
पानी का यह सिस्टम जानदारों के लिए अल्लाह की रहमत नहीं तो और क्या है ? वह अल्लाह जिसके लिए कहा गया है अर्रहमानिर्रहीम। यानि जो रहमान भी है और रहीम भी। 

पानी के बिना ज़िंदगी का तसव्वुर ही नहीं पाया जाता। अभी तक सांइंस कोई ऐसी जिंदगी दरियाफ्त नहीं कर पायी है जो पानी के बगैर हो। और आखिर में इसी नतीजे पर पहुंची है कि पानी के बिना जिंदगी मुमकिन नहीं। इस तरह अल्लाह की किताब कुरआन की सच्चाई एक बार फिर दुनिया के सामने आ जाती है, जिसकी 21 वीं सूरे अंबिया की 30 वीं आयत में इरशाद हुआ है, ‘‘क्या वह लोग जो मुनकिर हैं गौर नहीं करते कि ये सब आसमान व जमीन आपस में मिले हुए थे। फिर हम ने उन्हें जुदा किया और पानी के जरिये हर जिन्दा चीज़ पैदा की। क्या वह अब भी यकीन नहीं करते?’’

इमाम हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ-स-) भी पानी को जिंदगी की पैदाइश की लाज़मी जुज बताते हुए कहते हैं, ’’फिर ये कि अल्लाह ने कुशादा फिज़ा, वसीअ एतराफ व इकनाफ और ख़ला की वुसाअतें ख़ल्क कीं और उन में ऐसा पानी बहाया जिसके दरियाये मवाज़ की लहरें तूफानी और बहरे ज़खार की मौज़े तह ब तह थीं। उसे तेज़ हवा और तुन्द आन्धी की पु’त पर लादा। फिर उसे पानी के पलटाने का हुक्म दिया और उसे इसके पाबन्द रखने पर काबू किया और उसे पानी की सरहद में मिला दिया।
उस के नीचे हवा दूर तक फैली हुई थी और ऊपर पानी ठाठें मार रहा था। फिर अल्लाह सुबहाना ने उस पानी के अंदर एक हवा ख़ल्क़ की जिस का चलना ‘बाँझ’ था। और उसे उस के मरकज़ पर करार रखा। उस के झोंके तेज़ कर दिये और उसके चलने की जगह दूर व दराज़ तक फैला दी। फिर उस हवा के मामूर किया कि वह पानी के ज़खीरे को थपेड़े दे और बहरे बेकराँ की मौज़ों को उछाले। उस हवा ने पानी की यूँ मथ दिया जिस तरह दही के मश्कीज़े को मथा जाता है और उसे धकेलती हुई तेज़ी से चली, जिस तरह खाली फिज़ा में चलती है और पानी के इब्तेदाई हिस्से को आखिरी हिस्से पर और ठहरे हुये को चलते हुये पानी पर पलटाने लगी यहाँ तक कि इस तलातुम पानी की सतह बुलंद हो गयी और वह तह ब तह पानी झाग देने लगा।
अल्लाह ने वह झाग खुली हवा और कुशादा फिज़ा की तरफ उठाई और उससे सातों आसमान पैदा किये। नीचे वाले आसमान को रूकी हुई मौज़ की तरह बनाया और ऊपर वाले आसमान को महफूज़ छत और बुलन्द इमारत की सूरत में इस तरह कायम किया कि न सुतूनों को सहारे की ज़रूरत थी न बंधनों से जोड़ने की ज़रूरत। फिर उन को सितारों की सजधज और रोशन तारों की चमक दमक से आरास्ता किया। और उन में स्नोपाश और जगमगाता चाँद रवाँ किया, जो घूमने वाले फलक, चलती फिरती छत और जुंबि’श खाने वाली लौह में है। फिर खुदा बन्दे आलम ने बुलन्द आसमानों के दरमियान ’शिगाफ पैदा किये और उन की वुसाअतों को तरह तरह के फरिश्तों से भर दिया।

हजरत अली (अ.स.) का यह खुत्बा कायनात की पैदाइ’श के बारे में खुले अलफाज़ में बता रहा है। और इसमें साफ तौर पर जिक्र है कि यूनिवर्स की पैदाइ’श में पानी ने अहम किरदार निभाया है।
पानी को खालिके कायनात ने कुछ ऐसी क्वालिटीज का मालिक बनाया है जो और किसी मैटर में नहीं पायी जातीं। सच तो यह है कि पानी के स्ट्रक्चर में पूरी तरह से एक इंटेलिजेंट डिजाइन दिखती है। जो माबूद के वजूद को साबित करती है।

चूंकि पानी हाईड्रोजन और आक्सीजन के बीच जोड़ से बनता है। केमिस्ट्री के नजरिये से यह जोड़ सबसे मजबूत बांड होता है। इस वजह से पानी कुछ इस तरह की क्चालिटीज का मालिक हो जाता है जिनसे न सिर्फ वह जिंदगी की पैदाइश में अहम रोल निभाता है बल्कि जिंदगी को रवानी भी बख्शता है।
मिसाल के तौर पर बांड मजबूत होने की वजह से उसका ब्वायलिंग प्वाइंट बढ़ जाता है। उसका माल्क्यूल ज्य़ादातर केमिकल रिएक्शन में ब्रेक नहीं होता और वह पानी की ही हालत में चीज़ों का हिस्सा बन जाता है। इंसानी जिस्म का साठ फीसद हिस्सा पानी होता है। ज़मीन का इकहत्तर फीसद हिस्सा पानी है। कुछ पौधों में नब्बे फीसद तक पानी होता है।

हाईड्रोजन सल्फाइड, हाईड्रोजन सेलेमाइड जैसे कुछ माल्क्यूल्स का स्ट्रक्चर पानी की तरह होता है जो खुद हाईड्रोजन आक्साइड है। लेकिन क्वालिटीज में ये माल्क्यूल पानी के आसपास भी नहीं है। पानी के अलावा ये सब माल्क्यूल माइनस टेम्प्रेचर पर ही उबलने लगते हैं और नार्मल टेम्प्रेचर पर गैस की हालत में होते हैं। अगर पानी की क्वालिटीज इनसे मिलती होतीं तो वह भी जमीन पर गैस फार्म में मिलता और फिर जमीन पर कोई जिंदगी न होती।
पानी अगर लाखों साल तक भी किसी बरतन में रख दिया जाये तो भी उसके स्ट्रक्चर पर कोई असर नहीं होता। जो कुछ भी उसकी जाहिरी हालत में तब्दीली आती है वह दरअसल उसमें दूसरे मैटीरियल के मिक्स होने से आती है। और अगर उस मैटीरियल को अलग कर दिया जाये तो पानी वापस अपनी प्योर हालत में आ जाता है।
पानी को वापस अपनी प्योर हालत में लाने के लिए अल्लाह ने इंतिजाम भी कर रखा है। इंसान और दूसरे जानदार जब पानी का इस्तेमाल करते हैं तो वह गंदी चीज़ों के मिक्स हो जाने से पीने लायक नहीं रहता। यह पानी नदियों के जरिये समुन्द्र में जाता है। सूरज की गर्मी समुन्द्र के इस गंदगी मिले पानी को भाप में बदल कर बादलों की ’शक्ल दे देती है। इस दौरान पानी की गंदगी समुन्द्र में ही छूट जाती है और बारि’श के जरिये साफ पानी वापस ज़मीन पर आ जाता है।

पानी ही एक ऐसा मैटीरियल है जो ज़मीन पर ठोस, लिक्विड और गैस तीनों हालत में मिलता है। इसलिए ज़िंदगी को हर हालत में सपोर्ट करता है। ठंडे मुल्कों में बर्फ के बीच रहने वाले जानदारों को वह बर्फ की ’शेप में मदद करता है। आसमानों में रहने वाले जानदारों को गैस की शेप में मदद पहुंचाता है और बाकी जानदारों के लिए लिक्विड की ’शक्ल में हर जगह पानी मौजूद होता है।
पानी में दूसरी चीज़ों को घोलने की पावर बहुत ज्यादा होती है। इसका मतलब यह हुआ कि वह जानदारों के लिए ज़रूरी हर चीज को घोलकर उन जानदारों तक पहुंचा सकता है। और उसके बाद जो भी जानदारों की गंदगी होती है उन्हें अपने में घोलकर बाआसानी उनके जिस्म से बाहर फेंकने में मदद भी कर सकता है। हम जो कुछ भी खाते पीते हैं वह पानी की ही मदद से जिस्म का हिस्सा बनता है और उसके बाद जो गंदगी जिस्म से अलग होती है वह पानी ही के जरिये बाहर निकलती है। और खास बाद ये कि इसमें पानी के खुद के स्ट्रक्चर पर कोई असर नहीं होता। यानि जो पानी गंदगी को बाहर निकाल रहा है कुछ आसान प्रोसेस के बाद वही पानी जिस्म को खाना पहुंचाने लायक हो जाता है।

अब आते हैं पानी की कुछ और क्वालिटीज पर, जो अल्लाह ने सिर्फ पानी को बख्शी है। आपने अक्सर मच्छर या दूसरे कीड़े मकोड़ों को पानी के ऊपर बैठे हुए देखा होगा। ये भी पानी की एक बहुत ही खास क्वालिटी है। जिसे सरफेस टेंशन कहा जाता है। पानी का सरफेस टेंशन दूसरे लिक्विड्‌स के मुकाबले में बहुत ज्यादा होता है। जिसकी वजह से बहुत से कीड़े मकोड़े आसानी से इसके ऊपर टिक सकते हैं। ये जानदार कुछ और जानदारों जैसे कि मेंढक वगैरा के पेट भी भरते हैं।
पानी का ये सरफेस टें’शन एक काम और करता है। पेन की रीफिल जैसी कोई बहुत पतली नली लीजिए और उसे पानी में डुबोईए। आप देखिएगा कि पानी नली में काफी ऊपर तक चढ़ आता है। क्या आप जानते हैं कि पेड़ पौधे ज़मीन से पानी इसी तरीके से हासिल करते है? उनकी जड़ों से बहुत पतली पतली नलियां निकलकर तने से होती हुई पत्तियों तक पहुंच जाती हैं । ये नलियां मिट्‌टी से पानी को ब्लाटिंग पेपर की तरह सोखती हैं और पत्तियों तक पहुंचा देती है। इस पूरी प्रोसेस नामुमकिन थी अगर पानी का ऊंचा सरफेस टेंशन न होता। और उस हालत में न तो पौधों का कोई वजूद होता, न ही दूसरे जानदारों का।

पानी में गर्मी को सोखने की भी काफी ताकत होती है। बहुत ज्यादा गर्मी पाकर पानी का टेम्प्रेचर बस थोड़ा सा ही बढ़ता है। इस तरह उसमें या उसके आसपास रहने वाले जानदारों को बहुत ज्यादा गर्मी या सर्दी का सामना नहीं करना पड़ता और माहौल का टेम्प्रेचर उनके जिस्म के मुताबिक मेनटेन रहता है। देखा जाये जो पूरी ज़मीन का टेम्प्रेचर सिर्फ इस वजह से मेनटेन है क्योंकि इसका एक बड़ा हिस्सा समुन्द्र की ’शक्ल में पानी है।
इस तरह पानी की बेशुमार और बेशकीमती क्वालिटीज़ हैं जो हमारी यानि इंसानों और दूसरे जानदारों के लिए निहायत अहम हैं। पानी सिर्फ हमारी ज़मीन ही पर नहीं पाया जाता बल्कि पूरे यूनिवर्स में हर जगह पाया जाता है। यहां तक कि चाँद जो पहले खु’क समझा जाता था, हाल ही में खींचे गये कुछ फोटोग्राफ की मदद से उसपर पानी होना कनफर्म हुआ है। तो इस तरह इस बात के सुबूत मिलते हैं कि अगर पानी न होता तो ज़मीन तो ज़मीन पूरे यूनिवर्स की ही खिलकत न होती।
पानी अल्लाह की बेमिसाल रहमत है। ‘रहमान’ अल्लाह के उन नामों में से है जिसको खुद अल्लाह ने पसंद फरमाया है। हालांकि अल्लाह की रहमतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते। अगर सिर्फ पानी की क्वालिटीज़ को ही देखा जाये तो उसमें खालिके कायनात की रहमतों के बेशुमार पहलू निकलकर सामने आ जाते हैं।

2 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

Zabardast ilm ka bayan hai is post men.
Shukriya.

Anonymous said...

kuchh bhi likh diya matlab...ab kuchh bhi ho use aap allah ke rahmat ka nam de doge to thodi na hota...ye chijen khud b khud hui hain aur isme koi allah ya ishwar ya hath nahi hai...ye to vigyan ke saral niyam hain.