Sunday, June 19, 2011

क्रियेटर और क्रियेशन -5 ( माल्क्यूल)


क्रियेटर की इण्टेलिजेंट डिजाइन जो इस पूरी कायनात की शक्ल में हमारे सामने मौजूद है, इसकी स्टडी में हमें कदम कदम पर निशानियाँ मिलती हैं उस अज़ीम क्रियेटर की जो हमारा खुदा है कायनात का खालिक है और परवरदिगार है। इसी सिलसिले में हम गौरो फिक्र करेंगे माल्क्यूल पर।
खुदा की बनाई इस कायनात के बिल्डिंग ब्लॉक्स हैं एलीमेन्ट्‌स। हमें यह मालूम हो चुका है कि जमीन पर सौ के लगभग एलीमेन्ट पाये जाते हैं इनमें से किसी भी एलीमेन्ट का अपना एक अलग एटम होता है, जो दूसरे एलीमेन्ट के एटम से पूरी तरह अलग होता है।

अब एक अहम सवाल। अगर हम अपने आसपास गौर करें तो हमें दिखती हैं ज़मीन पर मैटर की लाखों वेराईटीज़ । पानी, तेल, नमक, शुगर, आक्सीज़न, हाईड्रोजन, प्रोटीन। गिनते जाईए मैटर की वेराईटीज़ की कोई हद नहीं। कोई भी मैटर दूसरों से क्वालिटीज़ के एतबार से पूरी तरह अलग। तो सवाल पैदा होता है कि अगर ज़मीन पर सिर्फ सौ तरह के एलीमेन्ट मिलते हैं तो मैटर की इतनी ज्यादा शक्लें कैसे पैदा हो जाती हैं?
इसका जवाब बहुत आसान है कि खुदा की कुदरत से एलीमेन्ट में आपस में जुड़कर एक नया मैटर बनाने की पावर होती है। जब कुछ एलीमेन्ट्‌स के एटम आपस में जुड़ते हैं तो पैदाइश होती है कंपाउंड यानि एक नये मैटर के माल्क्यूल की। 
जी हां कोई भी मैटर अपनी एक अलग पहचान रखता है और माल्क्यूल उस मैटर का सबसे छोटा जर्रा होता है जिसमें वही क्वालिटीज़ होती हैं जो कि उस मैटर में होती हैं। मिसाल के तौर पर नमक का ज़ायका जिस तरह नमकीन होता है और पानी में घोलने पर घुल जाता है, उसी तरह उसका सबसे छोटा जर्रा यानि कि उसका माल्क्यूल भी नमकीन होता है और पानी में घोलने पर घुल जाता है।

एक माल्क्यूल उस कायनात का दरवाजा होता है, जिसे साइंसदाँ माइक्रो कायनात कहते हैं। ये वो दुनिया होती है जो आँखों से न दिखाई देने वाले बहुत महीन जर्रों के अंदर मौजूद होती है। रोजमर्रा की दुनिया में हमसे हर वक्त रिश्ता बनाये रखने वाले माल्क्यूल हैं पानी, नमक और आक्सीजन जैसे सिम्पिल माल्क्यूल। या फिर डी-एन-ए- और प्रोटीन जैसे पेचीदा माल्क्यूल जो इंसानों और दूसरे जानदारों के जिस्म को बनाते हैं।
एक या कुछ एलीमेन्टस के एटम जब आपस में जुड़ते हैं तो माल्क्यूल की पैदाइश होती है। जब हाईड्रोजन और ऑक्सीज़न के एटम आपस में मिलते हैं तो पानी का माल्क्यूल पैदा होता है। जो दुनिया की तमाम जिंदा मखलूक़ का लाज़मी जुज़ है। अल्लाह ने खुद इस सिलसिले में कहा है, कुरान की 21 वीं सूरे अंबिया की 30 वीं आयत में इरशाद हुआ है, ‘‘क्या वह लोग जो मुनकिर हैं गौर नहीं करते कि ये सब आसमान व जमीन आपस में मिले हुए थे। फिर हम ने उन्हें जुदा किया और पानी के जरिये हर जिन्दा चीज़ पैदा की। क्या वह अब भी यकीन नहीं करते?

माल्क्यूल का बनना खुदाई कुदरत के मोजिज़े से कम नहीं है। देखते हैं कि एटम्स के आपस में जुड़ने पर किस तरह माल्क्यूल का बनना मुमकिन हो पाता है।
साइंस की ब्रांच केमिस्ट्री के मुताबिक कई एलीमेन्ट्‌स आपस में तालमेल बिठाकर माल्क्यूल बनाते है, इसके पीछे वजह होती है वैलेंसी। वैलेंसी केमिस्ट्री का एक उसूल होता है, जिसके मुताबिक हर एलीमेन्ट दूसरे से मिलकर जोड़ा बनाने की कुदरत रखता है। ये जोड़े या तो अलग अलग एटम के इलेक्ट्रॉन की आपसी शेयरिंग से बनते हैं या फिर एक एटम से दूसरे में ट्रांस्फर के जरिये।
जैसा कि हम जानते हैं कि एटम में कुछ इलेक्ट्रान एक न्यूक्लियस के चारों तरफ चक्कर लगाते रहते हैं। कुछ खास दायरे होते हैं जिनके भीतर ये इलेक्ट्रान मौजूद होते हैं। इनमें से सबसे बाहरी दायरे के लिए अल्लाह ने एक उसूल बना दिया है कि इसमें आठ इलेक्ट्रान मौजूद होने चाहिए वरना एटम स्टेबिल नहीं होगा और कुदरत में ऐसा एटम फ्री नहीं रह पायेगा। नतीजे में अपने को स्टेबिल करने के लिए यह एटम अपने या दूसरे एलीमेन्ट्‌स के साथ जोड़े बनाने की फिक्र में रहता है।
मिसाल के तौर पर आक्सीजन। इसके बाहरी आरबिट में छह इलेक्ट्रान होते हैं। इसके आरबिट को स्टेबिल होने के लिए जरूरी है कि इसमें आठ इलेक्ट्रान हों। इसके लिए आक्सीजन का एटम अपने ही जैसे दूसरे एटम के साथ दो इलेक्ट्रानों का शेयर कर लेता है जिसके नतीजे में दोनों एटम स्टेबिल हो जाते हैं और आक्सीजन माल्क्यूल तैयार हो जाता है। अक्सर आक्सीजन के तीन एटम भी आपस में शेयर कर लेते हैं और तब मिलता है ओज़ोन माल्क्यूल।

अब एक और मिसाल - नमक यानि कॉमन साल्ट का केमिकल नेम है सोडियम क्लोराइड। सोडियम के एटम को स्टेबिल होने के लिए जरूरी है कि वह अपना एक इलेक्ट्रान दूसरे एटम को दे दे। जबकि क्लोरीन को एक इलेक्ट्रान की जरूरत होती है। नतीजे में दोनों जब एक दूसरे के कान्टेक्ट में आते हैं तो इलेक्ट्रान का ट्राँस्फर होता है और नमक का माल्क्यूल वजूद में आता है।     
जब कोई माल्क्यूल वजूद में आता है तो उसकी क्वालिटीज़ उन एटम्स से बिल्कुल अलग हो जाती हैं जिनसे मिलकर वह वजूद में आता है। मिसाल के तौर पर नमक यानि की सोडियम क्लोराइड। यह सोडियम और क्लोरीन से मिलकर बना होता है। 
नमक ठोस क्रिस्टल होता है जबकि सोडियम धातु है और क्लोरीन गैस।
नमक खाने का जुज़ होता है जबकि सोडियम और क्लोरीन दोनों ही ज़हर हैं।
नमक को पानी में घोलने पर कोई रियेक्शन नहीं होता। जबकि सोडियम पानी में डालते ही जलने लगता है।
इसी तरह पोटेशियम, कार्बन और नाईट्रोजन तीनों में कोई भी ज़हर नहीं है। लेकिन इनके मिलने से बना कंपाउंड, पोटेशियम साईनाइड दुनिया का सबसे तेज़ ज़हर है।

अब एक सवाल ये पैदा होता है कि क्या माल्क्यूल बनने में कहीं पर खालिके कायनात की कण्ट्रोलिंग पावर के बारे में कुछ मालूम होता है? जी हां। साइंसदानों ने जब मालक्यूल बनने की प्रोसेस की स्टडी की तो कुछ हैरतअंगेज़ बातें सामने आयीं। जैसा कि हम जानते हैं कि इलेक्ट्रान एटम में अपने सेन्टर यानि न्यूक्लियस से इलेक्ट्रोस्टेटिक ताकत के जरिये जुड़ा होता है। अब माल्क्यूल बनाने के लिए इलेक्ट्रानों की शेयरिंग या ट्रांस्फर होना है। यानि दूसरे अल्फाज़ में इलेक्ट्रान को कुछ हद तक अपने सेन्टर से अलग होना है। इसके लिए ज़रूरी है कि इलेक्ट्रोस्टेटिक फोर्स बहुत ज्यादा ताकतवर न हो। वरना इलेक्ट्रान कभी अपने सेन्टर को नहीं छोड़ेगा।

साइंसदानों ने जब एटम की स्टडी की तो पाया कि वाकई में इलेक्ट्रोस्टेटिक फोर्स बस इतना ही होता है कि इलेक्ट्रान माल्क्यूल बनते वक्त आसानी से अपने सेन्टर से अलग हो जाये। लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती। यह इलेक्ट्रोस्टेटिक फोर्स इतना कम भी नहीं होता कि इलेक्ट्रान अपने आर्बिट में घूमना ही छोड़ दे। और एटम बिखर जाये।
इस तरह क्रियेटर अल्लाह ने इलेक्ट्रॉन और एटम के लिए एक ऐसी मुनासिब सूरत पैदा कर दी है, इलेक्ट्रोस्टेटिक फोर्स की ऐसी फाइन ट्‌यूनिंग पैदा कर दी है जिसकी वजह से एक तरफ तो स्टेबिल एटम पैदा हुआ और दूसरी तरफ उसमें दूसरे एटम के साथ जुड़कर मॉल्क्यूल बनाने की पावर पैदा हो गयी। अगर ऐसा न होता तो दुनिया में सिर्फ नब्बे या सौ तरह का मैटर ही एलीमेन्ट की शक्ल में मौजूद होता। और हम अपने आसपास की ये दुनिया कभी देख न पाते।

माल्क्यूल्स की बनावट भी अपने में काफी दिलचस्प होता है। माल्क्यूल के अंदर एटम आपस में जब जुड़ते हैं तो कोई खास तरह की डिजाईन बनती है। मिसाल के तौर पर मेथेन गैस का माल्क्यूल टेट्राहेड्रान की शक्ल का होता है। यानि एक ऐसी शेप जिसकी चार दीवारें होती हैं और हर दीवार ट्राईएंगिल की शक्ल में एक दूसरे से जुड़ी होती है। खुदाकी करीगरी के इतने खूबसूरत नमूने हम माल्क्यूल्स की बनावट में देखते हैं कि बड़े से बड़े डिजाईनर के नमूने भी उनके सामने फीके पड़ जायें। 
कभी कभी कुछ कंपाउंड एक ही तरह की ज्योमेट्रिकल शेप्स दो तरह से बनाते हैं। दोनों शेप्स कुछ इस तरह होती हैं जैसे कि एक दूसरे की मिरर इमेज यानि परछाईं हो। ऐसा आर्गेनिक कंपाउंड में खास तौर से होता है। एक ही तरह की डिजाइन रखने के बावजूद दोनों शेप्स क्वालिटीज के एतबार से पूरी तरह अलग हो जाते हैं। जिन लोगों ने अरबियन नाइट्‌स जैसी तिलिस्मी कहानियां पढ़ रखी हैं उन्होंने हमजाद के बारे में जरूर पढ़ा है जो शक्ल व सूरत में किसी इंसान की तरह होता है लेकिन क्वालिटीज और आदत में उस इंसान से पूरी तरह उलट होता है। अगर कोई शख्स शरीफ है तो उसका हमजाद बदमाश होगा। अगर कोई शख्स गोरा है तो उसका हमजाद काला होगा।
कुछ इसी तरह की खासियत माल्क्यूल और उसकी मिरर इमेज बनाने वाले माल्क्यूल यानि कि हमजाद में दिखाई देती है। यानि दो एक ही स्ट्रक्चर के माल्क्यूल अगर मिरर इमेज बना रहे हों तो हो सकता है उनमें से एक दवा हो और दूसरा ज़हर। या एसपरजीन (Asparagin) माल्क्यूल की तरह एक मीठा हो तो दूसरा कड़वा। यकीनन ऐसे अजूबे क्रियेशन वही कर सकता है कि जो क्रियेटर कहलाने का हकदार है यानि पूरी कायनात का खुदा।

इसके अलावा मैटर के जो अलग अलग हालात हम देखते हैं वह दरअसल माल्क्यूल के अलग अलग कंडीशन में रहने से पैदा होती हैं। जब कोई मैटर ठोस हालत में होता है तो उसके माल्क्यूल मज़बूती से एक दूसरे से जुड़े हुए लगातार वाइब्रेशन करते रहते हैं। लिक्विड हालत में माल्क्यूल्स के बीच का फोर्स कुछ कम हो जाता है। लिहाजा वो कुछ हद तक आजादी लेते हुए एक दूसरे से दूर जाने लगते हैं।
अब सवाल पैदा होता है कि माल्क्यूल को आपस में बाँधने वाली ताकत कैसे पैदा होती है। साइंसदानों ने इस ताकत को माल्क्यूलर फोर्स नाम दिया है। मौजूदा साइंस बताती है कि यह ताकत दरअसल बिजली की ताकत यानि इलेक्ट्रोस्टेटिक फोर्स होती है। जब दो माल्क्यूल पास पास आते हैं तो उनके बीच बिजली की ताकत काम करने लगती है और वो आपस में जुड़ जाते हैं।

लेकिन यहां पर फिर एक सवाल पैदा हो जाता है। देखा जाये तो कोई भी माल्क्यूल जब बनता है तो उसमें एटम एक दूसरे से इलेक्ट्रानों की शेयरिंग या ट्रांस्फर के जरिये न्यूट्रल हो जाते हैं। यानि उसमें कोई भी एक्स्ट्रा चार्ज नहीं रहता। बिजली की ताकत के लिए ज़रूरी है कि माल्क्यूल पर कोई चार्ज हो। लेकिन ऐसा नहीं होता। इसके बावजूद माल्क्यूल आपस में जुड़ने लगते हैं यह यकीनन हैरत की बात है।
अगर यह मान भी लिया जाये कि किसी वजह से माल्क्यूल पर थोड़ा चार्ज पैदा हो जाता है तो एक जैसे माल्क्यूल में एक जैसा चार्ज होना चाहिए। मिसाल के तौर पर अगर कहीं पर सिर्फ पानी के माल्क्यूल हों तो उन सब पर एक ही तरह का चार्ज होना चाहिए। अब हम जानते हैं कि एक तरह के चार्जेज एक दूसरे से दूर भागते हैं। यानि पानी के माल्क्यूल एक दूसरे से दूर भागने चाहिए। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता। गैसों के अलावा हर तरह के माल्क्यूल में पास आने का मिजाज होता है। और वे आपस में जुड़ते हुए ठोस या लिक्विड बनाते हैं।

आज भी कुछ हद तक साइंसदां इस राज़ पर से परदा हटा पाये हैं। और जो थ्योरी सामने आयी है वह यह कि हालांकि माक्यूल न्यूट्रल होता है, यानि उसमें पाजिटिव और निगेटिव चार्ज बराबर होता है। लेकिन उसमें चार्ज का बिखराव एक जैसा नहीं होता। यह बिखराव कुछ इस तरह से फाइन ट्‌यूनिंग पर सेट है कि माल्क्यूल के बीच हमेशा कशिश की ताकत पैदा हो जाती है। यही है माल्क्यूलर फोर्स। इसी की वजह से मैटर ठोस या लिक्विड फार्म में आ जाता है।
जो लोग खुदा के वजूद को नहीं मानते उनके लिए इस बात का कोई जवाब नहीं कि आखिर कैसे माल्क्यूल में चार्ज हमेशा उसी तरह सेट होता है कि माल्क्यूल आपस में जुड़ने की पावर पैदा कर लेते हैं। अगर कायनात में खुद ही सब कुछ बन गया है तो चांसेज इस बात के ज्यादा थे कि चार्ज का बिखराव हर माल्क्यूल में एक जैसा होता और दुनिया के सारे माल्क्यूल अलग अलग बिखरे पाये जाते। फिर न तो पहाड़ होते, न समुन्द्र न दरिया न इंसान और न ही पेड़ पौधे। क्योंकि ये सब माल्क्यूल्स के जुड़ने से ही तो बनते हैं।

इन सब के बाद खुदा ने इन माल्क्यूल्स को ये आजादी भी दे दी है कि वो उसके बनाये हुए कानूनों पर अमल करते हुए एक दूसरे से जुड़ते हुए नये माल्क्यूल्स की पैदाइश कर सकें। और मैटर की नयी नयी किस्में सामने आती जायें। मिसाल के तौर पर जब खुश्क और बेलज्जत अनाज, दालें वगैरा जब किचन में आग और पानी के साथ मिलती हैं तो नयी ज़ायकेदार डिशेज़ तैयार हो जाती हैं। इस पूरी प्रोसेज में अनाज वगैरा के माल्क्यूल आग और पानी की मौजूदगी में नये माल्क्यूल तैयार कर देते हैं। इस प्रोसेस को साइंस की ज़बान में केमिकल रियेक्शन कहा जाता है।
अल्लाह ने कुदरत में कुछ ऐसी आटोमैटिक मशीने पैदा कर दी है जो केमिकल रियेक्शन करते हुए इंसानों और दूसरे जानदारों के लिए रहमत का सामान करती रहती हैं। जैसे कि पेड़ पौधे जो हवा और मिट्‌टी से पानी, बासी हवा यानि कार्बन डाई ऑक्साइड और सूरज से रौशनी लेकर ताज़ी हवा यानि आक्सीजन और खाना तैयार करते हैं, जिससे जानदार साँस लेते हैं और अपना पेट भरते हैं। 

अल्लाह ने अपनी किताब कुरान में कुछ इस तरह इस बात को कहा है,
16 वीं सूरे नहल की 10 वीं व ग्यारहवीं आयत में कहा गया है, ‘‘वही है अल्लाह कि जिसने आसमान से पानी भेजा कि जिसको तुम पीते हो, जिससे दरख्त उगते हैं, जिन्हें तुम्हारे जानवर खाते हैं। वह पैदा करता है तुम्हारे वास्ते उससे खेती, जैतन, खजूरें और हर किस्म के मेवे। इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो गौर करते हैं।’’
अल्लाह ने अपनी आटोमैटिक मशीनों के जरिये आलमे इंसानियत को यह राह दिखाई कि वे भी केमिकल रियेक्शन के जरिये अपने काम के माल्क्यूल तैयार करें और इंसानियत को फायदा हासिल हो। क्योंकि जमीन पर मौजूद हर चीज़ इंसान और इंसानियत के लिए है। सूरे बक़रा की 29 वीं आयत में यही इरशाद हुआ है कि ‘‘वही है जिस ने बनाया तुम्हारे वास्ते जो कुछ भी जमीन में है सब।’’

आज इंसान तरक्की की जिन मंजिलों पर है उसमें केमिकल रियेक्शन्स से बने हुए माल्क्यूल्स की पूरी हिस्सेदारी है। साइंस की एक पूरी ब्रांच केमिस्ट्री इन्हीं केमिकल रियेक्शन्स की स्टडी करने के लिए बनी हुई है। ये ब्रांच रोजाना नये नये माल्क्यूल्स की दरियाफ्त कर रही है। लेकिन खुदा की कुदरत का करि’मा देखिए कि हज़ारों सालों की स्टडी के बावजूद केमिस्ट्री अभी तक इस सवाल के जवाब तक नही पहुंच पायी है कि मैटर की इंतिहा कहां तक है?
मुर्दा चीज़ों से जिंदगी पैदा होना और जिंदगी का मुर्दा चीजों में बदल जाना भी केमिकल रियेक्शन ही है। जिसका कुरआन इन अल्फाज़ में जिक्र कर रहा है। दसवीं सूरे यूनुस की आयत 31 में कहा जा रहा है कि ‘‘हम ही मुर्दा से जिन्दा और जिन्दा से मुर्दा निकालते हैं।’’
माल्क्यूल्स का बनना और उनमें केमिकल रियेक्शन करने की क्वालिटी मौजूद होना यकीनन अल्लाह की बेमिसाल रहमत का नमूना है। जिसके लिए उसका जितना शुक्र किया जाये कम है।

No comments: