Sunday, February 14, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-33)


पृथ्वी सूर्य से एक संतुलित दूरी पर स्थित है। अगर यह सूर्य के पास होती तो ज्वारीय बलों (Tidal Forces) के कारण इसकी घूर्णन गति समाप्त हो जाती। परिणाम यह होता कि ग्रह के एक पृष्ठ पर हमेशा दिन की अवस्था होती जबकि दूसरे पर रात की अवस्था। फलस्वरूप दोनों पृष्ठों पर तापमान चरम सीमा पर पहुंच जाता। और आखिर में एक तरफ पानी और वायुमण्डल समाप्त हो जाते जबकि दूसरी ताफ जमकर बर्फ में परिवर्तित हो जाते। स्पष्ट था कि फिर जीवन पनपने का कोई आसार ही नहीं रह जाता।

यहां पर लगता है कि पृथ्वी को जीवन क्षेत्र बनाने के लिए पूरी तरंह ‘सुविधायुक्त’ किया गया। और यह सब किसी शक्ति की सोच का परिणाम था।

कुछ लोग इस सोच को संकीर्ण बता सकते हैं। और इस सम्बन्ध में उनके पास कुछ दलीलें भी होंगी। मसलन ये कि अगर पृथ्वी पर इस रूप में वातावरण न होकर किसी और रूप में होता तो जीवधारी उसी रूप में अपने को ढाल लेते। गुरुत्व अधिक होगा तो जीवधारी भी मज़बूत होंगे। ओजोन परत न होती तो पराबैंगनी विकिरण को झेलने की शक्ति वाले प्राणी यहां पनप रहे होते। मीथेन के वायुमंडल में जीवधारियों की जैव रासायनिक क्रिया मीथेन की सहायता से चल सकती है। यानि परिवेश बदलने पर जीवधारी भी उसी के अनुरूप ढल जाते।

इसके उदाहरण भी हम अपनी पृथ्वी पर देखा करते हैं। चाहे तपते रेगिस्तान हों, हिमाच्छादित आर्कटिक प्रदेश, अफ्रीका या साउथ अमेरिका के घने जंगल हों या समुन्द्र की तलहटी के उच्च दबाव वाले क्षेत्र, हर जगंह जीवधारी मिल जाते हैं जो अपने अपने संसार में संतुष्ट हैं और पनप रहे हैं।

लेकिन अगर यह मान लिया जाये कि जीवधारी वातावरण के अनुसार अपने को ढालने में सक्षम हो जाते हैं तो प्रश्न उठता है कि सौरमंडल के दूसरे ग्रहों पर फिर जीवन क्यों नहीं पनपा? इन दोनों बातों पर विचार करने के पश्चात यहां भी अल्लाह का वजूद सिद्ध हो जाता है कि अल्लाह ने हर तरंह के प्राणी सृजित किये हैं और उनके जीवन के लिए उन्हीं का परिवेश प्रदान किया जहां वे बिना किसी रुकावट के अपना जीवनयापन कर रहे हैं। अगर ये सब केवल संयोगवश होता तो एक के बाद एक आने वाली विपरीत परिस्थितियां या तो जीवन पनपने ही न देतीं और अगर पनपता भी तो कुछ समय बाद समाप्त हो जाता। रही बात प्राणियों द्वारा परिवेश के अनुसार अपने को ढालने की तो दूसरे ग्रहों पर भी जीवन पनपना चाहिए था।

ब्रह्माण्ड के जन्म की कहानी हमारी मान्यताओं को और दृढ़ रूप प्रदान कर देगी। वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार आज से लगभग 15 से 20 खरब वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ था। स्पेस-टाइम की गणना भी उसी क्षण से आरम्भ होती है। ब्रह्माण्ड का समस्त पदार्थ, दिशाएँ (डाइमेंशन) व समय सभी उस क्षण एक बिन्दुवत (शून्य) अवस्था में थे। एक महाविस्फोट (बिग बैंग) के द्वारा यह अलग हुए। उसके बाद की अवस्था का अनुमान फन्डामेन्टल पर्टिकिल फिजिक्स और क्वांटम मैकेनिक्स की सहायता से लगाया गया। उस समय ब्रह्माण्ड की संरचना अत्यन्त जटिल थी जिससे आज जैसी सरल रचना वाले ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ। आज हम जिस ब्रह्माण्ड में रह रहे हैं उसका निर्माण भी अपने आप में आश्चर्य समेटे हुए है और यही लगता है मानो इस ब्रह्माण्ड का निर्माण किसी शक्ति ने मनुष्य और दूसरे प्राणियों की उत्पत्ति के लिए किया। निम्न पैरा में काफी कुछ स्पष्ट हो जायेगा।...............

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