Monday, February 15, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें : अंतिम भाग


 ब्रह्माण्ड के शुरूआती एलीमेन्ट्‌स एक दूसरे से एकदम अलग थे। उनमें पारस्परिक सूचना का कोई आदान प्रदान नहीं हो रहा था। शुरूआती अवस्था में अगर वह ज़रा भी मार्ग से भटकते तो वह विचलन आज विशाल परिवर्तन ले आता। उदाहरण के लिए आज कास्मिक विकिरण का मान तीन डिग्री परम ताप है। ब्रह्माण्ड में अगर थोड़ी भी शुरूआती हलचल भिन्न होती तो इसी विकिरण का ताप हज़ारों लाखों गुना बढ़ जाता। गणना द्वारा यह ज्ञात किया गया है कि अगर कास्मिक विकिरण का प्रारम्भिक मान मात्र 100 डिग्री परम ताप ज्यादा होता तो पानी द्रव अवस्था में ब्रह्माण्ड में कहीं नहीं पाया जाता। और पानी के अभाव में जीवन पनपने का प्रश्न ही नहीं था। इसी तरंह तापमान एक हजार डिग्री ज्यादा होता तो तारों का अस्तित्व संकट में पड़ जाता। ऐसे तीव्र विकिरण की उपस्थिति में गैलेक्सीज़ का वजूद मिट जाता।

यहां ये कहा जा सकता है कि अगर विकिरण उपरोक्त ताप पर होता तो हो सकता है कभी न कभी ब्रह्माण्ड के प्रसार द्वारा घट कर 3 डिग्री परम ताप पर पहुंच जाता, जैसा कि वर्तमान में है। लेकिन देखा गया है कि तापमान एक अरब वर्ष में अपने प्रारम्भिक ताप का आधा होता है। और यही तारों का जीवन काल होता है। स्पष्ट है कि जब जीवन के लिए आवश्यक विकिरण का ताप होता तब तक सारे तारे समाप्त हो चुके होते।

प्रारम्भिक ब्रह्माण्ड से वर्तमान ब्रह्माण्ड के विकसित होने के कई रास्ते थे। उन रास्तों में से सृष्टि ने अपने विकास के लिए वह रास्ता चुना जिसपर चलकर जीवन की उत्पत्ति हुई। हालांकि इस रास्ते के चुनने की संभावना जीरो थी। इस तरंह हमारा और दूसरे प्राणियों का अस्तित्व अनेक ऐसी घटनाओं का परिणाम है जिनके घटने की संभावना जीरो होते हुए भी वह घटी। उनके बारे में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक हैरान रह जाते हैं यह क्रम देखकर, और जो आस्तिक होते हैं वे अनायास ही अपने अल्लाह के सामने नतमस्तक हो जाते हैं जो इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। वरना संभावना जीरो होते हुए अधिक से अधिक एक या दो घटनाएं संयोगवश घट सकती हैं। लेकिन घटनाओं का एक क्रम होना इस बात को सिद्ध करता है कि किसी महाशक्ति को यह सृष्टि रचनी थी। इसमें प्राणियों का वास कराना था, मानव जैसे बुद्धिमान प्राणी को जन्म देना था इसलिए उसने स्वयं उन घटनाओं का ताना बाना बुना।

कुछ वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड और मानव जन्म से सम्बंधित घटनाओं को देखकर एक नये सिद्धान्त पर भी विचार करने लगे हैं जिसे ‘एन्थ्रोपिक प्रिन्सिपल’ का नाम दिया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड का वर्तमान स्वरूप इसलिए है कि मानव जन्म के लिए ऐसा होना आवश्यक था। यह सृष्टि मानव के लिए बनी है अत: शुरू से आज तक घटी प्रत्येक घटना उद्देश्यपूर्ण थी, पूर्व निर्धारित थी। पूरे घटनाक्रम का केवल एक उद्देश्य था कि एक ऐसे ब्रह्माण्ड को जन्म देना जो ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करे जिससे मानव जन्म ले सके। इस तरंह मानव ब्रह्माण्ड के जन्म का कारण है। अब कई धर्मग्रन्थों में भी इस तरंह के कथन आ चुके हैं जिसमें अल्लाह कहता है कि उसने पूरी कायनात इंसान के लिए बनायी, और इंसान को इसलिए बनाया ताकि वह उसे पहचान कर उसकी इबादत करे।

इसी तरंह ब्रह्माण्ड आज जिस रूप में हैं। चार मूल बलों से बंधे हुए तारे, ग्रह, मण्डल तथा उन्हीं की सूक्ष्म कलाकारी के रूप में परमाणु, इलेक्ट्रान, प्रोटान इत्यादि जो भौतिक नियमों से बंधकर अपने स्थान पर गति करते हुए अपना कार्य कर रहे हैं। यदि इनमें से एक भी अपनी धुरी से हट जाये तो उससे सम्बंधित एक बड़ा सिस्टम तहस नहस हो जाये। लेकिन ऐसा कभी नहीं होता और यहां पर लगता है मानो इन भौतिक नियमों को एक ऐसी महाशक्ति ने बनाया है जो ज्ञान में अपनी मिसाल आप है।

अनेक छोटे बड़े नियम और सिद्धान्त जिन्हें प्रकृति के नियम कहा जाता है, अत्यधिक जटिल ये नियम बिना किसी दिशा देने वाले के स्वयं कैसे बन सकते हैं? प्रकृति का मतलब क्या है? प्रकृति का जन्म कैसे हुआ? अगर इन सवालों पर विचार के लिए वैज्ञानिक अपने मस्तिष्क के द्वारों को खोल दें तो साइंस की नवीन शाखाओं का विस्तार तथा विकास हो सकता है।

आज ज़रूरत इस बात की है कि आधुनिक विज्ञान को पदार्थ तथा ऊर्जा पर चिंतन करने के अलावा उस महाशक्ति पर भी अपनी सोच के दरवाजों को खोल देना चाहिए जिसे धर्मों ने ईश्वर, गॉड या खुदा का नाम दिया है। शायद तब विज्ञान भौतिकवाद, विनाशकारी आविष्कारों तथ प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ से उबर कर सही रूप में मानव जाति बल्कि समस्त जीवधारियों के कल्याण के लिए कार्य कर सकेगा।

----समाप्त----

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1 comment:

Anonymous said...

phele kalma phard phir baatkar janwar se kiya kiya baat karoo