Friday, February 12, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-32)


सृष्टि के मैदान में खुदा की निशानियाँ 

गणितीय पथ पर विचार करने के पश्चात अब हम सृष्टि के मैदान में अल्लाह के वजूद की निशानियों की तलाश करेंगे। इसके लिए इस तरंह का अध्ययन करना होगा कि क्या सृष्टि का निर्माण, मानव और दूसरे प्राणियों की उत्पत्ति संयोगवश हुई है या किन्हीं खास प्रकार की घटनाओं के क्रम में? आज दूसरे प्राणियों के साथ अस्तित्व में आये मानव को जीवित रखने के लिए पृथ्वी का जो पर्यावरण है उसके अनुरूप मानव ने अपने को ढाला है या पर्यावरण स्वयं ऐसे रूप में ढला है जो मानव को जीवित रखने के लिए आवश्यक है। यह समस्त विवेचन अवश्य ही हमें अल्लाह के वजूद की सच्चायी की ओर मोड़ देगा।

मानव का वजूद जिन बातों पर निर्भर करता है और साथ साथ सृष्टि का वजूद, उन बातों की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट है। मनुष्य के अस्तित्व के लिए कार्बन, हाईड्रोजन और आक्सीजन जरूरी है तथा बहुत कम मात्रा में लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस आदि चाहिए। साथ ही कुछ का अनुपस्थित होना भी जरूरी है। जैसे हमें मीथेन, सल्फर डाई आक्साइड या अमोनिया का वायुमण्डल नहीं चाहिए, जैसा कि सौरमंडल के दूसरे ग्रहों पर है। साथ ही ग्रह का तापमान एक निश्चित सीमा में बना रहना चाहिए वरना हमारे शरीर की जैव रासायनिक प्रक्रियाएं नहीं चल पायेंगी।

तापमान के संतुलन के लिए ग्रह को एक समान ऊर्जा देने वाला तारा चाहिए। ऐसा तारा जिसका जीवनकाल काफी लम्बा हो और वह बिना उतार चढ़ाव के ग्रह को नियमित रूप से ऊर्जा दे। इसके लिए ग्रह की कक्षा भी दीर्घवृत्त न होकर वृत्ताकार होनी चाहिए। ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण इतना होना चाहिए कि वह वायुमंडल को बांधकर रख सके। लेकिन यह गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा भी नहीं होना चाहिए कि चलने फिरने में हडि्‌डयां टूटने की नौबत आ जाये।

हमारी पृथ्वी और सूर्य इन सब शर्तों को बखूबी पूरा करते हैं इसलिए यहां हमारा और दूसरे प्राणियों का वजूद है। क्या ऐसा नहीं लगता कि किसी ने अपनी कुदरत से पृथ्वी को हम सब लोगों के निवास के काबिल बनाया? ऐसी पृथ्वी, जहां बहुत सी सुविधाएं हमें प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए वाह्य वायुमंडल में उपस्थित ओजोन की परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। पृथ्वी पर शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र इस पर मौजूद प्राणियों की कास्मिक किरणों और सबएटामिक पार्टिकिल्स की बमबारी से बचाता है।

इसी तरंह आम नियम है कि ताप घटने के साथ साथ द्रव का घनत्व बढता है और जब वह ठोस में बदलने लगता है तो उसका घनत्व द्रव रूप की अपेक्षा कम हो जाता है और भारी होकर वह द्रव की सतह में बैठ जाता है। लेकिन पानी इसका अपवाद है। ताप घटने पर इसका घनत्व पहले चार डिग्री सेण्टीग्रेड तक बढता है लेकिन ताप और कम होने पर इसका घनत्व फिर घटने लगता है। यही कारण है कि बर्फ पानी से हल्की होती है। पानी के इस गुण के कारण ठण्डे स्थानों में जब पूरा तालाब बर्फ में परिवर्तित हो जाता है तो नीचे की सतह पहले की तरंह द्रव रूप में रहती है और उसमें उपस्थित मछलियां अपना जीवन यापन करती रहती हैं।

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