गणित का हर नियम, हर समीकरण का एक विस्तारित रूप (Generalization) होता है। यूक्लिड ने प्रारम्भ में जिस ज्यामिति की रचना की वह दो विमाओं (two dimensional) की ज्यामिति थी, जिसमें कोई रचना एक समतल पर की जाती थी। इस ज्यामिति को विस्तार दिया गया और फिर बनी त्रिविमीय ज्यामिति। इसका और विस्तारित रूप चार विमीय और फिर एन (N) डाइमेंशन के रूप में आया। जहां एन कोई भी प्राकृतिक संख्या हो सकती है। हम जिस ब्रह्माण्ड में निवास कर रहे हैं वह चार डाइमेंशन का है। और ये चार विमाएं लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई और समय की हैं।
जब किसी सिस्टम की डाइमेंशन बढ़ायी जाती है तो सिस्टम की रचनाओं का भी विस्तारित रूप हो जाता है। उदाहरण के लिए द्विविमीय रेखा तीन विमाओं में समतल का रूप धारण कर लेती है। दो विमाओं का इलिप्स तीन विमाओं में इलिप्सॉयड बन जाता है।
जैसे जैसे विमाएं बढ़ती हैं ये आकृतियां और जटिल होती जाती हैं। यह सृष्टि, इसका आकार सीमित है। स्पष्ट है कि इसके डाइमेंशन भी सीमित होंगे। अगर गणितीय रूप में देखा जाये तो डाइमेंशन असीमित भी हो सकते हैं। स्पष्ट है कि असीमित डाइमेंशन की कोई रचना भी असीमित जटिलता की होगी। अब यहां कई सम्भावनाएं हो सकती हैं। पहली ये कि असीमित डाइमेंशन का कोई वजूद नहीं।
अगर इस सम्भावना को सत्य माना जाये तो हमारा ये नियम फेल हो जायेगा कि गणित के प्रत्येक नियम का वास्तविक रूप में वजूद है। इसलिए दूसरी संभावना है कि असीमित डाइमेंशन का वजूद सच है मानी जाये। यह व्यवस्था तभी संभव है जब उस असीमित डाइमेंशन से मुताल्लिक कोई वजूद हो।
सवाल उठता है कि असीमित डाइमेंशन से मुताल्लिक किसका वजूद हो सकता है? तो जाहिर है हम इस वजूद को आकारयुक्त नहीं मान सकते। क्योंकि उस अवस्था में असीमित डाइमेंशन का असीमित आकार पूरी सृष्टि को नष्ट कर देगा। यानि वह असीमित वजूद निराकार है और असीमित ज्ञान, शक्ति और न्यायप्रियता से भरा हुआ है। इसी वजूद का नाम ही संभवत: अल्लाह है। यानि वह असीमित डाइमेंशन का स्वामी है।
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