गणित के किसी भी नियम या समीकरण के दर्शन वास्तविक रूप में कहीं न कहीं होते हैं। समान परिमाणों में पाज़िटिव व निगेटिव जुड़ने पर शून्य मिलता है। वास्तविक रूप में अगर किसी एटम में इलेक्ट्रान (जिन पर निगेटिव चार्ज होता है) और प्रोटॉन (जिन पर पाजिटिव चार्ज होता है) बराबर संख्या में मौजूद हैं तो वह एटम उदासीन होता है। यानि उसका चार्ज शून्य होता है। गणित में निर्देशांक ज्यामिति द्वारा विभिन्न प्रकार के वक्रों के समीकरण प्राप्त होते हैं। जैसे दीर्घवृत्त (ellipse), कैटेनरी (catenary), कार्डायड (cardioid) इत्यादि।
वास्तविक जीवन में सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति दीर्घवृत्ताकार कक्षा में होती है। दो खम्भों के बीच लटकते तार कैटेनरी बनाते हैं और कई प्रकार की पत्तियां कार्डायड की शक्ल में होती हैं। गणित में फिबोनिकी संख्याएं होती हैं जो संख्याओं का एक विशेष क्रम बनाती हैं। वास्तविक जीवन में खरगोशों का वंश और सूरजमुखी के मुख पर दाने इन संख्याओं के क्रम में वृद्वि करते हैं।
अब गणित में दो प्रकार की परिकल्पनाएं हैं। संतत (continuous) और असंतत (discontinuous)। संतत हम ऐसे वक्र या रचना को कहते हैं जो बीच में कहीं भी टूटती नहीं। रचना में कहीं कोई गैप नहीं होता, जबकि असंतत इसके विपरीत होता है। उदाहरण के लिए खींची गयी कोई रेखा जिसमें बीच में कहीं भी पेन को नहीं उठाया गया है संतत मानी जायेगी। जबकि एक डैशेड या डाटेड (dotted) रेखा असंतत मानी जायेगी।
यदि गहराईपूर्वक देखा तो इस सृष्टि में संतत (continuous) कुछ भी नहीं है। पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बनता है जिनके बीच गैप रहता है और अगर हम उनके बीच गैप न भी लें तो परमाणु में उपस्थित एलेक्ट्रोन और नाभिक के बीच गैप निश्चित रूप से रहता है। कान्टीन्यूटी का उपरोक्त उदाहरण यानि खींची गयी रेखा भी असंतत होती है। क्योंकि यह जिस इंक से बनी है वह इंक असंतत परमाणुओं से मिलकर बनी है। अगर हम प्रकाश को संतत मानें तो यहां भी संतुष्टि नहीं होगी क्योंकि प्रकाश विशेष प्रकार के कणों की धारा होता है। ये कण फोटॉन कहलाते हैं। यहां तक कि दो वस्तुओं के बीच लगने वाला बल भी असंतत कणों के कारण अस्तित्व में आया है। गुरुत्वाकर्षण ग्रेविटानों के कारण, विद्युत फोटॉनों से और नाभिकीय बल मीसॉनों के वितरण से पैदा होता है।
तो इस प्रकार कान्टीन्यूटी के दर्शन इस सृष्टि में कहीं नहीं होते। तो क्या इस संकल्पना को गणित से हटा देना चाहिए? लेकिन गणित की कोई संकल्पना उसी समय हटायी जा सकती है जब कोई विरोधाभास उसका रास्ता रोक दे। और उपरोक्त संकल्पना के लिए कोई विरोधाभास नहीं मिलता। तो फिर कान्टीनुअस क्या है वास्तविक रूप में?
अगर हम अल्लाह का वजूद मान लें तो उसी के बारे में यह गुण प्रभावी है कि अल्लाह हर जगंह है। कोई जगंह उससे खाली नहीं है। किसी भी प्रकार की असंतता में जगहें खाली बच जाती है। इसलिए हम अल्लाह का यह गुण उसी समय ले सकते हैं जब वह कान्टीनुअस हो। इस तरंह एकमात्र हस्ती जो कान्टीनुअस, सर्वत्र हर जगंह है, वह है अल्लाह का वजूद। इस वजूद के अलावा सब कुछ असंतत है। अल्लाह के वजूद को मानकर ही गणित की उपरोक्त संकल्पना को वास्तविक रूप में साकार किया जा सकता है।
2 comments:
accha likha hai aise hi likhte rahiye kuda kare zor e qalam auor ziada
Dhanywad Bharti Ji
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