उदाहरण के लिए डी ब्राग्ली की कण तरंग सम्बन्धी परिकल्पना प्रारम्भ में जटिल गणितीय समीकरणों द्वारा अस्तित्व में आयी। बाद में प्रायोगिक रूप से पुष्टि हुई कि प्रत्येक कण तरंग की तरंह व्यवहार करता है। ग्रह सम्बन्धी गणनाओं के दौरान प्लूटो ग्रह का वजूद पता चला। बाद में हाई पावर टेलिस्कोपों की मदद से उस ग्रह को देख भी लिया गया। कंप्यूटर का माडल सर्वप्रथम चार्ल्स बैबेज ने कागजों पर तैयार किया था, गणितीय समीकरणों के रूप में। आज कम्प्यूटर वास्तविक रूप में हमारे सामने है। इस तरंह हम देखते हैं कि कोई भी सिद्धान्त या नियम या वस्तु अगर वास्तविक रूप में संभव है तो उसे गणितीय रूप में सिद्ध किया जा सकता है। फिर तो अल्लाह का वजूद भी गणितीय रूप में सिद्ध होना चाहिए।
अब हम गणितीय नियमों की थोड़ी गहराई में जाते हैं। किसी भी गणितीय समीकरण को हल करते समय या किसी नियम को सिद्ध करते समय हम कुछ ऐसी मान्यताओं का इस्तेमाल करते हैं जो स्वयं सिद्ध होती हैं। उन मान्यताओं को सिद्ध नहीं किया जाता बल्कि सदैव सत्य मानकर उनका उपयोग किया जाता है। इन स्वयं सिद्ध मान्यताओं को एक्ज़ियम (Axiom) कहा जाता है। एक्ज़ियम के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं।
नेचुरल नम्बर सम्बन्धी नियमों को सिद्ध करने के लिए पियानो का एक्जियम कहता है कि ‘एक’ एक नेचुरल नम्बर है और नेचुरल नम्बर में एक जोड़ने पर पुन: एक नेचुरल नम्बर मिलता है। यह ऐसा नियम है जिसे सिद्ध नहीं किया जा सकता। डिस्कार्ट का कथन ‘मैं सोचता हूं इसलिए मेरा अस्तित्व है।’ को सिद्ध नहीं कर सकते। बिन्दु (Point) विमाहीन होता है उसकी लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई कुछ नहीं होती, यह भी एक्जियम है।
इसी तरंह भौतिकी के कुछ नियम जैसे न्यूटन के गति के नियम, प्रकाश का सरल रेखा में चलना, केपलर के ग्रह गति के नियम जैसी अनेक मान्यताएं केवल प्रयोगों के आधार पर महसूस की गयी हैं। इन्हें गणितीय रूप में सिद्ध करना असंभव है।
ज़ाहिर है अल्लाह का वजूद भी एक एक्ज़ियम है। गणितीय नियमों के आधार पर उसका सिद्ध होना असंभव है। उसके वजूद को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। क्योंकि हम जो भी गणितीय नियम बनायेंगे उनमें कुछ कमी होगी, जो हमारे अधूरे ज्ञान का परिणाम होगी। इन नियमो के आधार पर अल्लाह के वजूद को सिद्ध करना केवल एक हास्यास्पद प्रयास होगा।
वास्तव में अल्लाह के वजूद की निशानियों को हम सृष्टि में देख सकते हैं और उस महाशक्ति के बारे में विचार कर सकते हैं। उन्हीं निशानियों से यह फैसला किया जा सकता है कि अल्लाह का वजूद वास्तव में है या नहीं। इस प्रकार अगर हम सृष्टि के बारे में विचार करें। किस प्रकार यह सृष्टि बनी, बनने से पहले अब तक जो घटनाओं का क्रम है उसकी तारतम्यता। मनुष्य का जन्म और उसका अद्धितीय होना। प्रकृति के छोटे बड़े नियम। सृष्टि का कण्ट्रोल जैसी अनेक बातों का अध्ययन इस दिशा में सहायता कर सकता है।
इसके अलावा गणितीय कल्पनाएं और नियम, गणितीय समीकरण भी इस दिशा में सहायता कर सकते हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि प्रत्येक सिद्धान्त या नियम की एक गणितीय पृष्ठभूमि होती है। उसकी एक उत्पत्ति होती है। अगर किसी वस्तु का वजूद इस सृष्टि में है तो उसका गणितीय वजूद भी अवश्य होता है। इसलिए सर्वप्रथम हम अल्लाह के वजूद को गणितीय सिद्धान्तों और समीकरणों की सहायता से समझने का प्रयास करेंगे। उसके बाद सृष्टि की घटनाओं और नियमों की मदद से उसके वजूद और उसकी निशानियों को देखने की कोशिश करेंगे। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अल्लाह के वजूद को देखना नामुमकिन है। यहां उसके वजूद को देखने का मतलब है कि सृष्टि द्वारा उसके वजूद की पुष्टि करना।
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