Tuesday, February 2, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-27)


खुदा को कोई चीज़ ईजाद करने के लिए किसी चिंतन या कल्पना की ज़रूरत नहीं पड़ती। इससे पहले कि कोई चीज़ वजूद में आये, उसे इसका ज्ञान रहता है। ये बात भी कुछ अक्ल से परे हो जाती है क्योंकि मनुष्य अगर किसी चीज़ का निर्माण करता है तो पहले उसके बारे में सोचता है उसकी आवश्यकता कहां पड़ सकती है इस बारे में छानबीन करता है। फिर मन ही मन उसकी रूपरेखा (Structure) तैयार करता है, तब जाकर एक वस्तु तैयार होती है। और इस वस्तु में भी अत्यन्त चिंतन के बाद भी कहीं न कहीं कमी रह जाती है। इस कमी को दूर करने के लिए फिर नये सिरे से रिसर्च की जाती है, उस में नयी खोजों और नये आविष्कारों का उपयोग करके सुधार किया जाता है और नया माडल तैयार हो जाता है। 

उदाहरण के लिए जब एडीसन ने बल्ब का अविष्कार किया तो बल्ब में आक्सीजन गैस भरी होने के कारण वह बार बार फेल हो जाता था। फिर उसमें सुधार करके आक्सीजन गैस निकाली गयी और कार्बन का फिलामेंट लगाया गया। लेकिन इसमें कुछ खराबियां थीं। जैसे कि वह जल्दी काला पड़ जाता था और फिलामेन्ट बहुत जल्दी गल जाता था। बाद में फिलामेन्ट परिवर्तित करके टंग्स्टन का लगा दिया गया। इस प्रकार बल्ब का विकसित माडल मिला। 

परन्तु एडीसन को प्रथम बल्ब के आविष्कार के लिए भी वर्षों का परिश्रम करना पड़ा। पहले उसने कल्पना की, फिर चिंतन किया और अन्त में गणना करके उसे वास्तविक रूप में तैयार किया। जब छोटी से छोटी वस्तु का निर्माण बिना कल्पना और चिंतन के नहीं हो सकता तो अल्लाह ने पूरी सृष्टि बिना कल्पना और चिंतन के कैसे तैयार कर दी?

यहां एक बार फिर खुदा का असीमित ज्ञान अपना कार्य करता है। वास्तव में चिंतन की उस समय जरूरत पड़ती है जब ज्ञान की कमी हो। एडीसन ने जब बल्ब बनाने का प्रयास शुरू किया था तो उसे इस बारे में कोई ज्ञान नहीं था कि बल्ब की कार्यप्रणाली क्या होगी। जैसे जैसे उसने एक्सपेरीमेन्ट किये उसके ज्ञान में बढ़ोत्तरी हुई। अपने प्रयोगों के गुण दोषों के बारे में पता चला और एक दिन वह सफल हो गया। गाड़ी का कोई मैकेनिक प्रारम्भ में बहुत कठिनाई पूर्वक किसी गाड़ी की खराबी दूर कर पाता है। क्योंकि उसे इस बारे में ज्ञान कम रहता है लेकिन एक बार सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात जब वह एक्सपर्ट हो जाता है तो मात्र आवाज से खराबी पकड़ लेता है और बिना किसी विचार या चिंतन के मशीनी अंदाज में पुर्जे खोल खालकर ठीक कर देता है। 

इस तरंह कल्पना की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब हमें किसी नयी वस्तु के बारे में कुछ नहीं मालूम रहता। प्रारम्भ में जब एटामिक स्ट्रक्चर वैज्ञानिको के लिए अज्ञात था और इलेक्ट्रान प्रोटान तथा न्यूट्रान की खोज हो चुकी थी उस समय परमाणु माडल के लिए अनेक कल्पनाएं की गयीं। फिर जैसे जैसे विज्ञान प्रगति करता गया और प्रयोगों के आधार पर जो कल्पना सही सिद्ध हुई उसे लागू कर दिया गया। बाकी को निरस्त कर दिया गया। इस तरंह हम देखते हैं कि ज्ञान की कमी कल्पनाओं और विचारों को जन्म देती है। 

चूंकि खुदा के पास ज्ञान सम्पूर्ण है, उसमें कहीं कोई कमी नहीं है इसलिए उसे कल्पना या चिंतन करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती।

1 comment:

Taarkeshwar Giri said...

aap ne apni soch ko kafi had tak badal liya hai. Mubarak ho lage rahiye.