खुदा को सृष्टि की रचनाओं में किसी भी तरंह की हरकत की जरूरत नहीं पड़ी। और न ही वह सृष्टि को चलाने के लिए गति करता है। वह बस इरादा करता है और किसी भी तरंह का कार्य अपने अंजाम को पहुंच जाता है। खुदा का यह गुण मस्तिष्क को विषम प्रतीत होता है क्योंकि छोटे से छोटे कार्य को करने के लिए गति आवश्यक होती है।
हालांकि कुछ घटनाएं ऐसी हैं जहां गति के दर्शन नहीं होते। उदाहरण के लिए एक टार्च किसी कमरे में जलाकर रख दी जाये तो उसका प्रकाश सामने की दीवार पर एक गोल घेरा बनाने लगेगा। अब यह घेरा लगातार बन रहा है लेकिन प्रकाश में कोई गति नहीं हो रही है। लेकिन यह कथन आधुनिक विज्ञान के अनुसार गलत है क्योंकि इस क्रिया में प्रकाश के कण अर्थात फोटॉन अनवरत रूप से टार्च से निकलते हैं और बीच की दूरी तय करके दीवार पर पड़ते रहते हैं।
इन फोटानों की चाल बहुत तेज होती है। इतनी कि आँख उनकी गति देखने में असमर्थ रहती है और वे स्थिर प्रतीत होते हैं। वास्तविकता तो यह है कि स्वयं फोटान भी अदृश्य होते हैं लेकिन वायु में उपस्थित कोलायडी कणों की चमक के कारण हमें उनकी स्थिति का आभास हो जाता है। तो इस प्रकार गति के बिना कोई कार्य नहीं होता। लेकिन अगर हम थोड़ा और गहराईपूर्वक विचार करें?
अगर हम खुदा को हरकत करता हुआ मानें तो एक विरोधाभास उत्पन्न हो जायेगा। यानि खुदा हर जगंह है यह कथन गलत सिद्ध हो जायेगा। क्यों? क्योंकि किसी वस्तु या प्राणी की गति तभी संभव है जब उसके आसपास कोई खाली जगंह हो। क्योंकि गति में वस्तु या प्राणी एक स्थान से दूसरे स्थान को ट्रांस्फर होता है। चूंकि खुदा से कोई जगंह नहीं बची है इसलिए वह कहीं जाने के लिए गति भी नहीं करेगा। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि वस्तु बिना खाली स्थान के भी गति कर सकती है। जैसे पानी से भरी बाल्टी में अणु गतिमान रहते हैं। लेकिन अगर आणविक स्थिति पर देखा जाये तो पानी के अणुओं के बीच काफी स्थान खाली रहता है जो उनकी गति के लिए पर्याप्त होता है। अब आते हैं एक ऐसी दलील पर जिससे अल्लाह का उपरोक्त गुण सत्य सिद्ध हो जाता है।
देखा जाये तो किसी मनुष्य द्वारा कार्य करने में लगा श्रम उसके ज्ञान पर निर्भर करता है। जितना अधिक उसका ज्ञान होगा, शारीरिक श्रम उसी अनुपात में कम हो जाता है। और अगर उसका ज्ञान कम है तो बुद्धि उसकी कमी पूरी कर देती है। उदाहरण के लिए आज से पचास साल पहले खेतों में अनाज पैदा करने के लिए उसे हल से जोतना पड़ता था जिसमें उसका और बैलों का काफी पसीना बह जाता था। जैसे जैसे मानव जाति ने प्रगति की, अपना ज्ञान और तजुर्बा बढ़ाया वैसे वैसे उसका कार्य मशीनों को ट्रान्सफर होने लगा और मानव श्रम की गति काफी कम होने लगी।
कभी वह समय था जब सन्देश भेजने के लिए सन्देश वाहको पर निर्भर रहना पड़ता था। ये सन्देश वाहक दूर तक यात्रा करके हफ्तों और महीनों में सन्देश पहुंचाने का कार्य करते थे। आज यही सन्देश मिनटों और सेकंडों में एक लम्बी दूरी तय करके इंटरनेट और फैक्स मशीनों द्वारा पहुंच जाते हैं और मनुष्य को बस नाममात्र की गति करनी होती है। यह गति उन मशीनों को कण्ट्रोल करने के लिए होती है। इसी प्रकार सोफे पर बैठे बैठे रिमोट कण्ट्रोल द्वारा टेलीविजन पर किसी भी चैनल के प्रोग्राम देखे जा सकते हैं। जबकि एक समय था जब उठकर टीवी ऑन करना पड़ता था, उसके चैनल बदलने पड़ते थे। बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में अधिकतर निर्माण और उत्पादन आटोमैटिक मशीनों द्वारा होता है और मनुष्य को खुद अपने हाथ पैर कम हिलाने पड़ते हैं। इन सब के पीछे केवल एक चीज कार्य कर रही है, वह है मनुष्य का ज्ञान। अपने ज्ञान के बल पर उसने अपने आराम के लिए मशीनों को बनाया और बैठे बैठे उन मशीनों से काम लेता है।
3 comments:
भाई क्या साबित करना चाहते हैं है आप , और खुदा की तुलना मशीनी वस्तुवो से क्यों कर रहे हैं। पहले आदमी खुद मेहनत करता था और अब मशीने ज्यादा से ज्यादा काम करती हैं उसमे खुदा की क्या भूमिका है।
खुदा या भागवान तो हर जगह मैं है हर वास्तु मैं है, हर सजीव या निर्जीव वास्तु मैं है। उसका कोई आकार नहीं वो तो निराकार है, वो तो सर्वगुण संपन्न है, उसकी तुलना आदमी या मशीन से कैसे की जा सकती है।
खुदा या भागवान तो सबका साथ देता है, चाहे कोई उसे माने या ना माने, वो तो गरीब के लिए भी है और अमीर के लिए भी है।
सब कुछ निर्भर करता है, इन्सान के कर्म के उपर।
कर्म ही खुदा या भागवान है,
कर्म ही पूजा है,
कर्म ही धर्म है।
वैज्ञानिक नज़रिये से देखा जाये तो पवित्र कुरआन अल्लाह के वजूद की खुद एक बड़ी दलील है।
हज़रत मुहम्मद (स.) आज हमारी आँखों के सामने नहीं हैं लेकिन जिस ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन के ज़रिये उन्होंने लोगों को दुख निराशा और पाप से मुक्ति दिलाई वह आज भी हमें विस्मित कर रहा हैै।
यह स्वयं दावा करता है कि यह ईश्वर की ओर से है। यह स्वयं अपने ईश्वरीय होने का सुबूत देता है और अपने प्रति सन्देह रखने वालों को अपनी सच्चाई की कसौटी और चुनौती एक साथ पेश करता है कि अगर तुम मुझे मनुष्यकृत मानते हो तो मुझ जैसा ग्रंथ बनाकर दिखाओ या कम से कम एक सूरः जैसी ही बनाकर दिखाओ और अगर न बना सको तो मान लो कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से हूँ जिसका तुम दिन रात गुणगान करते हो। मैं तुम्हारे लिए वही मार्गदर्शन हूँ जिसकी तुम अपने प्रभु से कामना करते हो। मैं दुखों से मुक्ति का वह एकमात्र साधन हूँ जो तुम ढूँढ रहे हो।
पवित्र कुरआन में जल-थल का अनुपात
एक इनसान और भी ज़्यादा अचम्भित हो जाता है जब वह देखता है कि ‘बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 12 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।
सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %
सूखी जमीन और समुद्र का आपसी अनुपात क्या है? यह बात आधुनिक खोजों के बाद मनुष्य आज जान पाया है लेकिन आज से 1400 साल पहले कोई भी आदमी यह नहीं जानता था तब यह अनुपात पवित्र कुरआन में कैसे मिलता है? और वह भी एक जटिल गणितीय संरचना के रूप में।
क्या वाकई कोई मनुष्य ऐसा ग्रंथ कभी रच सकता है?
क्या अब भी पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा है?
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तारकेश्वर जी,
अभी मेरी ये पोस्ट अधूरी है. मैं खुदा की तुलना मशीनों से नहीं कर रहा हूँ बल्कि मेरा मतलब कुछ और है, जो कल इस पोस्ट के दूसरे भाग से साफ़ हो जाएगा. धन्यवाद.
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