अल्लाह में अनगिनत गुण हैं। यह कुछ विषम सा कथन प्रतीत होता है। क्योंकि आप गुणों को गिनते जाईए। एक न एक समय आयेगा जब ये गुण समाप्त हो जायेंगे। लेकिन इसको साइंटिफिक तरीके से विचार करने के बाद ही कोई निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
अनन्त या इनफिनिटी की संकल्पना वैज्ञानिक सिद्धान्तों में काफी स्पष्ट है। विशेष रूप से विज्ञान की रीढ़ गणित में। प्राकृतिक संख्याएं एक, दो, तीन--- गिनते जाईए, कोई सिरा इसकी समाप्ति का नहीं मिलेगा। यानि ये संख्याएं अनन्त होती हैं। एक निश्चित या अनिश्चित लम्बाई की रेखा में अनन्त बिन्दु होते हैं। किसी भी समतल पर अनन्त बिन्दु होते हैं। और तो और किसी अशून्य संख्या को शून्य से विभाजित कर दिया जाये तो परिणाम होगा अनन्त। अल्लाह एक है, और ऐसा एक जिसमें कोई कमी नहीं (Absolute One)।
सृष्टि की रचना शून्य से हुई। इसी सृष्टि का अंग है मनुष्य और उसके विचार। स्पष्ट है कि जब इन शून्य विचारों से अल्लाह के बारे में विचार किया जायेगा तो इसका अर्थ होगा कि हम एक को शून्य से विभाजित कर रहे हैं। परिणाम जाहिर है कि अनन्त होगा। ठीक गणित के उपरोक्त नियम की तरंह। वास्तव में अल्लाह के गुण उससे अलग करके नहीं देखे जा सकते, क्योंकि अलग करने का मतलब हुआ कि हम उसे विभाजित कर रहे हैं अपने शून्य विचारों से। स्पष्ट है कि एक, दो, तीन----- अनन्त गुण मिलते जायेंगे, कभी सीमा नहीं मिलेगी।
ऊपर एक और शब्द इस्तेमाल में आया है, ‘‘ऐसा एक, जिसमें कोई कमी नहीं (Absolute One) इस वाक्य की गहराई गणितीय नियमों में डूबने पर पता चलती है। प्रायिकता सिद्धान्त (Probability Theory) आधुनिक विज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा है। इस ब्रह्माण्ड में जो भी घटना घटती है उसके होने की एक प्रोबेबिलिटी होती है। उदाहरण के लिए अगर एक सिक्का उछाला जाये तो उसमें हेड आने की प्रोबेबिलिटी आधी होती है। इसी तरंह किसी रेडियोऐक्टिव तत्व के किसी परमाणु का विघटन होना इसकी भी प्रोबेबिलिटी निकाली जा सकती है। प्रोबेबिलिटी का अधिकतम मान एक और न्यूनतम मान जीरो होता है। किसी घटना (Event) के घटने की प्रोबेबिलिटी अगर एक है तो इसका मतलब हुआ कि वह घटना निश्चित रूप से घटेगी। और घटना के घटने की प्रोबेबिलिटी अगर जीरो है तो इसका मतलब हुआ कि उस घटना का होना नामुमकिन है।
लेकिन इस नियम के अपवाद भी दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए अगर हमारे पास सभी नेचुरल नम्बर्स का सेट (एक, दो, तीन-----इत्यादि) है और उस सेट से कोई नम्बर निकाला जाये तो उस नम्बर के दो (2) न आने की प्रोबेबिलिटी एक होगी। इसके बावजूद यह मुमकिन है कि निकलने वाला नम्बर संयोग से 2 हो जाये। इसी बात को सृष्टि की घटनाओं में लिया जा सकता है। किसी घटना को घटने की प्रोबेबिलिटी वन होने का मतलब है कि वह घटना श्योर घटेगी। इसके बावजूद वह घटना कभी कभी घटित होने से रह जाती है। अर्थात घटना की प्रोबेबिलिटी वन होने के बाद भी उसमें कमी है।
लेकिन खुदा का वजूद होना एक ऐसा वन है जिसमें कोई कमी नहीं। उसके वजूद की एकात्मकता प्रोबेबिलिटिक वन से भी ऊपर है जिन्हें आलमोस्ट श्योर कहा जाता है। लेकिन खुदा का एक होना परफेक्टली श्योर है। उसके वजूद के अलावा कोई निर्माण या घटना आलमोस्ट श्योर या उससे कम होगी।
इस कथन पर एतराज़ किया जा सकता है। क्योंकि हमें अपने आसपास बहुत सी घटनाएं दृष्टिगत होती हैं जो श्योर (Perfectly Sure) होती हैं।
जैसे अगर हमसे पच्चीस कदम दूर खड़ा कोई व्यक्ति चीखता है तो आवाज़ श्योरली हमारे कानों तक पहुंच जायेगी। लेकिन मान लिया जब वह व्यक्ति चीखता है उसी समय आसपास कोई बड़ा विस्फोट हो जाये तो? स्पष्ट है कि विस्फोट की भीषण आवाज में व्यक्ति की चीख दब जायेगी। इसी तरंह मेज़ पर कोई वस्तु स्थिर रखी है तो हम ये नहीं कह सकते कि वह वस्तु पूरी तरंह स्थिर है क्योंकि उसके अणु कंपन कर रहे हैं। और सूर्य के सापेक्ष जब पृथ्वी गति कर रही है तो साथ साथ वह वस्तु भी गति कर रही है।
इस प्रकार कोई भी घटना या किसी चीज़ का वजूद अधिक से अधिक आलमोस्ट श्योर हो सकता है, परफेक्टली श्योर नहीं। सिर्फ खुदा की ज़ात है जो परफेक्टली श्योर है।
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