अल्लाह का कोई रूप या आकार नहीं है। वह निराकार है। वह किसी को दिखाई नहीं देता और न किसी को दिखाई देगा। यह बात गले से नहीं उतरती। क्योंकि कोई भी वस्तु जीवधारी या निर्जीव किसी न किसी रूप, आकार में हमें प्रभावित करता है। जो वस्तुएं नहीं भी दिखाई देतीं उन्हें वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से देखा जा सकता है। जैसे हवा नंगी आँखों से नहीं दिखाई देती लेकिन माइक्रोस्कोप की मदद से उसके अणु देखे जा सकते हैं। इलेक्ट्रान, प्रोटॉन, न्यूट्रान वगैरा को कैथोड किरण कम्पनदर्शी, विल्सन क्लाउड चैम्बर और इस प्रकार के दूसरे उपकरणों की मदद से देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर हमारे आसपास जो भी चीजें हैं उन्हें विभिन्न उपकरणों की मदद से हम देख सकते हैं। फिर अल्लाह, जिसे हर जगह मौजूद माना जाता है क्यों नहीं दिखाई देता? अगर हम गहराई के साथ विचार करें तो इसका जवाब मिल सकता है। इस संसार में बहुत कुछ ऐसा है जो किसी भी उपकरण से नहीं देखा जा सकता।
इसमें शामिल है वक्त, मानव मन में उमड़ते विचार और ऊर्जा (Energy) के विभिन्न रूप। प्रकाश के अलावा ऊर्जा किसी भी रूप में हो नहीं दिखाई देती और न ही उसका कोई आकार होता है। देखा जाये तो सिर्फ प्रकाश ही हमारी आँखों को संवेदित करता है और उसी की मदद से हम दूसरी वस्तुओं को देखते हैं। अगर कोई वस्तु प्रकाश को रोक रही है या वहां से गुजर रहा प्रकाश हमारी आँखों तक नहीं पहुंच रहा है तो वह वस्तु दिखाई नहीं देगी। इसका उदाहरण है ब्लैक होल।
दूसरी ऊर्जाओं की बात की जाये तो ऊष्मा हमारी खाल को झुलसा सकती है लेकिन दिखाई नहीं देती। गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) के रूप में ऊर्जा किसी को चोट पहुंचा सकती है लेकिन उसे देखना असंभव है। ऊर्जा का कोई आकार नहीं होता। वह निराकार होती है। ऊर्जा शक्ति का एक सूक्ष्म रूप है। किसी स्थान पर शक्ति ज्यादा होने का मतलब है कि वहां ऊर्जा ज्यादा है। प्रकाश किरणों से अधिक ऊर्जा एक्स किरणों में होती है और एक्स किरणों से ज्यादा गामा किरणें शक्तिशाली होती हैं। लेकिन यह शक्ति निराकार होती है। शक्ति का कोई भी रूप निराकार होता है।
अब अल्लाह के बारे में सोचा जा सकता है जो कि महाशक्ति (Super Power) है। और हर तरह की शक्तियों को उसने निर्मित किया है। जब उसकी निर्मित की हुई तुच्छ शक्तियां निराकार होती हैं तो वह स्वयं कैसे आकारयुक्त हो सकता है? उसका तो निराकार होना लाज़मी है।
वास्तव में अगर हम उसे आकारयुक्त मान लें। उसे सशरीर मान लें तो फिर वह सीमित हो जायेगा, एक दायरे में सिमट जायेगा। और फिर वह अन्य प्राणियों की तरह निराकार वस्तुओं को नहीं देख सकेगा। न उसे निराकार का रचयिता माना जा सकेगा। और जगहें उससे खाली हो जायेंगी। एक उदाहरण से यह स्पष्ट हो जायेगा।
मान लिया कि मेज पर एक पेन रखा हुआ है। इस पेन का एक आकार है। पेन को हम इसलिए आकारयुक्त देख रहे हैं क्योंकि उसके आसपास का स्थान पेन के पदार्थ से खाली है। इसी खाली स्थान के सापेक्ष पेन एक निश्चित आकार में दिखाई देता है। इस तरह अगर अल्लाह को आकारयुक्त माना जायेगा तो आसपास की जगहें उससे खाली हो जायेंगी और ‘खुदा हर जगह है’ यह कथन झूठा हो जायेगा। किसी भी वस्तु का आकार सदैव सापेक्ष होता है। उसके आसपास के अन्य वातावरण को देखते हुए। ठीक उसी तरह जिस तरह एक लाइन के पास दूसरी लाइन खींच देने पर वह लाइन छोटी हो जाती है। यानि आकारयुक्त होना एक तुलनात्मक बात है और अल्लाह किसी भी तरह की तुलना से बरी है। उसे किसी भी वस्तु के सापेक्ष कम ज्यादा नहीं कहा जा सकता। इसलिए खुदा का निराकार होना ही अधिक तर्कसंगत है।
3 comments:
bahi jaan ,
lekin aap ye jante hain ki iswar sarv sakti saali har jagah maujood hai , aap ek dum sahi hain ,par allah ko ye prove karne ki jaroorat nahi hai . aur rahi baat aur dharmon ke sakar iswar ki to jab iswar sarv saktisali hai to akar mein aa pana kya uske bas ki baat nahi hai ? aue hindon mein bhi ishwar ko nirakar hi mana hai , jin avtaron ki hum pooja karte hain vo iswar swaroop hain ,matlab unhe lagbhag unke barabar saktiyan hai , aur unhi saktiyon ki hindu pooja karte hain .
gre8
aur apne jo likha vo kaafi achha hai , badhai .
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