Sunday, January 17, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-18)


अगला तर्कसंगत न प्रतीत होने वाला गुण ये है कि वह अनन्त गुणों का स्वामी है। अक्ल से परे लगने वाली बात इसमें ये है कि गुण हम चाहे जितना गिन लें, कहीं न कहीं ये गिनती खत्म हो जायेगी। न्यायप्रियता, ज्ञान, शक्ति इत्यादि शुमार करते चले जाईए। आखिर में हमारे पास शुमार करने के लिए कोई गुण नहीं बचेगा। फिर अल्लाह किसी तरह अनन्त गुणों का स्वामी हो सकता है?

खुदा को सृष्टि की रचना मेंं किसी भी तरह की हरकत की जरूरत नहीं पड़ी। और न ही वह सृष्टि को चलाने के लिए गति करता है। वह बस इरादा करता है और किसी भी तरह का काम अपने अंजाम को पहुंच जाता है। उसका यह गुण भी कुछ विषम प्रतीत होता है। क्योंकि हमें कोई भी कार्य करने के लिए हाथ पैर हिलाने पड़ते हैं, गति करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए बातचीत करने के लिए होंठ हिलाने पड़ेंगे। फोन पर बात करने के लिए नम्बर मिलाना पड़ेगा। कहीं जाने के लिए कदमों का इस्तेमाल करना पड़ता है। जबकि अल्लाह तो जिस्म भी नहीं रखता। बिना किसी हरकत के किस तरंह वह कार्यों को अंजाम दे देता है यह बात कुछ पल्ले नहीं पड़ती।

इसी तरह खुदा को कोई चीज ईजाद करने के लिए किसी चिंतन या कल्पना करने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे पहले कि कोई चीज वजूद में आये, उसे उसका ज्ञान रहता है। यह गुण भी अक्ल को कुछ विषम सा प्रतीत होता है। क्योंकि मानव अगर कोई आविष्कार करता है तो उसके पीछे बरसों की रिसर्च और पूर्व प्रयोगों का दखल रहता है। पहले वह आविष्कार की कल्पना करता है, उसकी जरूरत महसूस करता है। फिर यह कैसे हो सकता है कि खुदा बिना किसी चिंतन या कल्पना के कोई वस्तु निर्मित कर ले?

विवादास्पद गुणों के स्पष्टीकरण : इस तरह हम देखते हैं कि खुदा से सम्बंधित ये गुण ऐसे हैं जो प्रथम दृष्टि में तर्कसंगत नहीं प्रतीत होते हैं और इनका चिंतन करने वाला उलझनों के जाल में फंसकर सही रास्ते से भटक जाता है और कुछ का कुछ समझने लगता है। जिसमें काफी कुछ उसके अधूरे ज्ञान का भी दखल रहता है। अल्लाह के बारे में फैले अनगिनत भ्रम भी इसके जिम्मेदार होते हैं। और गैर साइंटिफिक चिंतन भी अक्सर गलत परिणाम दे देता है। मैं इस बात का दावा तो नहीं करता कि मेरे विचार शत प्रतिशत सही हैं। लेकिन मैं एक रास्ता जरूर सुझा रहा हूं। यह रास्ता है धर्मग्रंथों के बारे में और खुदा के बारे में साइंटिफिक तरीके से चिंतन। क्योंकि वैज्ञानिक अपना चिंतन इस दिशा में बहुत कम करता है और उसकी रिसर्च ईश्वर से अलग होती है। 

हालांकि इस कथन के अपवाद हैं। कई महान वैज्ञानिक और फिलास्फर अल्लाह के बारे में चिंतन मनन कर चुके हैं। लेकिन बहरहाल हर मनुष्य एक अलग तरीके से सोचता है। दूसरी बात ये है कि साइंस लगातार डेवलप होती रहती है। पुराने नियम खंडित होते हैं नये बनते हैं। किसी बात को सिद्ध करने के लिए नये नये उदाहरण सामने आते हैं। स्पष्ट है कि आज से पचास वर्ष पहले अगर वैज्ञानिक कोई निष्कर्ष निकाल चुके हैं तो आज वर्तमान में वे गलत सिद्ध हो सकते हैं। 

तो अब एक एक कर अल्लाह से सम्बंधित उन गुणों को लेते हैं जो मानव मन में सैंकड़ों सवाल पैदा कर देते हैं।

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