Sunday, December 27, 2009

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-3)


लेकिन एक बड़ा दायरा ऐसा है जो हर मान्यता को विज्ञान के तर्कों और एक्सपेरीमेन्ट की कसौटी पर परखता है। और उन बातों को पूरी तरह नकार देता है जो उन तर्कों के विरुद्ध होती हैं। एक शब्द होता है कांट्राडिक्शन (contradiction)। जिसमें कोई कथन (Statement) किसी दूसरे कथन को झूठा या गलत करार दे देता है। साइंस में कांट्राडिक्शन के लिए कोई जगह नहीं। और अगर किसी परिकल्पना को सिद्ध करते वक्त कोई कांट्राडिक्शन पैदा हो जाये तो इस परिकल्पना को रदद कर दिया जाता है। इसके बरअक्स अगर कोई परिकल्पना एक्सपेरीमेन्टल तरीके से या लॉजिकल तरीके से सच साबित हो जाये और बीच में कोई कांट्राडिक्शन न पैदा हो तो इसे वैज्ञानिक सिद्धान्त मान लिया जाता है।
मिसाल के तौर पर पुराने नियमों के आध्रा पर मैथेमैटिकल कैलकुलेशन करने के बाद दो ग्रहों के बीच गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) का नियम दिया गया। जिसके अनुसार यह ताकत उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (Inversely Proportional) होती है। एक्सपेरीमेन्ट के जरिये इस नियम की सच्चाई जाँची जा चुकी है और कहीं कोई कांट्राडिक्शन भी नहीं दिखाई पड़ता है। इस तरह यह एक वैज्ञानिक सिद्धान्त के रूप में मान्य है।
लेकिन विज्ञान की बहुत सी परिकल्पनाएं कांट्राडिक्शन हो जाने की वजह से रदद भी की जा चुकी हैं। जैसे बहुत पहले न्यूटन ने रौशनी के बारे में कहा कि यह कणिका (corpuscles) के रूप में चलती है। न्यूटन के इस रूल से कैलकुलेशन करने पर विरल माध्यम (Rare Medium) में रौशनी की रफ्तार सघन माध्यम (Denser Medium) से कम आने लगी। जबकि वास्तव में इसका उल्टा होता है। इस तरह कांट्राडिक्शन की वजह से यह नियम रदद कर दिया गया।
एक और मिसाल हाईगेन्स के तरंग सिद्धान्त के लिए है। हाईगेन्स ने तरंगों के चलने का यह नियम दिया कि किसी भी तरह की तरंग के चलने के लिए माध्यम जरूरी है। रौशनी और रेडियो तरंगों के धरती से बाहर जाने के लिए हाईगेन्स ने एक कामन माध्यम ईथर की कल्पना की जो हर तरफ फैला हुआ है। लेकिन माईकेलसन मोरली नामक एक एक्सपेरीमेन्ट ने इस कल्पना को गलत साबित कर दिया। और यह साबित हो गया कि तरंगों की कुछ किस्में बिना किसी माध्यम के चलती हैं।
तो इस तरह विज्ञान के विकास के साथ साथ बहुत से नियम बने, फिर रदद किये गये। उनकी जगह पर नये नियम लाये गये। और किसी तरह का कांट्राडिक्शन न मिलने पर उन्हें लागू कर दिया गया। इस दिशा में साइंस रास्तों की रुकावट दूर करती हुई अपना विकास करती रही। आज हम वर्तमान में जिस जगह पर खड़े हैं, काफी कुछ इस पृथ्वी, आकाश, सौरमण्डल इत्यादि के बारे में स्पष्ट हो चुका है। लेकिन साथ ही साथ काफी से ज्यादा अज्ञानता के पर्दे के पीछे है। जहां तक साइंस की पहुंच नहीं हो पायी है। इतना जरूर है कि समय बीतने के साथ साइंस की तरक्की कई रहस्यों से परदा उठाती जाती है।
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