Saturday, December 26, 2009

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-2)


प्रस्तावना :
 आस्तिक और नास्तिक। मानव दर्शन के दो पूरी तरह अलग अलग पहलू हैं। एक खुदा या गॉड पर यकीन रखता है। यह मानता है कि इस दुनिया को, आसमान को, सूरज को, चांद को और झिलमिलाते सितारों को बनाने वाली एक सुपर पावर मौजूद है। वही इनकी रफ्तार को, गर्दिशों को कण्ट्रोल में रखती है। एक दूसरे से मुनासिब दूरी बनाये रखती है और संसार में मौजूद सभी जानदारों की पालनहार है।
जबकि इंसानी सोच की इससे अलग विचारधारा वाले लोग जिन्हें नास्तिक कहा जाता है, यह मानते हैं कि दुनिया का सम्पूर्ण सिस्टम बिना किसी कण्ट्रोल के स्वचालित है। संसार की प्रत्येक वस्तु का जन्म अपने आप विकास प्रक्रिया के द्वारा हुआ है। जीवधारी खुद पैदा हुए हैं और यूनिवर्स के अलग अलग हिस्सों के बीच किसी तरह का कोई इण्टेलिजेंट रिलेशन यानि ताल्लुक नहीं है।
यह दो तरह की विचारधाराएँ शायद उसी वक्त पैदा हो गयी थीं जब इंसान ने पहली बार इस जमीन पर अपनी आँखें खोली थीं। और आज तक यह बहस जारी है। इस बात की भी कोई उम्मीद नहीं कि यह बहस कयामत से पहले खत्म हो जायेगी। लेकिन यह साफ है कि इस बहस से खयालात के नये दरवाजे खुलते हैं। नयी नयी फिक्रें सामने आती हैं। कभी आस्तिक नास्तिक को लाजवाब कर देता है तो कभी नास्तिक आस्तिक की बात मानने से इंकार कर देता है।
और अल्लाह या ईश्वर के वजूद से जुड़ा एक दूसरा सवाल है मजहब या धर्म का। और मज़हब के पूरी तरह उलट मानी जाती है साइंस। इस सवाल से जुड़ने वाले ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि मज़हब और साइंस दो पूरी तरह अलग चीजें हैं और दोनों के बीच कोई ताल्लुक नहीं। यहां तक कि साइंटिस्ट, जो मजहब को भी मानते हैं, अपनी रिसर्च को धर्म से पूरी तरह अलग थलग रखते हैं। वे लोग यह मानकर चलते हैं कि वैज्ञानिक तर्कों (Logic) की कसौटी में मजहब के ख्यालात की कोई जगह नहीं। धर्म आस्था से जुड़ा हुआ है और आस्था सिर्फ दिल से होती है। कोई तर्क इसमें मान्य नहीं होता।
जबकि साइंस में सिर्फ उन्हीं मान्यताओं को जगह दी जाती है जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरती हैं। और उन्हें सैद्धान्तिक व प्रायोगिक रूप से मुमकिन कर दिया जाता है। इसी तरह मजहब से जुड़ी बातों में अगर कोई बहस करता है और किसी मान्यता की वजह जानना चाहता है तो ऐसा व्यक्ति अधर्मी कहलाने लगता है। उसे मजहब से बाहर कर दिया जाता है और कभी कभी तो उसके खिलाफ फतवा दे दिया जाता है।
मिसाल के तौर पर प्राचीन पुराणों में राक्षस और देवताओं की कहानियां मिलती हैं। लेकिन कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि राक्षस या देवताओं का इस जमीन पर कोई वजूद नहीं। क्योंकि आजकल के वक्त में न तो राक्षस दिखाई देते हैं और न देवता। मौजूदा दौर में किसी शख्स ने शैतान नहीं देखा है, शैतान जैसे इंसान जरूर देखे हैं। लेकिन अगर वह मजहबी है तो यह कभी नहीं कह सकता कि दुनिया में शैतान का कोई वजूद नहीं।
यही बात अल्लाह के वजूद के बारे में कही जाती है। अल्लाह का वजूद साइंटिफिक रिसर्च से नहीं साबित किया जा सकता। इंसान का दिल व दिमाग इस वजूद को महसूस करता है। साइंस का कोई एक्सपेरीमेन्ट इस एहसास की सच्चाई नहीं साबित कर सकता। क्योंकि हर एक्सपेरीमेन्ट की अपनी हद होती है। एक सीमित दायरा होता है। जबकि खुदा हर तरह की सीमा से बाहर है। इस तरह साइंटिफिक एक्सपेरीमेन्ट इस ताकत को नहीं दिखा सकते। यही वजह है कि साइन्टिस्ट अपने साइंस को मजहब से और खास तौर से खुदा से नहीं जोड़ता।
बहुत से ऐसे साइंटिस्ट ज़रूर गुजरे हैं जो अपनी रिसर्च का परिणाम खुदा की ख्वाहिश को समझते थे। महान साइंटिस्ट ब्लेज पास्कल गॉड में पूरा यकीन रखता था। यहां तक कि उसने एक बार अपनी रिसर्च बीच में ही रोक दी थी। क्यांकि वह समझता था कि गॉड उसकी रिसर्च को पसंद नहीं करता। बाद में एक घटना ने उसकी सोच बदल दी और वह एक बार फिर अपनी रिसर्च में जुट गया।
ऐसे वैज्ञानिकों की एक लम्बी लिस्ट है जो खुदा या गॉड में अटूट विश्वास रखते थे और उन्होंने साइंस के विकास में अद्वितीय योगदान दिया। इनमें कापरनिकस, आइजक न्यूटन, रेने डिस्कार्टस, लुई पास्चर, मैक्स प्लांक, ग्रेगर मेंडल, माईकेल फैराडे वगैरा की एक लम्बी लिस्ट है। और अगर इसमें इस्लाम के स्वर्ण युग के साइंसदानों को जोड़ दिया जाये तो यह लिस्ट और लम्बी हो जाती है। इनमें इमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ-स-), इमाम जाफर अल सादिक (अ-स-), फादर ऑफ केमिस्ट्री जाबिर इब्ने हय्यान उर्फ गेबर, फादर आफ माडर्न मेडिसिन इब्ने सेना, अलजेबरा का आविष्कारक अल ख्वारिज्म़ी वगैरा के नाम काबिले जिक्र हैं।
अल्लाह में यकीन न रखने वाले साइंटिस्ट भी किसी न किसी ऐसी ताकत की कल्पना करने पर मजबूर होते हैं जिसने या तो इस यूनिवर्स को बनाया है या फिर इसे चलाने में शामिल है। मिसाल के तौर पर आजकल एक ऐसे पर्टिकिल की खोज जोर शोर से हो रही है जिससे दुनिया का सारा मैटर बना हुआ है। इस पर्टिकिल को नाम दिया गया है हिग्स बोसॉन या गॉड पर्टिकिल। 

4 comments:

अवधिया चाचा said...

nice post

समयचक्र said...

बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति. बधाई...

दिनेशराय द्विवेदी said...

पढ़ रहे हैं, पूरा होने पर ही राय कायम कर पाएंगे।

सहसपुरिया said...

VERY GOOD, SUBHANALLAH