कुरान की कुछ आयतों का समकालीन विज्ञान की रौशनी में नया आकलन कर के यह कहना की बिग बैंग सिद्धांत ७०० इस्वी में जान लिया गया था, मेरे विचार में तर्कसंगत नहीं है| कई अन्य धर्मग्रन्थ (जैसे की ऋग्वेद का नासदीय सूक्त या बाइबिल का जेनेसिस अध्याय) ऐसी चीजे कहते हैं जिनकी समकालीन विज्ञान के आधार पर बिग बैंग सिद्धांत होने का अर्थ निकाला जा सकता है| लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वास्तव में इनके लिखने वाले बिग बैंग की बात कर रहे थे| आपको यह तो मानना ही पड़ेगा कि इन किताबों को लिखने वाले लोग काफी बुद्धिमान थे: अगर वे बिग बैंग सिद्धांत के बारे में जानते, तो उससे आगे की खोजें करने में उन्हें अधिक अधिक समय न लगता|
मेरे विचार में कुरआन कि आयतों का बिग-बैंग सिद्धांत जैसा कपोल-कल्पित अर्थ निकाल कर आप इस्लामिक जगत के वास्तविक वैज्ञानिक महानायकों: इब्न सिना, उमर खय्याम और अल-ख्वारिज्मी आदि के योगदान और विरासत का अपमान कर रहे हैं|
@ahannaasmi ऐसा लगता है की आपने वीडियो आंशिक रूप से ही देखा है. इसमें मैंने पुरानी किताबों के आधार पर सिद्ध किया है की बिग बैंग सिद्धांत आंशिक रूप से ही सत्य है. वास्तविक थ्योरी जो इस्लामी विद्वान बताते हैं वह कुछ और ही है. कुरआन की जिन आयतों का मैंने सन्दर्भ दिया है उसमे मैंने कहा है की 'कुछ हद तक' इनसे बिग बैंग का अर्थ निकाला जा सकता है, लेकिन पूरी तरह नहीं.
"इसमें मैंने पुरानी किताबों के आधार पर सिद्ध किया है की बिग बैंग सिद्धांत आंशिक रूप से ही सत्य है"
शायद मैं समझने में गलती कर रहा हूँ, लेकिन क्या आप यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि जहाँ पर पुरानी किताबों का कहना आधुनिक शोध के परिणामों से अलग हो, वहाँ पुरानी किताबों को उपर माना जाना चाहिए? मैं इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि मुझे यह बिलकुल भी तर्कसंगत नहीं लगा|
"कुरआन की जिन आयतों का मैंने सन्दर्भ दिया है उसमे मैंने कहा है की 'कुछ हद तक' इनसे बिग बैंग का अर्थ निकाला जा सकता है, लेकिन पूरी तरह नहीं."
क्षमा-प्रार्थी हूँ कि मैंने यह भाग नहीं देखा| मुझे भी लगा था कि कोई विज्ञान लेखक वर्तमान में उपलब्ध शोध कों देखते हुए यह कहने की भूल नहीं करेगा कि किसी भी पुराने धर्मग्रन्थ में वास्तव में बिग बैंग का उल्लेख किया गया है|
एक बात और कहना चाहूँगा: आपका अरब और फारसी विद्वानों के योगदानों का प्रचार करने का प्रयास काफी सराहने-योग्य है| परन्तु एक और निवेदन है: आपको इस बारे में भी टिप्पणी करनी चाहिए कि किस तरह पाँचवी से बारहवी सदी के बीच गणित और विज्ञान का केन्द्र रहने के बाद पहले भारतीय समाज, और बाद में अरब और फारसी समाज धार्मिक रुढिवादिता के चंगुल में फसने कि वही गलती कर बैठे जिसकी वज़ह से यूरोप में सदियों पहले "डार्क एज" की शुरुआत हुई थी| अपनी विरासत पर गर्व करना उचित है, पर हमें उन कारणों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनकी वजह से हम इस विरासत से हाथ धो बैठे, जिससे ये गलतियाँ फिर से न दोहरायी जाएँ|
@ahannaasmi "क्या आप यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि जहाँ पर पुरानी किताबों का कहना आधुनिक शोध के परिणामों से अलग हो, वहाँ पुरानी किताबों को उपर माना जाना चाहिए?" यदि आधुनिक शोध किसी अंतिम परिणाम पर नहीं पहुंचा है तो अन्य alternatives पर विचार करने के लिए पुरानी किताबों का सहारा लेना अतार्किक नहीं. हो सकता है पुराने विज्ञानी किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे हों जहां आधुनिक विज्ञान की पहुँच अभी न हो पाई हो. पांच सौ साल पहले की फर्मा थ्योरम का प्रूफ विलुप्त हो गया था जिसे फिर से वैज्ञानिकों ने हाल ही में सिद्ध किया है. "आपका अरब और फारसी विद्वानों के योगदानों का प्रचार करने का प्रयास काफी सराहने-योग्य है| परन्तु एक और निवेदन है: आपको इस बारे में भी टिप्पणी करनी चाहिए कि किस तरह पाँचवी से बारहवी सदी के बीच गणित और विज्ञान का केन्द्र रहने के बाद पहले भारतीय समाज, और बाद में अरब और फारसी समाज धार्मिक रुढिवादिता के चंगुल में फसने कि वही गलती कर बैठे जिसकी वज़ह से यूरोप में सदियों पहले "डार्क एज" की शुरुआत हुई थी|" आपकी इस बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ. मेरा विचार है की जब कठमुल्ला टाइप के लोग धर्म को अपने तरीके से परिभाषित करने लगते हैं तो वहीँ से धार्मिक रुढिवादिता की शुरुआत होती है. वरना धर्म तो सच्चाई की खोज का ही नाम है.भारतीय, अरबी और फ़ारसी के जिन विद्वानों ने महान वैज्ञानिक खोजें कीं क्या वो किसी धर्म को नहीं मानते थे? मेरे लेखन का यही मकसद है की लोग समझें की धर्म प्रगति की रुकावट नहीं है. हम अपनी खो चुकी विरासत को पहचानें और इसे आगे बढाते हुए फिर से शिखर पर पहुँच जाएँ.
मैं आपके तर्क से पूरी तरह सहमत हूँ| बस एक छोटी सी शिकायत है: यह कहना कि "पांच सौ साल पहले की फर्मा थ्योरम का प्रूफ विलुप्त हो गया था जिसे फिर से वैज्ञानिकों ने हाल ही में सिद्ध किया है" गलत है| सभी उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि फर्मा का प्रूफ, जो कुछ भी था, गलत था| आधुनिक प्रूफ में कई नए सिद्धांतों का प्रयोग किया गया है जो फर्मा के समय में अज्ञात थे| फर्मा ने क्या गलती की होगी, यह भी अब लगभग तय है| फर्मा के लगभग १५० वर्ष बाद लामे ने एक प्रूफ दिया था जो इस धारणा पर आधारित था कि unique factorization प्रमेय cyclotomic integrs पर भी वैध हो| ऐसी ही एक गलत धारणा फर्मा के लगभग समकालीन महान गणितग्य ओयलेर के लेखों में भी पाई गई है, और बहुत संभव है कि फर्मा ने भी ऐसी ही गलती की होगी|
6 comments:
Umda...
कुरान की कुछ आयतों का समकालीन विज्ञान की रौशनी में नया आकलन कर के यह कहना की बिग बैंग सिद्धांत ७०० इस्वी में जान लिया गया था, मेरे विचार में तर्कसंगत नहीं है| कई अन्य धर्मग्रन्थ (जैसे की ऋग्वेद का नासदीय सूक्त या बाइबिल का जेनेसिस अध्याय) ऐसी चीजे कहते हैं जिनकी समकालीन विज्ञान के आधार पर बिग बैंग सिद्धांत होने का अर्थ निकाला जा सकता है| लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वास्तव में इनके लिखने वाले बिग बैंग की बात कर रहे थे| आपको यह तो मानना ही पड़ेगा कि इन किताबों को लिखने वाले लोग काफी बुद्धिमान थे: अगर वे बिग बैंग सिद्धांत के बारे में जानते, तो उससे आगे की खोजें करने में उन्हें अधिक अधिक समय न लगता|
मेरे विचार में कुरआन कि आयतों का बिग-बैंग सिद्धांत जैसा कपोल-कल्पित अर्थ निकाल कर आप इस्लामिक जगत के वास्तविक वैज्ञानिक महानायकों: इब्न सिना, उमर खय्याम और अल-ख्वारिज्मी आदि के योगदान और विरासत का अपमान कर रहे हैं|
@ahannaasmi
ऐसा लगता है की आपने वीडियो आंशिक रूप से ही देखा है. इसमें मैंने पुरानी किताबों के आधार पर सिद्ध किया है की बिग बैंग सिद्धांत आंशिक रूप से ही सत्य है. वास्तविक थ्योरी जो इस्लामी विद्वान बताते हैं वह कुछ और ही है. कुरआन की जिन आयतों का मैंने सन्दर्भ दिया है उसमे मैंने कहा है की 'कुछ हद तक' इनसे बिग बैंग का अर्थ निकाला जा सकता है, लेकिन पूरी तरह नहीं.
"इसमें मैंने पुरानी किताबों के आधार पर सिद्ध किया है की बिग बैंग सिद्धांत आंशिक रूप से ही सत्य है"
शायद मैं समझने में गलती कर रहा हूँ, लेकिन क्या आप यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि जहाँ पर पुरानी किताबों का कहना आधुनिक शोध के परिणामों से अलग हो, वहाँ पुरानी किताबों को उपर माना जाना चाहिए? मैं इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि मुझे यह बिलकुल भी तर्कसंगत नहीं लगा|
"कुरआन की जिन आयतों का मैंने सन्दर्भ दिया है उसमे मैंने कहा है की 'कुछ हद तक' इनसे बिग बैंग का अर्थ निकाला जा सकता है, लेकिन पूरी तरह नहीं."
क्षमा-प्रार्थी हूँ कि मैंने यह भाग नहीं देखा| मुझे भी लगा था कि कोई विज्ञान लेखक वर्तमान में उपलब्ध शोध कों देखते हुए यह कहने की भूल नहीं करेगा कि किसी भी पुराने धर्मग्रन्थ में वास्तव में बिग बैंग का उल्लेख किया गया है|
एक बात और कहना चाहूँगा: आपका अरब और फारसी विद्वानों के योगदानों का प्रचार करने का प्रयास काफी सराहने-योग्य है| परन्तु एक और निवेदन है: आपको इस बारे में भी टिप्पणी करनी चाहिए कि किस तरह पाँचवी से बारहवी सदी के बीच गणित और विज्ञान का केन्द्र रहने के बाद पहले भारतीय समाज, और बाद में अरब और फारसी समाज धार्मिक रुढिवादिता के चंगुल में फसने कि वही गलती कर बैठे जिसकी वज़ह से यूरोप में सदियों पहले "डार्क एज" की शुरुआत हुई थी| अपनी विरासत पर गर्व करना उचित है, पर हमें उन कारणों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनकी वजह से हम इस विरासत से हाथ धो बैठे, जिससे ये गलतियाँ फिर से न दोहरायी जाएँ|
आपके पिछले उत्तर के लिए धन्यवाद|
@ahannaasmi
"क्या आप यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि जहाँ पर पुरानी किताबों का कहना आधुनिक शोध के परिणामों से अलग हो, वहाँ पुरानी किताबों को उपर माना जाना चाहिए?"
यदि आधुनिक शोध किसी अंतिम परिणाम पर नहीं पहुंचा है तो अन्य alternatives पर विचार करने के लिए पुरानी किताबों का सहारा लेना अतार्किक नहीं. हो सकता है पुराने विज्ञानी किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे हों जहां आधुनिक विज्ञान की पहुँच अभी न हो पाई हो. पांच सौ साल पहले की फर्मा थ्योरम का प्रूफ विलुप्त हो गया था जिसे फिर से वैज्ञानिकों ने हाल ही में सिद्ध किया है.
"आपका अरब और फारसी विद्वानों के योगदानों का प्रचार करने का प्रयास काफी सराहने-योग्य है| परन्तु एक और निवेदन है: आपको इस बारे में भी टिप्पणी करनी चाहिए कि किस तरह पाँचवी से बारहवी सदी के बीच गणित और विज्ञान का केन्द्र रहने के बाद पहले भारतीय समाज, और बाद में अरब और फारसी समाज धार्मिक रुढिवादिता के चंगुल में फसने कि वही गलती कर बैठे जिसकी वज़ह से यूरोप में सदियों पहले "डार्क एज" की शुरुआत हुई थी|"
आपकी इस बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ. मेरा विचार है की जब कठमुल्ला टाइप के लोग धर्म को अपने तरीके से परिभाषित करने लगते हैं तो वहीँ से धार्मिक रुढिवादिता की शुरुआत होती है. वरना धर्म तो सच्चाई की खोज का ही नाम है.भारतीय, अरबी और फ़ारसी के जिन विद्वानों ने महान वैज्ञानिक खोजें कीं क्या वो किसी धर्म को नहीं मानते थे? मेरे लेखन का यही मकसद है की लोग समझें की धर्म प्रगति की रुकावट नहीं है. हम अपनी खो चुकी विरासत को पहचानें और इसे आगे बढाते हुए फिर से शिखर पर पहुँच जाएँ.
मैं आपके तर्क से पूरी तरह सहमत हूँ| बस एक छोटी सी शिकायत है: यह कहना कि "पांच सौ साल पहले की फर्मा थ्योरम का प्रूफ विलुप्त हो गया था जिसे फिर से वैज्ञानिकों ने हाल ही में सिद्ध किया है"
गलत है| सभी उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि फर्मा का प्रूफ, जो कुछ भी था, गलत था| आधुनिक प्रूफ में कई नए सिद्धांतों का प्रयोग किया गया है जो फर्मा के समय में अज्ञात थे| फर्मा ने क्या गलती की होगी, यह भी अब लगभग तय है| फर्मा के लगभग १५० वर्ष बाद लामे ने एक प्रूफ दिया था जो इस धारणा पर आधारित था कि unique factorization प्रमेय cyclotomic integrs पर भी वैध हो| ऐसी ही एक गलत धारणा फर्मा के लगभग समकालीन महान गणितग्य ओयलेर के लेखों में भी पाई गई है, और बहुत संभव है कि फर्मा ने भी ऐसी ही गलती की होगी|
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