वैसे तो हर एलीमेन्ट अपने अंदर कुछ खास नज़ारों की झलक समेटे हुए रहता है, लेकिन हम बात करते हैं उनमें भी खास एलीमेन्ट कार्बन के बारे में। कार्बन, जमीन पर पाया जाने वाला बहुत ही अहम एलीमेन्ट है। अहम इस तरह कि जमीन पर ज़िंदगी पैदा करने के लिए खालिके कायनात ने इसी एलीमेन्ट को चुना। जिसके नतीजे में यह जमीन पर मौजूद हर जिन्दा मखलूक का अहम और लाज़िमी जुज़ है।
आखिर परवरदिगार ने इसी एलीमेन्ट को क्यों चुना? शायद इसकी वजह ये है कि जो मखलूक रब की बारगाह में जितनी ज्यादा झुकती है, जितना नर्म अंदाज़ अख्तियार करती है खुदा उसे उतना ही ऊंचा मुकाम देता है। आईए कार्बन पर गौर करें। आमतौर पर मिलने वाला यह काले रंग का हक़ीर सा माद्दा है जो आसानी से घिस जाता है। खुदा ने इसी कार्बन को इतनी ऊंचाई बख्श दी कि यह हीरे की शक्ल में दुनिया का सबसे कीमती जवाहर बन कर भी मिलने लगा।
खुदा को ऐसे लोग पसंद आते हैं जो दूसरों से घुलमिल कर रहें। और एक दूसरे की मदद करें। कार्बन में भी कुछ ऐसी ही क्वालिटी पायी जाती है। वह आसानी से दूसरे एलीमेन्ट्स के साथ घुलमिल जाता है। यहां तक कि खुद उसी के एटम आपस में जुड़कर एक लम्बी चेन बना लेते हैं और अगर इस चेन में हाईड्रोजन, नाईट्रोजन, ऑक्सीज़न और सल्फर के भी एटम शामिल हो जायें तो मिलते हैं अमीनो एसिड व प्रोटीन, जो जिंदगी पैदा करने में कच्चे माल की तरह काम करते हैं। खुदाई करिश्मे की झलक देखिए कि बेजान कार्बन जिंदगी की तख्लीक कर रहा है। और साइंसदां इस पहेली से जूझ रहे हैं कि आखिर एक बेजान चीज में जान कैसे पड़ जाती है।
कार्बन फिजिकल तौर पर अनोखी खासियतों का मालिक है। एक तरफ तो यह हीरे की शक्ल में दुनिया का सबसे सख्त एलीमेन्ट है तो दूसरी तरफ गीली मिट्टी में मिक्स होकर यह सबसे नर्म एलीमेन्ट की शक्ल अख्तियार कर लेता है। यही नहीं इसकी अनेकों और भी शक्लो सूरतें हैं। धुएं की शक्ल में यह गैस है, ग्रेफाइट की हालत में आधी धातु है तो पेट्रोल बनकर यह लिक्विड की शक्ल में दिखाई देता है।
कभी इसमें से बिजली रवाँ हो जाती है। जैसे कि ग्रेफाइट में। तो कभी यह बिजली को रोक लेता है। जैसे कि जब यह डायमण्ड की शक्ल में होता है। एक ही एलीमेन्ट में बिल्कुल अपोज़िट क्वालिटीज़ का होना सुबूत है कि अल्लाह की खिलकत बेमिसाल है।
जमीन पर दो तरह का मैटर पाया जाता है। एक वह जिसमें कार्बन शामिल है, और दूसरा वह जिसमें कार्बन न शामिल होकर दूसरे एलीमेन्ट शामिल हैं। इनमें से पहले तरह का मैटर दूसरे की मेक़दार में बहुत ज्यादा है। इंसान व जानवरों के जिस्म में कार्बन शामिल होता ही है साथ ही उनके खाने पीने की सारी चीज़ों में भी कार्बन लाज़िमी तौर से शामिल रहता है। इसके अलावा इंसान की रोजमर्रा की चीज़ों यानि साबुन, तेल, परफ्यूम, रबर, प्लास्टिक, पेस्टीसाइड, ड्राईक्लीनर, पेट्रोल, एल-पी-जी- जैसी हजारों चीज़ों में कार्बन शामिल होता है। सिर्फ एक एलीमेन्ट का इस्तेमाल करते हुए खुदा के क्रियेशन की इतनी वेराईटीज़ दिखती हैं कि तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता कि खालिके कायनात के क्रियेशन की हद कहां तक है।
अगर यह प्रोटीन की शक्ल में जिस्म को बनाता है तो पोटेशियम साईनाइड की शक्ल में दुनिया का सबसे खतरनाक ज़हर भी है। कार्बन से जुड़े मैटर को गिनते जाईए, इसकी किस्मों की कोई हद नहीं मिलेगी। और क्रियेटर की लामहदूदियत की तरफ इशारा करती है। अल्लाह की लामहदूद अक्ल ने सिर्फ एक एलीमेन्ट को ऐसी खासियतें बख्शी हैं कि वह लामहदूद मैटर का जरिया बन चुका है।
सवाल पैदा होता है परवरदिगारे आलम के कौन से उसूल कार्बन की इतनी ज्यादा शक्लें पैदा कर रहे हैं? इसका जवाब पाने के लिए देखना होगा इसके एटॉमिक स्ट्रक्चर को और इसके एटम की खुसूसियात को। कार्बन के एटम में छह इलेक्ट्रान और मरकज़ में छह प्रोटॉन होते है। इस तरह इसका एटामिक नंबर हुआ छह। इसके छह इलेक्ट्रानों में से चार इसके बाहरी आसमान यानि कि आर्बिट में चक्कर लगाते रहते हैं। इन इलेक्ट्रानों की वजह से कार्बन एटम में खुद अपने जैसे एटम या किसी और एलीमेन्ट के साथ मिलकर जोड़े बनाने की कूवत पैदा हो जाती है। कुछ इस तरह जैसे कि दो ऐसे लोग जिनके पास जमा पूंजी हो और वे आपस में पार्टनरशिप करके कोई बिजनेस शुरू कर दें। कार्बन की इस क्वालिटी की वजह से उसके और दूसरे एलीमेन्ट के एटम आपस में जुड़कर एक लम्बी चेन बना लेते हैं। नतीजे में मिलता है एक नया मैटर।
कार्बन की ये क्वालिटी बेशक मोजिज़ा है क्रियेटर का। दरअसल जो एटामिक स्ट्रक्चर कार्बन का है, इससे मिलते जुलते स्ट्रक्चर के कुछ और भी एलीमेन्ट्स हैं, जैसे कि सिलिकान, जर्मेनियम और टिन। इन सभी के बाहरी आसमान में चार इलेक्ट्रान होते हैं। इसके बावजूद इनमें से कोई भी एलीमेन्ट अपने एटम्स को जोड़कर चेन नहीं बनाता। यह क्वालिटी परवरदिगार ने सिर्फ कार्बन एटम को बख्शी है। यह मोजिज़ा नहीं तो और क्या है।
अल्लाह ने कार्बन एटम को बिल्डिंग बनाने वाली एक ऐसी ईंट की तरह खल्क किया है जो वज़न और साइज के एतबार से पूरी तरह मुनासिब है। एक बिल्डिंग को बनाने वाली ईंट अगर बहुत ज्यादा हल्की है या भारी है तो बिल्डिंग किसी भी तरह टिकाऊ नहीं बन सकती। इसी तरह अगर खुदा ने जिंदगी को बनाने वाले मोल्क्यूल में कार्बन चेन की बजाय किसी और एलीमेन्ट का इस्तेमाल किया होता तो या तो चेन अपने ही वज़न से टूट जाती या इतनी हल्की हो जाती कि जिस्म कभी वजूद में न आता। चार इलेक्ट्रान होने के बावजूद सिलिकॉन या जर्मेनियम अपने भारीपन की वजह से लम्बी चेन बनाने की सलाहियत नहीं रखते।
तो इस तरह कार्बन एटम के वज़न को खालिके कायनात ने इस तरह फाइन ट्यूनिंग पर सेट किया है कि वह जमीन की तमाम तर मखलूकात के हिस्सा है बल्कि उनके रिज्क़ का भी जरिया है और साथ ही उनकी दूसरी जरूरियात भी पूरी कर रहा है। खास तौर से इंसान की हर तरह की जरूरियात को पूरा करने में कार्बन कहीं न कहीं जरूर शामिल होता है।
कार्बन की दूसरी खासियत ये होती है कि उसके एटम कई तरीकों से आपस में जुड़ सकते हैं। नतीजे में कभी वह हीरे जैसा क्रिस्टल बना लेता है कभी नर्म भुरभुरा मैटर हो जाता है, कभी लिक्विड तो कभी गैस की शक्ल में आ जाता है। इस तरह ये जमीन पर हर जगह मिल सकता है। और जमीन पर मिलने वाली किसी भी मख्लूक के रिज्क का सामान कर सकता है। अगर मख्लूक जमीन पर है तो कार्बन मिट्टी से मिलकर उसका रिजक बन सकता है। अगर मख्लूक पानी में है तो कार्बन पानी के साथ मिलकर उसका रिज्क बन जाता है और अगर मख्लूक हवा में मौजूद है तो कार्बन हवा के साथ मिलकर रिज्क बनने की सलाहियत रखता है। और खालिके कायनात का ये वादा पूरा होकर रहता है कि उसने हर मख्लूक के रिज्क का इंतिजाम कर दिया है।
लामहदूद तरह के मैटर बनाने के बावजूद कार्बन और दूसरे एटम आपस में जुड़ते हुए खुदा के उसूलों को कभी नहीं तोड़ते। वह उसूल जो बाकी एलीमेन्ट्स पर भी साबित होते हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कार्बन जैसा एलीमेन्ट किसी इत्तेफाक से बन गया। यह तो क्रियेटर यानि कि अल्लाह के करिश्माई क्रियेशन का एक नमूना है। हर एलीमेन्ट पर साबित इस उसूल को वैलेंसी का उसूल कहा जाता है। इस उसूल के मुताबिक हर एलीमेन्ट दूसरे से मिलकर एक बान्ड यानि जोड़ बनाने की कुदरत रखता है। ये जोड़ या तो अलग अलग एटम के इलेक्ट्रॉन की आपसी शेयरिंग से बनते हैं या फिर एक एटम से दूसरे में ट्रांस्फर के जरिये। कार्बन के पास शेयरिंग के लिए चार इलेक्ट्रान होते हैं। यानि उसके पास चार तरह के बाण्ड बनाने की आजादी होती है। अब अगर उसको हाईड्रोजन के चार एटम मिल जायें तो वह चारों के साथ एक एक बाण्ड बना लेता है और नतीजे में मिल जाती है मेथेन गैस।
चार बाण्ड बनाने की आजादी का फायदा उठाते हुए कार्बन कुछ बाण्ड तो अपने ही एटम्स से जोड़कर बना लेता है और कुछ दूसरे एटम्स के साथ। नतीजे में मिलती है एक लम्बी चेन। जो कभी प्रोटीन की शक्ल में होती है, कभी कार्बोहाईड्रेट, कभी प्लास्टिक तो कभी कुदरती कम्प्यूटर डी-एन-ए की शक्ल में। प्रोटीन और प्लास्टिक जैसी चीज़ों में दस हजार से भी ज्यादा कार्बन एटम आपस में जुड़े रहते हैं। और कुछ केसेज में यह जोड़ इतने मज़बूत होते हैं कि हजारों टन की ताकत भी उन जोड़ों को तोड़ नहीं पाती। फाइबर जो कि कार्बन का ही प्रोडक्ट है, इसकी अच्छी मिसाल है। यकीनन यह क्रियेटर का करिश्मा है कि उसने एक कमज़ोर से एलीमेन्ट में इतनी ताकत पैदा कर दी है। यह वही कार्बन तो है जो जब एक पत्ती की शक्ल में होता है तो कोई भी उसे बाआसानी तोड़ लेता है।
जैसा कि हमने बताया ज़मीन पर जिंदगी की खिलकत के लिए खालिके कायनात ने जिस एलीमेन्ट को चुना वह खास एलीमेन्ट है कार्बन। जिंदगी के लिए दो चीज़ें ज़रूरी हैं। पहली ये कि जिन्दा मखलूक का कोई जिस्म हो और दूसरी ये कि उस जिस्म को काम करने के लिए उसे एनर्जी मिलती हो। कार्बन दोनों ही कामों में अहम किरदार निभाता है। जिस्म को बनाने में प्रोटीन का होना लाज़िमी है। और प्रोटीन का पचास फीसद हिस्सा कार्बन होता है। बाकी पचास फीसद में होते हैं हाईड्रोजन, नाईट्रोजन, ऑक्सीज़न और सल्फर।
दूसरी तरफ जिस्म को एनर्जी मिलती है कार्बोहाईड्रेट से। कार्बन कार्बोहाईड्रेट का भी खास जुज़ है। क्योंकि इसमें लगभग चालीस फीसदी कार्बन मौजूद होता है।
अब देखते हैं आलमे इंसानियत में कार्बन का कहां तक दखल है। अल्लाह ने कार्बन को आलमे इंसानियत के लिए रहमत बना दिया है। इंसान की जिंदगी को कोई ऐसा शोबा नहीं जहां कार्बन का दखल न हो। इंसान को जीने के लिए जिन चीज़ों की सबसे ज्यादा जरूरत है वह हैं रोटी कपड़ा और मकान।
हमने इससे पहले देखा कि कोई भी ऐसी खाने की अशिया नहीं जिसमें कार्बन का जुज़ न हो। यह ठीक है कि नमक में कार्बन नहीं होता, लेकिन किसी के लिए सिर्फ नमक खाना नामुमकिन है।
अब आते हैं कपड़े पर। किसी भी तरह का कपड़ा हो, कार्बन उसका लाज़िमी जुज़ होता है। साथ में जूते, मोज़े, परफ्यूम, तेल, साबुन, डिटरजेंट, क्रीम हर चीज़ में कार्बन मौजूद होता है। खुदा की कुदरत देखिए, नायलोन जैसा तेजी से आग पकड़ने वाला कपड़ा भी कार्बन से बना होता है और फायर प्रूफ व बुलेट प्रूफ लिबासों में भी कार्बन ही होता है।
फिर बात आती है मकान की। अगर मकान कच्चा है तो उस घास फूस के बने मकान में कार्बन शामिल होता है। और अगर मकान पक्का है तो स्टील के बिना नहीं बन सकता। और स्टील तब तक नहीं बनता जब तक लोहे में कार्बन की मिलावट न की जाये। एक तरफ यह लोहे में मिक्स होकर सख्त स्टील बनाता है तो दूसरी तरफ हाईड्रोजन से जुड़कर पालीथीन जैसा लचीला मैटर बना देता है। मकानों को चमकाने वाला पेन्ट, वार्निश हो या मकान को खूबसूरत बनाने वाले प्लास्टिक शेड्स, डिजाईनदार लकड़ी के दरवाज़े और खूबसूरत बगीचे हों हर जगह कार्बन मौजूद होता है।
दवाएं चाहे एण्टीसेप्टिक हों, एण्टीबायोटिक हों या सल्फा ड्रग्स हों सब में कार्बन मौजूद होता है।
आज कार्बन की ही वजह से मौजूदा जिंदगी की रफ्तार भी कायम है। सड़कों पर तेज रफ्तार दौड़ती गाड़ियां, शहरों को जोड़ती रेलगाड़ियां, हवाई जहाज़ इन सब को चलाने वाले पेट्रोल और डीज़ल जैसे ईंध्ना कार्बन के ही प्रोडक्ट हैं। आज इंसान तरक्की की जिन मंजिलों पर है, क्या पेट्रोलियम के बिना उसका तसव्वुर हो सकता था? और पेट्रोलियम का बदल यानि कोयला खुद भी कार्बन है। दुनिया में बनने वाली बिजली का ज्यादातर हिस्सा कोयले को जलाकर बनता है।
कहां तक गिनाये जायें कार्बन के रंग व रूप। अगर इंसानी जिस्म की बात की जाये तो एक तरफ जिस्म को नुकसान पहुंचाने वाले जरासीम यानि बैक्टीरिया और वायरस कार्बन से बने होते हैं तो दूसरी तरफ इनसे बचने का जिस्म का इम्यून सिस्टम, खून और खून में मौजूद सफेद जर्रात भी कार्बन के ही प्रोडक्ट होते हैं। ज़मीन को ज़रखेज़ बनाने वाले और चीज़ों को सड़ा गलाकर खत्म करने वाले दोनों ही तरह के बैक्टीरिया में कार्बन खास जुज़ होता है। फलों का रस, शराब और सिरके तीनों में ही कार्बन मौजूद होता है। खुदा की कुदरत देखिए कि फलों का रस और सिरका तो सेहत के लिए फायदेमन्द है और शराब नुकसानदेय। इन चीज़ों को एक दूसरे में बदलने के पीछे जो बैक्टीरिया शामिल होते हैं उनमें भी कार्बन अहम जुज़ होता है।
कार्बन इंसान के इल्म का भी बहुत बड़ा ज़रिया है। पुरानी चीज़ों की उम्र मालूम करने के लिए साइंस ने एक तरीका ईजाद किया है जिसका नाम है कार्बन डेटिंग। दरअसल कार्बन का एक आईसोटोप यानि रिश्तेदार होता है जिसे रेडियो कार्बन या सी - 14 कहा जाता है। जब कोई मखलूक जिन्दा होती है तो वह आम कार्बन और रेडियो कार्बन दोनों को ही अपने जिस्म में सोखती रहती है। लेकिन मरने के बाद वह रेडियो कार्बन को सोखना बन्द कर देती है और उसके मुर्दा जिस्म में मौजूद रेडियो कार्बन धीरे धीरे कम होना शुरू हो जाता है। जिस्म में रेडियोकार्बन का हिस्सा देखकर उसकी उम्र का अंदाजा हो जाता है।
अब एक सवाल पैदा होता है कि क्या खुदा ने अपनी किताब कुराने हकीम में इस बहुत ही अहम एलीमेन्ट का जिक्र फरमाया है? जी हां। इसका जिक्र कुरान में मौजूद है। और बहुत ही अहम जगह पर। कुरान की 41 वीं आयत सूरे फसीलत है। ये वो सूरे है जिसको पढ़ने के बाद परवरदिगार की बारगाह में सज्दा वाजिब हो जाता है। इसकी आयत नं 11 में कायनात के बनने का जिक्र करते हुए इरशाद होता है, ‘‘फिर वह आसमान की तरफ मुत्वज्जे हुआ जो उस वक्त धुएं की शक्ल में था।’’
हम जानते हैं कि धुएं का बेशतर हिस्सा कार्बन ही होता है। या यूं भी कह सकते हैं कि कार्बन अगर गैस की हालत में है तो वह धुवां होता है। इस तरह यह साफ हुआ कि कायनात की पैदाइश से ही कार्बन का अहम रोल रहा है।
परवरदिगारे आलम सूरे रहमान में इरशाद फरमाता है - ‘तो तुम अपने परवरदिगार की किन किन रहमतों को झुठलाओगे।’
हकीकत तो ये है कि अगर हम उस माबूद की रहमत की शक्ल में सिर्फ कार्बन की अहमियत को पहचान लें तो खुदा के सामने सज्दा करने पर मजबूर हो जायें।
2 comments:
जीशान भाई, कार्बन के बारे में बहुत ही अहम् और चौकाने वाली जानकारियाँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा... इस लेख के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया!
प्रेमरस
पाक दिल वाले लोगों ने ज्ञान के मोती विरासत में छोड़े हैं। हमें इनकी क़द्र करनी चाहिए। विज्ञान के बारे में आपने बहुत अच्छी जानकारी दी और बुज़ुर्गों की परंपरा के बारे में भी आपकी जानकारी अद्भुत है।
शुक्रिया !
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/dr-anwer-jamal_09.html
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