Thursday, January 14, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-16)


अगर हम यूनिवर्स में कहीं भी दृष्टि दौड़ाएं तो निगेटिव टाइम के दर्शन नहीं होते, और हो भी नहीं सकता। क्योंकि हम जिस वातावरण में रह रहे हैं वह टाइम का वातावरण है। जो भी गणनाएं करते हैं, जो भी अवलोकन करते हैं वह टाइम के सापेक्ष होता है। गैलेक्सीज की स्थिति टाइम के सापेक्ष देखी जाती है। आइंस्टीन की थ्योरी आफ रिलेटिविटी में टाइम के सापेक्ष पोजीशन को दर्शाते हैं। टाइम हर पोजीशन का आवश्यक अंग है। लम्बाई चौड़ाई और गहराई के बाद वह पोजीशन की चौथी डाइमेंशन है। 

स्पष्ट है कि जो स्थितियां और वस्तुएं निगेटिव टाइम में होंगी उनका अवलोकन हमारे लिए असंभव है क्योंकि वहां से किसी भी प्रकार का विकिरण या कोई अन्य चिन्ह् अगर यूनिवर्स में हमारी स्थितियों के पास आता है तो उसे अपने टाइम के विरूद्ध चलना पड़ेगा। जबकि खुदा स्पष्ट कहता है कि उसने हर चीज को उसके टाइम के हवाले किया। प्रश्न उठता है कि फिर कैसे पता किया जाये कि उस निगेटिव टाइम की स्थितियों में क्या है? 

इसके उत्तर के अनुमान के लिए एक बार फिर उसी नियम की शरण में जाना पड़ेगा कि हर वस्तु का एक निगेटिव होता है। इसके बारे में धर्मग्रंथों में भी खुदा स्पष्ट रूप से कह रहा है, ‘‘हमने हर चीज में जोड़े पैदा किये।’’ तो सृष्टि की रचना के साथ पदार्थ बना और उसके साथ साथ एण्टी मैटर। लेकिन यूनिवर्स में मैटर तो दिखाई देता है, एण्टीमैटर कहीं नहीं। और दिखाई भी कैसे पड़ेगा, वह तो शायद उस दुनिया में है जहां निगेटिव टाइम वक्त को दर्शाता है। 

अगर इस बात को और स्पष्ट किया जाये तो सम्पूर्ण पदार्थ की स्थिति निगेटिव टाइम की डाइमेंशन में है। अब अगर निगेटिव टाइम में एण्टी मैटर से सम्बंधित कोई भी घटना घटित होगी तो वह हमें नहीं ज्ञात हो सकती। इसी प्रकार यहां घटने वाली कोई घटना एण्टी मैटर क्षेत्र में नहीं देखी जा सकती। इन घटनाओं को वही देख सकता है जो ज्ञान में अपनी मिसाल आप है यानि खुदा। और यूनिवर्स में इस प्रकार का तारतम्य, उसका सममित (Symmetric) होना और घटनाओं का एक क्रम में घटना ईश्वर के अस्तित्व का पूरा पूरा प्रमाण है।

ये थे कुछ विरोधाभासों के स्पष्टीकरण जो अक्सर अल्लाह के बारे में सामने आते हैं। कभी नास्तिकों के साथ बहस में तो कभी स्वयं आस्था रखने वालों के मस्तिष्क में चकराने लगते हैं। और चकराते मस्तिष्क के बीच आस्तिक का विश्वास डाँवाडोल होने लगता है। वह सोचने लगता है कि कहीं ईश्वर को मानकर वह गलती तो नहीं कर रहा है। यह दुनिया तो केवल प्रकृति के नियमों पर चल रही है। लेकिन यह नियम किसने बनाये? प्रकृति को किसने रचा? इस प्रकृति को, उसके नियमों को बनाने वाला खुद अल्लाह है। साइंस उन नियमों का अध्ययन कर लेती है लेकिन नियमों को बनाने वाले के प्रति मौन रहती है। वास्तव में हर सिद्धान्त का रचयिता सिर्फ और सिर्फ अल्लाह है।

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