Saturday, January 9, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-13)


यहां एक प्रश्न और उठता है कि कब कोई आत्मा या रूह मनुष्य के रूप में जन्म लेती है और कब किसी अन्य प्राणी के रूप में? तो इसका जवाब ये है कि यह उस आत्मा की क्षमता पर निर्भर करता है कि वह मनुष्य रूप में जन्म लेने के काबिल है या मछली या अन्य किसी कमतर प्राणी के रूप में। 

लेकिन क्षमता की जाँच तो जन्म के बाद होती है फिर जन्म से पहले कैसे इसका निर्धारण कर लिया गया? यहां एक बार फिर हमें अल्लाह के बारे में अन्य प्राणियों से अलग करके सोचना पड़ेगा। हर प्रकार का ज्ञान अल्लाह से जुड़ा हुआ है। उसका ज्ञान समय पर निर्भर नहीं है। क्योंकि समय को भी उसी ने बनाया है। जो घटनाएं हो चुकी हैं, उसका भी ज्ञान उसे है और जो घटनाएं घट रही हैं या घटने वाली हैं वह भी उसके ज्ञान में हैं। हों सकता है यह कथन कुछ लोगों को विरोधाभासी प्रतीत हो कि घटना घटने से पहले ही उसके बारे में जानकारी हो जाये। लेकिन इसे बहुत आसानी से समझा जा सकता है।

उदाहरण के लिए मान लिया कि कोई पुच्छल तारा हमारे सौरमंडल से कुछ दूरी पर गतिमान होकर तेजी से हमारी पृथ्वी पर आ रहा है। पृथ्वी के वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित उपकरण उसे देखेंगे, उसका अध्ययन करेंगे और आंकड़ों के विश्लेषण के बाद उसे बता देंगे कि यह पुच्छल तारा ठीक छह महीने बाद ज्यूपिटर ग्रह से टकरा जायेगा। यह किस प्रकार हुआ? कैसे हमने भविष्य में घटी घटना का पूर्व ज्ञान प्राप्त कर लिया, स्पष्ट है कि अपने ज्ञान के आधार पर और उन उपकरणों के आधार पर जो हमने अपने ज्ञान का प्रयोग करके बनाये।

मनुष्य के पास बहुत ही सीमित ज्ञान है। यह सीमा इसी से अनुमानित है कि हर वर्ष हजारों की संख्या में रिसर्च पेपर विभिन्न देशों में प्रकाशित होते हैं और मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि करते हैं। इस प्रकार ज्ञान की कोई सीमा नहीं। उस असीमित ज्ञान भंडार के समुन्द्र से कुछ बूंदें लेकर मनुष्य ने ऐसे उपकरण बना लिये जो छह महीने बाद या एक वर्ष बाद घटने वाली घटना को पहले से बता देते हैं। तो अब उस महाशक्ति जिसके पास असीमित ज्ञान है, के लिये ये सोचना कि जब घटना हो जाये तब उसे ज्ञान हो, बिल्कुल अक्ल से परे है।

मनुष्य तो कई बार उस घटना से भी अंजान रहता है जो बहुत पहले घट चुकी होती है। और इसमें समय और दूरी बहुत बड़ा रोल अदा करते हैं। मान लिया कि इस यूनिवर्स में पृथ्वी से दस हजार प्रकाश वर्ष दूर किसी तारे में विस्फोट होता है। उस विस्फोट की रौशनी जब तक पृथ्वी पर पहुंचेगी, पृथ्वी पर मानव की कई पीढ़ियां गुजर चुकी होंगी।
 
जबकि खुदा टाइम और दूरी के बंधनों से आजाद है। किसी घटना की खबर उस तक पहुंचने के लिए कोई रुकावट नहीं। भले ही वह घटना ‘फ्यूचर टाइम’ में हो। यहां मैंने पास्ट टाइम का इस्तेमाल नहीं किया। क्योंकि खुदा हमेशा से है इसलिए उससे पहले घटना होने का सवाल ही नहीं उठता।

तो इस तरह अल्लाह और उसके बन्दों से सम्बंधित विरोधाभासों को दूर किया जा सकता है। उपरोक्त जिक्र को यहीं समाप्त करते हुए अगले कन्टराडिक्शन पर आते हैं। जो नास्तिकों की अन्य मजबूत दलील हैं। इसमें अल्लाह को गुणों से भरपूर बताया गया है। तो फिर अवगुण कहां गये सारे? क्या उन्होंने दूसरे खुदा की शरण ले ली? यानि बुराईयों का खुदा? 

1 comment:

डॉ महेश सिन्हा said...

पहली बार आपका ब्लॉग देखा . अच्छा लगा
क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं