Wednesday, January 6, 2010

अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-11)



......इन्हीं कसौटियों के आधार पर हम इस प्रकार के एतराजों के जवाब दे सकते हैं। वास्तव में खुदा ने प्रत्येक बन्दे को कुछ सीमा तक आजाद बनाया है और कुछ सीमा में उसे कैद कर दिया है। किसी व्यक्ति की शक्ल सूरत, उसका अपाहिज होना या पूरी तरह ठीक ठाक होना खुदा की देन है। इसमें बन्दे का कोई दखल नहीं है। हाँ काफी हद तक उसके माँ बाप और पूर्वजों का दखल इसमें हो सकता है। वास्तव में किसी बच्चे का पैदा होना, उसकी बनावट उस बच्चे के पूरे वंश के क्रियाकलापों का फल होता है। यहां पर खुदा की न्यायप्रियता जाहिर होती है। 

अब उस व्यक्ति को कर्म के मामले में खुदा स्वतन्त्र कर देता है। चाहे वह व्यक्ति तन मन ध्ना अच्छे कार्यों में लगाये या बुरे कार्यों मे। उसके लिए खुदा उसे स्वतन्त्र कर देता है। अल्लाह ने प्रत्येक प्राणी को हवा, पानी और भोजन का मोहताज बनाया है। लेकिन इन सब की च्वाइस के लिए आजाद कर दिया है। हां इन सब में वह यह जरूर देखता है कि खाने पानी का वह व्यक्ति अपनी मेहनत से प्रबंध कर रहा है या किसी का माल हड़पकर। इन्हीं कर्मों पर निर्भर है मृत्यु के बाद स्वर्ग या नर्क की प्राप्ति।

सवाल उठता है कि खुदा किसी को अत्याचार करने से रोकता क्यों नहीं? और किसी को अत्याचार सहने पर क्यों नियुक्त कर देता है? यह तो अत्याचार करने वाले के प्रति उसका प्रोत्साहन हो गया। और अत्याचार सहने वाले के प्रति उसका जुल्म हो गया। लेकिन ऐसा नहीं है। पृथ्वी पर जो भी जुल्म या अत्याचार होते हैं वह बन्दों के लिए परीक्षा की घड़ी होते हैं। जालिम उस परीक्षा से गुजरकर नर्क का भागीदार हो जाता है जबकि मज़लूम व बेगुनाह स्वर्ग का। 

हालांकि अल्लाह को इसका पूर्व ज्ञान रहता है कि कौन नर्क का भागीदार है और कौन स्वर्ग का। लेकिन परीक्षा द्वारा वह स्वयं उन बन्दों को बताना चाहता है कि मैंने तुम्हें स्वर्ग या नर्क में उचित स्थान दिया है और तुम इसी काबिल थे। यह बात उसकी न्यायप्रियता से लागू होती है। इस तरह हम देखते हैं कि प्रत्येक प्राणी कुछ बातों में स्वतन्त्र है और बाकी में सीमित।
........continued      

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