यह किताब अल्लाह के गुणों यानि तौहीद को साइंस की मदद से समझने की एक छोटी सी कोशिश है। अक्सर उसके गुणों को न समझने की वजह से खुदा के वजूद से ही इंकार कर दिया जाता है। जबकि अगर उन्हें इंसानी अक्ल की कसौटी पर परख लिया जाये तो यह तय है कि इन्सान खुदा के वजूद से कभी इंकार नहीं कर सकता।
आमतौर पर कोई नास्तिक फिलास्फर अपनी दलीलों के लिए साइंस का सहारा लेता है। उसके अनुसार आधुनिक साइंसी दौर में खुदा वगैरा की बातें दकियानूसी करार पायी जाती हैं। जबकि सच्चाई ये है कि साइंस का गहराई से किया जाने वाला अध्ययन इंसान को खुदा के वजूद में यकीन रखने पर मजबूर कर देता है।
इस किताब में मैंने तौहीद की उन बातों को लिया है जिनके बारे में सबसे एतराज किया जाता है। मसलन खुदा हर जगह है। खुदा कभी दिखाई नहीं देता। खुदा हमेशा से है और हमेशा रहेगा। वगैरा। मैंने इन बातों को साइंस की मदद से साबित करने की कोशिश की है। लेकिन इसे पढ़ते वक्त कभी यह ख्याल मन में नहीं लाना चाहिए कि इसमें खुदा की तुलना भौतिक संसार से की जा रही है। हकीकत ये है कि खुदा हर तरह की तुलना से परे है। इस किताब में सिर्फ उस की बातों यानि तौहीद तक पहुंचने की एक छोटी सी कोशिश है।
प्रस्तुत किताब में किसी भी तरह की खालिस जबान का इस्तेमाल न करके आम बोलचाल के लफ्जों का इस्तेमाल किया गया है। ताकि एक आम इंसान को इसे समझने में किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।
इससे पहले कि मै अपनी बात की शुरुआत करूं, एक नजर डालते हैं इमाम हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ-स-) के अजीम खुत्बे पर जिसमें उन्होंने परवरदिगार के बारे में इरशाद फरमाया,
‘‘सम्पूर्ण तारीफें उस अल्लाह के लिए हैं जिस की तारीफ तक बोलने वालों की पहुंच नहीं। जिस की रहमतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते। न कोशिश करने वाले उसका अधिकार चुका सकते हैं। न ऊंची उड़ान भरने वाली हिम्मतें उसे पा सकती हैं। न दिमाग और अक्ल की गहराईयां उस की तह तक पहुंच सकती हैं। उस के आत्मिक चमत्कारों की कोई हद निश्चित नहीं। न उस के लिए तारीफी शब्द हैं। न उस के लिए कोई समय है जिस की गणना की जा सके। न उस का कोई टाइम है जो कहीं पर पूरा हो जाये। उस ने कायनात को अपनी कुदरत से पैदा किया। अपनी मेहरबानी से हवाओं को चलाया। कांपती हुई जमीन पर पहाड़ों के खूंटे गाड़े। दीन की शुरुआत उस की पहचान है। पहचान का कमाल उसकी पुष्टि है। पुष्टि का कमाल तौहीद है। तौहीद का कमाल निराकारता है और निराकारता का कमाल है कि उससे गुणों को नकारा जाये। क्योंकि हर गुण गवाह है कि वह अपने गुणी से अलग है और हर गुणी गवाह है कि वह गुण के अलावा कोई वस्तु है। अत: जिस ने उस के आत्म का कोई और साथी माना उसने द्विक उत्पन्न किया। जिसने द्विक उत्पन्न किया उसने उसके हिस्से बना लिये और जो उसके लिए हिस्सों से सहमत हुआ वह उससे अज्ञानी रहा और जो उससे अज्ञानी रहा उसने उसे सांकेतिक समझ लिया। और जिसने उसे सांकेतिक समझ लिया उस ने उसे सीमाबद्ध कर दिया और जिसने उसे सीमित समझा वह उसे दूसरी वस्तुओं की पंक्ति में ले आया। जिस ने यह कहा कि वह किसी वस्तु में है उसने उसे किसी प्राणी के सन्दर्भ में मान लिया और जिसने यह कहा कि वह किसी वस्तु पर है उस ने और जगहें उस से खाली समझ लीं।
वह है, हुआ नहीं। उपस्थित है लेकिन आरम्भ से वजूद में नहीं आया। वह हर प्राणी के साथ है लेकिन शारीरिक मेल की तरह नहीं है। वह हर वस्तु से अलग है लेकिन शारीरिक दूरी के प्रकार से नहीं। वह कर्ता है लेकिन चेष्टा और उपकरणों पर निर्भर नहीं है। वह उस वक्त भी देखने वाला था जब कि सृष्टि में कोई वस्तु दिखाई देने वाली न थी। वह असम्बद्ध है इसलिए कि उसका कोई साथी ही नहीं है जिससे वह अनुराग रखता हो और उसे खोकर परेशान हो जाये। उसने पहले पहल सृजन का आविष्कार किया बिना किसी चिंतन की बाध्यता के और बिना किसी अनुभव के जिससे लाभ उठाने की उसे आवश्यकता पड़ी हो और बिना किसी चेष्टा के जिसे उसने पैदा किया हो और बिना किसी भाव या उत्तेजना के जिससे वह उत्सुक हुआ हो। हर चीज को उसके वक्त के हवाले किया। बेजोड़ वस्तुओं में संतुलन और समरूपता उत्पन्न की। हर वस्तु को भिन्न तबीयत और प्रकृति सम्पन्न बनाया। और इन प्रकृतियों के लिए उचित परिस्थितियां निर्धारित कीं।
---------continued
लेखक - जीशान हैदर जैदी
प्रकाशन - 2001
3 comments:
masha Allah: ishwar ke wajood ko to aksar bhartwasi maante hen,lekin unke pass koi aisi ishvani ab surakshit nahin bachi jis se dharam ke sanatan sawroop ka pata chal sake. isi wajah se bharat ka patan huaa. aur uska utthan ab kewal holy Quran ke madhyam se hi sambhav he...Quran ka mano aur bharat ko ooncha uthao.
शाबाश, कभी हम अवध आए तो आपसे ज़रूर मिलेंगे
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
kirpya aap hdis ke dwara islam ka adhyyn lekhk ram swroop ki pustk ka adhyyn avshy kr len aap kosari schchai maloom ho jayegi
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