पैगम्बर मोहम्मद (स.) वह महापुरुष थे :
जिन्होंने बेटियों को क़ब्र में ज़िंदा दफनाने की रस्म बंद की
जिन्होंने उस बीमार बुढ़िया से हमदर्दी की जो रोज़ उनपर कूड़ा फेंकती थी
जिनके सच बोलने की गवाही पूरा अरब देता था चाहे उसमें दुश्मन हों या दोस्त।
जिन्होंने गरीबों की मदद के लिए ज़कात जैसा सिस्टम बनाया.
जिन्होंने छोटे छोटे क़बीलों में बंटे पूरे अरब को एक राष्ट्र का रूप दिया.
जिन्होंने अफ्रीका से लाये गये हब्शी गुलामों को समाज में वही स्थान दिलाया जो वहाँ और लोगों का था.
जिन्होंने अरबी क़बीलों के बीच सैंकड़ों सालों से चलने वाली पुश्तैनी लड़ाइयों को ख़त्म करवाया.
जिन्होंने मक्के की फतह के बाद उन तमाम लोगों को आम माफ़ी दे दी जिन्होंने उन्हें और उनके मानने वालों पर अत्याचार किये था और बहुतों को शहीद कर दिया था।
जिन्होंने अपनी पूरी दौलत ग़रीबों के कल्याण में लुटा दी और खुद अपना कोई निजी महल नहीं बनाया।
जिन्होंने बताया की कोई दूसरे से न तो ऊंचा है और न नीचा। केवल अच्छे कर्म ही एक को दूसरे से श्रेष्ठ करते हैं।
जिन्होंने न्याय के लिये ऐसे क़ानून बनाये जो सभी पर समान रूप से लागू थे।
जिन्होंने युद्धकाल में मानवाधिकार के क़ानून बनाये.
जिनके पास बाहर जाने वाले अपनी क़ीमती चीज़ें रखकर जाते थे और वापसी में वैसी ही पाते थे जैसी छोड़कर जाते थे।
जिन्होंने बताया की तुममें बेहतर वो है जिसकी वजह से किसी को तकलीफ न पहुंचे। न तो ज़बान से और न हाथों से.
जिन्होंने बताया की अच्छा पुरुष वो होता है जो औरतों की इज़्ज़त करे.
जिन्होंने नशामुक्त समाज के क़ानून बनाये.
जिन्होंने रिश्वत और सूद पर रोक लगाईं.
जिन्होंने गलत नापतौल पर सज़ा के क़ानून बनाये.
जिन्होंने जमाखोरी पर रोक लगाई और वेस्टेज से मना किया।
जिन्होंने बताया की अज्ञानी न बनो और ज्ञान हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश करो.
जिन्होंने प्रॉपर्टी के न्यायपूर्ण बंटवारे के क़ानून बनाये जिसमें बेटियों का भी हक़ था.
जिन्होंने महिलाओं को भी तलाक़ लेने का हक़ दिलाया।
और ये सब काम उन्होंने सिर्फ बीस साल की अवामी ज़िन्दगी में कर दिखाए थे जबकि उनके दुश्मन उनका जीना हराम कर रहे थे।
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