ज़मीन को कुछ लोगों ने चौकोर बताया तो कुछ ने गोल। हालांकि जिन लोगों ने गोल बताया वह भी अपनी थ्योरी में कन्फर्म नहीं थे और अटकलों से ही यह बात कह रहे थे। ईसाईयों ने ज़मीन को एक ऐसे गोल घेरे की तरह माना जिस का केन्द्र ईसा मसीह का जन्मस्थल यानि येरुशलम था। पुराने ज़माने के जो नक्शे मिलते हैं, उसमें कहीं पर ज़मीन को चौकोर दिखाया गया है तो कहीं गोल घेरे की तरह। और कुछ ऐसे नक्शे भी मिले हैं जिसमें ज़मीन पूरी तरह गेंद की तरह गोल भी दिखाई गयी है।
यूरोपियन इतिहास के अनुसार पहली बार जिसने इस बात को पूरी तरह कनफर्म किया वह था पुर्तगाली नाविक माजीलान। जो सोलहवीं शताब्दी में जन्मा था। वह अधिकतर समुन्द्री यात्राओं पर रहता था और दूर तक फैले समुन्द्र का कर्व रूप देखकर उसने यह निष्कर्ष निकाला था।
अब सवाल उठता है कि माजीलान से पहले इस्लामी विद्वानों का इस बारे में क्या विचार था? वह ज़मीन को गोल मानते थे या चपटी?
कुछ लोग कुरआन हकीम की 71 वीं सूरे नूह की उन्नीसवी और बीसवीं आयत ‘और अल्लाह ने ही तुम्हारे लिये ज़मीन को फर्श बनाया ताकि तुम उसके बड़े बड़े कुशादा रास्तों में चला फिरा करो।’ को आधार बनाकर कहा करते हैं कि कुरआन में ज़मीन को चपटा बताया गया है। जबकि इस आयत से ऐसा कुछ नहीं साबित होता। हकीकत ये है कि इस्लाम ने हमेशा ज़मीन को गोल माना।
शेख सुद्दूक (र.) की किताब अल तौहीद का हम इससे पहले भी जिक्र कर चुके हैं। इस किताब में इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने रसूल अल्लाह मोहम्मद (स.) की एक हदीस कुछ इस तरह से बयान की है कि एक बार एक अत्तारह (इत्र बेचने वाली) रसूल अल्लाह (स.) के घर में इत्र बेचने के लिये आयी जब उसकी रसूल अल्लाह (स.) से मुलाकात हुई तो उसने अल्लाह की अज़मत के बारे में दरियाफ्त किया। जवाब में रसूल अल्लाह (स.) ने फरमाया कि अल्लाह का जलाल बड़ी शान वाला है। मैं उस के जलाल के मुताल्लिक तुमसे थोड़ा सा बयान करूंगा।
उसके बाद रसूल अल्लाह (स.) ने फरमाया, कि 'ये ज़मीन, इसमें जो कुछ है और जो कुछ इस के ऊपर है, जिस के नीचे चटियल मैदान हैं, दायरे की तरह है और ये दोनों और जो भी इन दोनों में और दोनों के ऊपर है उस के नज़दीक है कि जिस के नीचे बे आब व ग्याह मैदान में हल्क़े की तरह है और तीसरी यहाँ तक कि सातवीं तक मुन्तही होती है।...........'
अगर इस हदीस पर गौर किया जाये तो ज़मीन को एक हल्के (गोले को ही उर्दू में हल्क़ा कहते हैं।) की तरह बताया जा रहा है जो एक ऐसे चटियल मैदान में मौजूद है जहाँ कुछ नहीं यानि कि स्पेस या निर्वात है। और अगर हदीस बयान करने वालों की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाये तो मुमकिन है यहां रसूल अल्लाह (स.) का मतलब ज़मीन का दायरे की शक्ल में घूमने से भी था। लेकिन चूंकि हदीस लिखने वाले को ये बात मालूम नहीं था इसलिये उसने अपनी तरफ से अलफाज़ में कमी बेशी कर दी।
अब बात करते हैं ज़मीन की अपने अक्ष पर घूमने की। जिसकी वजह से दिन और रात बनते हैं। वास्तव में उन्नीसवीं सदी तक दुनिया इससे अनजान थी कि ज़मीन अपने अक्ष पर किसी लट्टू की तरह घूमती है। यहाँ तक कि सत्रहवीं शताब्दी में जब न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की तब भी यह मालूम नहीं हो पाया था कि दिन रात कैसे बनते हैं।
ज़मीन का अपने अक्ष पर घूमना कनफर्म हुआ पहली बार फोको पेंडुलम की ईजाद के बाद। इसे बनाया था लियोन फोको ने सन 1851 में। इस पेंडुलम की मदद से उसने पेरिस में कुछ तजुर्बात किये और उससे सिद्ध किया कि ज़मीन अपने अक्ष के चारों तरफ घूम रही है। उसके बाद बीसवीं शताब्दी में जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के बाहर गये तो वहाँ से उन्होंने ज़मीन के घूमने का नज़ारा किया।
कुरआन हकीम की 27 वीं सूरे है अलनम्ल जिसकी आयत नं- 88 इस तरह है, ‘‘तुम पहाड़ों को देखते हो और समझते हो कि ये जामिद (ठहरे हुए हैं।) हैं। लेकिन ये बादलों की तरह चल रहे हैं। ये अल्लाह की कुदरत का करिश्मा है जिस ने हर चीज़ को हिकमत से अस्तवार किया है वह खूब जानता है जो तुम किया करते हो।’’
आज से चौदह सौ साल पहले नाज़िल हुआ कुरआन साफ साफ बयान कर रहा है कि पहाड़ बादलों की तरह चल रहे हैं और ये तभी मुमकिन है जब पूरी ज़मीन ही बादलों की तरह चल रही हो। अगर इसमें रसूल (स.) की हदीस शामिल की जाये तो ये गोल ज़मीन की गर्दिश साबित होती है। और इस सच्चाई पर मोहर लगायी रसूल (स.) की पाँचवीं पीढ़ी से इमाम जाफर सादिक (अ.) ने...........
स्ट्रेसबर्ग यूनिवर्सिटी के इस्लामिक रिसर्च सेंटर में 1940-50 के बीच एक रिसर्च हुई। इस रिसर्च में 25 विद्वानों, साइंसदानों वगैरा ने हिस्सा लिया था। यह रिसर्च हुई थी इमाम जाफर सादिक (अ.) के बारे में, और रिसर्च करने वालों में ज्यादातर तादाद गैर मुस्लिम्स की थी। इस थीसिस का ईरान में ‘मग्ज़े मुत्फक्किरे जहाने शिया-जाफर अल सादिक़ (यानि इस्लाम के शिया फिरके का दिमाग - जाफर अल सादिक अलैहिस्सलाम) नाम से फारसी में तर्जुमा हुआ। अब इसका उर्दू और हिन्दी में तर्जुमा मौजूद है। इस किताब का एक अंश इस तरह है,
‘‘इमाम जाफर सादिक (अ.) ने आज से बारह सौ साल पहले ये मालूम कर लिया था कि ज़मीन अपने गिर्द घूमती है और एक के बाद एक दिन व रात का सबब ज़मीन के गिर्द सूरज की गर्दिश नहीं बल्कि अपने गिर्द ज़मीन की गर्दिश है जिस से रात और दिन वजूद में आते हैं और हमेशा ज़मीन का आधा हिस्सा तारीक और रात की हालत में और दूसरा आधा हिस्सा रोशन और दिन के आलम में रहता है। उस ज़माने में जो लोग ज़मीन के गोल होने की हकीकत से वाकिफ थे, ये जानते थे कि हमेशा ज़मीन के आदेह हिस्से में रात व आधे में दिन रहता है लेकिन वह इसका सबब सूरज की ज़मीन के चारों तरफ की गर्दिश को मानते थे।’’
इमाम जाफर सादिक (अ.) के बाद दसवीं शताब्दी में अबू रेहान अल बिरूनी नामक मुस्लिम वैज्ञानिक हुआ जिसने ज़मीन की त्रिज्या त्रिकोणमिति के ज़रिये ज्ञात की उसमें ज़मीन के अपने अक्ष पर घूमने के तथ्य का इस्तेमाल हुआ था। उसकी कैलकुलेशन से ज़मीन की त्रिज्या निकल कर आयी थी 6339.9 किलोमीटर जो मौजूदा वैल्यू 6356.7 किलोमीटर से सिर्फ 16.8 के अन्तर पर थी।
तो इस तरह रसूल अल्लाह (स.), इस्लामी विद्वानों और इमामों को बखूबी मालूम था कि ज़मीन न सिर्फ गोल है बल्कि अपने अक्ष पर गर्दिश भी कर रही है।
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2 comments:
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