Friday, June 2, 2017

मोर मोरनी की किवंदती और इमाम हज़रत अली(अ.)

मोर मोरनी की कहानी भी बहुत पुरानी किवंदती है और हज़ारों साल से बड़े बड़े जस्टिस शर्मा जैसे विद्वान भी इसे सच मानते आ रहे हैं। लेकिन आज से चौदह सौ साल पहले ही इस्लाम के धर्माधिकारी इसे गलत बता चुके हैं। आज से चौदह सौ साल पहले का इमाम हज़रत अली(अ.) का मोर के बारे में यह बयान किताब नहजुल बलाग़ा में खुत्बा नंबर 163 में दर्ज है। किताब ‘नहजुल बलाग़ा’ आसानी से हर जगह लगभग हर भाषा में उपलब्ध है।

इमाम अली(अ.) नहजुल बलाग़ा के इस खुत्बे में कहते हैं कि ‘‘मोर भी और मुरगों की तरह जफ्ती खाता है और (अपनी मादा को) गर्भवती करने के लिये जोश व हीजान में भरे हुए नरों की तरह जोड़ खाता है। मैं इस (बयान) के लिये ‘एक्सपेरीमेन्ट’ को तुम्हारे सामने पेश करता हूं। अटकल लगाने वालों की ये सिर्फ अटकल या वहम है कि वह अपने आँख के बहाये हुए उस आँसू से अपनी मादा को अण्डों पर लाता है कि जो उसकी पलकों के दोनों किनारों में आकर ठहर जाता है और मोरनी उसे पी लेती है और फिर वह अण्डे देने लगती है।’’
इस तरह चौदह सौ साल पहले ही इमाम अली(अ.) मोर के बारे में उस ज़माने में फैली गलत मान्यताओं को नकार रहे हैं। गलत मान्यता ये है कि मोर अपनी आँखों में बसे आँसुओं के क़तरे से मोरनी को अण्डे देने के लिये तैयार करता है। जब मोरनी उन आँसुओं को पी लेती है तो अण्डे देने लगती है।

इमाम अली(अ.) फरमाते हैं कि इन बातों में कोई सच्चाई नहीं। हक़ीक़त ये है कि मोर व मोरनी के बीच उसी तरह ताल्लुक क़ायम होता है जिस तरह दूसरे परिन्दों में नर व मादा के बीच, जैसे कि मुर्ग व मुर्गी। 

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