Wednesday, November 19, 2014

हिंदू मुझे किशन कहते हैं।

इमाम हज़रत अली(अ.) का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। पैगम्बर मोहम्मद(स.) ने अपने बाद इस्लाम धर्म के सर्वोच्च अधिकारी के रूप में हज़रत अली(अ.) को नियुक्त किया था। पैगम्बर मोहम्मद(स.) ने अपने आखिरी हज से वापसी के बाद ग़दीर के मैदान में 10 मार्च 632 ई. (18 ज़िल-हिज 10 हिजरी) मुसलमानों को संबोधित करते हुए ये एलान किया, ‘‘जिसका जिसका मैं मौला हँू उसके उसके अली(अ.) मौला हैं।’’

तमाम सूफी वलियों का सिलसिला हज़रत अली(अ.) से जाकर मिलता है और उन सबका कहना है कि वली सिर्फ अली(अ.) हैं और बाकी लोगों को विलायत के कुछ हिस्से दान में मिले हैं। इस्लाम में सर्वोच्च धर्माधिकारी के रूप में नबूवत का सिलसिला आखिरी नबी पैगम्बर मोहम्मद(स.) के साथ खत्म हो गया और उसके बाद इमामत का सिलसिला शुरू हुआ। जो कि आज भी जारी है। इस सिलसिले के पहले इमाम हज़रत अली(अ.) हैं। बहरहाल ये तारीखी हकीकत है और इसपर तमाम मुसलमानों को इत्तेफाक है कि हज़रत अली(अ.) ऐतिहासिक रूप से इस्लाम के चौथे खलीफा बने। सभी इसपर एकमत हैं कि इमाम हज़रत अली(अ.) बेहतरीन न्याय करने वाले थे और उनकी खिलाफत में तमाम जनता पूरी तरह सुखी थी।
 
इमाम हज़रत अली(अ.) के बारे में बहुत से रहस्य ऐसे हैं जिनकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। निम्न किस्से से ये बात ज़ाहिर होती है।  
 
यह किस्सा ग्यारहवीं सदी में लिखी कौकब ए दुर्री नामक किताब में पेज 364-365 (उर्दू तरजुमा) पर मन्क़बत 53 नाम से दर्ज है। इसमें एक ईसाई संत से इमाम अली(अ.) की लंबी बातचीत है। इमाम हज़रत अली(अ.) जब सिफ्फीन की लड़ाई के लिये जा रहे हैं तो रास्ते में वह ईसाई संत मिलता है। ईसाई संत इमाम अली(अ.)से पूछता है कि तुम फरिश्ते हो या इंसान? इमाम अली(अ.) जवाब देते हैं कि मैं इंसानों और जिन्नातों का मुक़्तदा और फरिश्तों का पेशवा हूं। इसके बाद ईसाई संत इमाम अली(अ.) का पूरा परिचय पूछता है। 

जवाब में इमाम अली(अ.) कहते हैं, ‘हर क़ौम और हर गिरोह में मेरा नाम अलग अलग है। अरब में मुझे हल-अता कहते हैं, और मुझको इस नाम से तलाश करते हैं। तायफ वाले मुझ को महमीद कहते हैं और अहले मक्का (मक्का के वासी) मुझको बाबुल-बलद जानते हैं। आसमान वाले मेरा नाम अहद लिखते हैं। तुर्क मुझको बलिया कहते हैं और ज़ंगी मजीलान। और हिंदू मुझे किशन-किशन कहते हैं। और फिरंगी हामी-ईसा। और अहले खता याबोलिया के नाम से मौसूम करते हैं। और ईराक़ में अमीरुलनहल के नाम से मशहूर हूं और खुरासान में हैदर के नाम से नामज़द हूं। और आसमान अव्वल (पहले आसमान) में मेरा नाम अब्दुलहमीद है। और दूसरे आसमान में अब्दुलसमद और तीसरे में अब्दुलमजीद और चैथे आसमान में मेरा नाम ज़ुलअला है। और पाँचवें आसमान में मेरा नाम अली-आला है। हज़रत रब्बुलइज़्ज़त ने मुझको इमारात की मसनद पर बिठाया है और अमीरलमोमिनीन नाम रखा है। और ख्वाजा दोसरा मोहम्मद मुस्तफा(स.) ने मुझको अबूतुराब फरमाया है। और मेरे बाप ने मेरी कुन्नियत अबूलहसन रखी है और मेरी माँ ने अबुलअश्र कुन्नियत मुक़र्रर की है।

इस हदीस से ये ज़ाहिर होता है कि इमाम अली(अ.) आत्मिक रूप में हर जगह अलग अलग पैकरों में मौजूद रहे हैं। जिसमें भारत में उनका ‘किशन’ रूप भी है। जैसा कि इमाम फरमा रहे है कि हिंदू मुझे किशन-किशन कहते हैं। भारत में हर व्यक्ति जानता है कि ‘किशन’ भगवान श्री कृष्ण को कहा जाता है। तो क्या भगवान श्री कृष्ण और इमाम हज़रत अली(अ.) आत्मिक रूप से एक ही हैं?

इस बात की पुष्टि दोनों के बयानों की समरूपता से भी हो रही है। भगवान श्री कृष्ण के कथन गीता में मौजूद हैं और उससे मैच करता हुआ इमाम हज़रत अली(अ.) का रहस्य से भरपूर खुत्बा प्राचीन किताब नहजुल इसरार में ‘अल-बयान’ नाम से दर्ज है।

आईए एक नज़र डालते हैं गीता में मौजूद भगवान श्री कृष्ण के कुछ कथनों पर और साथ में इमाम हज़रत अली(अ.) के ‘अल-बयान’ के कथनों पर।
(गीता) मैं ही सूर्य रूप से तपता हूं। वर्षा का आकर्षण करता हूं और उसे बरसाता हूं। (9.18)
(अल-बयान) मैं हूं बादलों का पैदा करने वाला। और बारिश बरसाता हूं और बादल की कड़क सुनाता हूं। और बिजली को चमकाता हूं। मैं हूं सूरज को रोशनी देने वाला और सितारों को पैदा करने वाला।
(गीता) मेरी उत्पत्ति को न देवता जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं। क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं व महर्षियों का भी आदिकारण हूं।(10.2)
(अल-बयान) मैं वह हूं जिसके नूर को अल्लाह ने सबसे पहले पैदा किया। मैं वह हूं जिसने नबियों व रसूलों को माबूस (नियुक्त) किया।
(गीता) मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु (सबसे ऊपर) हूं।(10.21)
विदित हो कि इमाम अली(अ.) बारह इमामों में सबसे पहले हैं।
(गीता) सृष्टियों का आदि और अन्त तथा मध्य भी मैं ही हूं। (10.32)
(अल-बयान) मैंने तमाम आलमों (सृष्टियों) को पैदा किया। मैं क़यामत बरपा करूंगा।
(गीता) मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूं।(10.34)
(अल-बयान) मैं वह हूं कि खुदा के हुक्म से तमाम चीज़ों को तकवीम के बाद वजूद में लाया। मैं जिंदा करता हूं और मारता हूं। और मैं पैदा करता हूं।

मुसलमानों का पवित्र कलमा है ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’। इमाम अली(अ.) इस कलमे के बारे में फरमाते हैं कि पूरी सृष्टि इस कलमे में सिमटी हुई है और मैं इस बिस्मिल्लाह का नुक़्ता (प्वाइंट) हूं।’ बिस्मिल्लाह को न्यूमरोलोजी में 786 नंबर से इंगित किया जाता है। हाल ही में मेरे एक दूर के परिचित पंडित बी.एन.शर्मा ने एक गूढ़ रिसर्च की, जिसके बाद ये तथ्य सामने आया कि 786 नंबर न्यूमरोलोजी के द्वारा ‘हरे कृष्णा’ का भी बनता है।

तो हम कह सकते हैं इमाम हज़रत अली(अ.) और भगवान श्री कृष्ण के बीच यकीनन कोई गूढ़ रहस्यमयी सम्बन्ध है।

1 comment:

welcome said...

The connection between them or similarity is very very simple...
It is love, the essence of ______..
जब इंसान अपने घमण्ड और अहम् को छोड़ देता है तो उसके चरित्र और किरदार में सिर्फ प्रेम/ मुहब्बत ही रह जाती है। प्रेम/मुहब्बत ही रास्ता है _______ से जुड़ने का। हजरत अली और श्री कृष्णा ने जब ये रास्ता चुना तब ही उनका नाता उससे जुड़ गया।
सभी चाहे तो भी अली या कृष्णा नहीं बन सकते लेकिन ये बात सच है की वो इसी राह पर चल कर इनके जैसा मुकाम हासिल कर सकते है।।