इस्लाम की सच्चाई व पैगम्बर मोहम्मद(स.) का बेदाग़ चरित्र शुरूआत से ही इस्लाम दुश्मनों की नज़र में खटकता रहा है। और वे नबी के चरित्र पर उंगली उठाने के मौके ढूंढते रहे हैं। इसके लिये अक्सर वे ज़ईफ़ हदीसों का सहारा लेने से नहीं चूकते, अर्थात जिनकी रावियों के सिलसिले में कहीं कोई कमज़ोर कड़ी पायी जाती है। इसी तरह का एक निहायत गलत आक्षेप ये है कि पैगम्बर मोहम्मद(स.) ने जब हज़रत आयशा(र.) से शादी की तो उनकी उम्र मात्र छह साल थी। यह बात पूरी तरह आधारहीन है कि नबी(अ.) से शादी के वक्त हज़रत आयशा(र.) की उम्र छह साल थी। ऐतिहासिक रूप से इसका कोई प्रमाण नहीं और हक़ीक़त इसके उलट है।
तमाम इतिहासकार इसपर सहमत हैं कि हज़रत आयशा(र.) की बड़ी बहन हज़रत अस्मा(र.) उनसे दस साल बड़ी थीं।(1,2) और उनकी मृत्यु सन 73 हिजरी में 100 साल की उम्र में हुई (3,4,5,6) अर्थात हिजरी वर्ष आरम्भ होने के समय उनकी उम्र 27 या 28 साल थी। और इस तरह हिजरी वर्ष आरम्भ होने के समय हज़रत आयशा(र.) की उम्र 17 या 18 साल थी जबकि सन 2 हिजरी में उनकी शादी हुई। अर्थात शादी के समय हज़रत आयशा(र.) की उम्र 19 या 20 साल थी।
दूसरा सुबूत हज़रत आयशा(र.) का स्वयं का क़ौल है जो कि सहीह बुखारी में इस तरह दर्ज है,(7) ''जब सूर: अल क़मर का नुज़ूल हुआ उस समय मैं किशोरावस्था (जारिया:) में थी।" ज्ञात रहे कि सूर: अल क़मर का नुज़ूल हिजरी वर्ष आरम्भ होने के 8 साल पहले हुआ था। अब किसी किशोरी की आयु दस साल बाद अर्थात शादी के समय क्या होगी इसका सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
तबरी के अनुसार, ''पैगम्बर मोहम्मद(स.) ने जब इस्लाम का पैगाम दिया, उससे पहले हज़रत अबूबक्र(र.) ने दो शादियां की थीं। पहली बीवी का नाम फातिला था उनसे एक बेटा अब्दुल्लाह व बेटी अस्मा हुई । जबकि दूसरी बीवी की नाम उम्मे रूमाँ था। इनसे बेटा अब्दुर्रहमान व बेटी आयशा (र.) हुई । ये चारों इस्लाम का पैगाम आने से पहले हो चुके थे।(8) रसूल(स.) ने इस्लाम का पैगाम जब दिया था तो उनकी उम्र थी चालीस साल। जबकि हिजरत के वक्त उनकी उम्र थी 52 साल। उसके दो साल बाद उन्होंने हज़रत आयशा(र.) से शादी की। इस तरह भी इस शादी के वक्त हज़रत आयशा(र.) की उम्र 14 साल से ज़्यादा ही ठहरती है, कम नहीं।
गर्ज़ ये कि इस्लाम के रसूल(स.) पर लगाया गया ये इल्ज़ाम पूरी तरह गलत है कि उन्होंने किसी बच्ची से शादी की थी।
1. Siyar A’lama-nubala, Al-Zahabi, Vol. 2, pg 289, Arabic, Muassasatu-risalah, 1992
2. Al-Bidayah wa-nihayah, Ibn Kathir, Vol. 8, pg 371, Dar al-fikr al-`arabi, Al-jizah, 1933
3. Al-Bidayah wa-nihayah, Ibn Kathir, Vol. 8, p. 372
4. Dar al-fikr al-`arabi, Al-jizah, 1933
5. Ibne Asakir vol 69 Page 18
6. Alsunnan Alkubra Albehaqi Vol.6 Page 204
7. Sahih Bukhari, kitabu’l-tafsir, Bab QaulihiBal al-sa`atu Maw`iduhum wa’l-sa`atu adha’ wa amarr)
8.Tarikh Tabari, vol. 4, p. 50
5 comments:
सही जानकारी दी आपने, इसमें और भी बहुत से पुख्ता सबूत हैं... लेकिन अफवाहों के ज़रिये बदनामी की कोशिश करने वालों को सबूतों से क्या वास्ता?
आपने सही जानकारी दी है. इस्लाम के बारे में गलत जानकारी फैलाने के पीछे राजनैतिक स्वार्थ हैं. देश में नफरत और दंगों के पीछे भी यही स्वार्थी और शरारती तत्व हैं.
इस तरह की गलतफहमियां मिटाने वाली हमारी ताज़ा पोस्ट देखें-
स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा क्या पाया?
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/dayanand
sabhi atanki muslim hi kyu hote hen iska kya karan he bta skte ho?
तो क्या "सहीह बुखारी" जैसी इस्लामिक मान्यता प्राप्त हदीस की किताब ग़लत या झूठ प्रस्तुत कर रही है। यदि हाँ! तो उस झूठ के पिटारे का मंसूख करने की घोषणा इस्लामिक जगत को यथाशीघ्र करनी ही चाहिए । ताकि जाकिर नायक जैसा व्यक्ति छः वर्ष वाली बात की घोषणा करता न फिरे।
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