लोग कुरआन की आयतों का अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर मतलब पेश करते हैं. और यह सोचकर चौड़े हो जाते हैं की उन्होंने अल्लाह की किताब में कमी निकाल दी. लेकिन क्या यह सच है?
कुरआन अल्लाह का कलाम है. सारी चीज़ें भी अल्लाह की बनाई हुई हैं. और उनको देखने के लिए रोशिनी भी अल्लाह की बनाई हुई है. जब हम किसी चीज़ को देखते हैं तो कहते हैं वह चीज़ दिख रही है. जबकि हकीकत यह है की हमें कोई चीज़ नहीं दिखती बल्कि हम सिर्फ उन इलेक्ट्रिक सिग्नल्स को महसूस करते हैं जो रौशनी के ज़रिये हमारी आँख तक आई उस चीज़ की इमेज से पैदा होकर दिमाग तक पहुँचते हैं. तो जब अल्लाह का बनाया हमारे देखने का सिस्टम तक स्ट्रेट फारवर्ड नहीं है तो अल्लाह का कलाम कहा से स्ट्रेट फारवर्ड हो जाएगा की आप सिर्फ उसका तर्जुमा पढ़कर निष्कर्ष निकाल लें? निष्कर्ष निकालने के लिए उसमे आस्था रखकर मन की आँखें खोलनी ही पड़ेंगी. इस बारे में यह लेख आपकी मदद कर सकता है.
4 comments:
ठीक कहते हैं इस अक्ल के कुसूर में वह लेख मदद कर सकता है
almighty Alaah is paramount and supreme. Quran is holy book having no mistake. if somebody found it incorrect, he should go to mental doctor for check-up
bahutkhoob madhav jeee
VERY GOOD
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