tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post5648838089626376..comments2023-06-16T21:27:55.803+05:30Comments on Ya Husain Ya Shah-E-Karbala: अल्लाह का वजूद - साइंस की दलीलें (पार्ट-29)zeashan haider zaidihttp://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-72515467494983439432010-02-05T10:08:16.522+05:302010-02-05T10:08:16.522+05:30bhai ye bata do akhir aap log kar ke kya manoge?
a...bhai ye bata do akhir aap log kar ke kya manoge?<br />aapka group to badhta hi ja raha hai.<br />kya hum apni dukan utha len?PARAM ARYAhttps://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7696335468250187578.post-11415062112514311712010-02-05T10:03:10.157+05:302010-02-05T10:03:10.157+05:30"अल्लाह का वजूद"
.........................."अल्लाह का वजूद"<br />...........................................................................<br />‘बिस्मिल्लाह’ के अक्षरों में छिपा रहस्य<br />पवित्र कुरआन का आरम्भ जिस आयत से होता है वह खुद इतना बड़ा गणितीय चमत्कार अपने अन्दर समाये हुए है जिसे देखकर हरेक आदमी जान सकता है कि ऐसी वाणी बना लेना किसी मुनष्य के बस का काम नहीं है। एकल संख्याओं में 1 सबसे छोटा अंक है तो 9 सबसे बड़ा अंक है और इन दोनों से मिलकर बना 19 का अंक जो किसी भी संख्या से विभाजित नहीं होता। <br />पवित्र कुरआन का आरम्भ ‘बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर रहीम’ से होता है। इसमें कुल 19 अक्षर हैं। इसमें चार शब्द ‘इस्म’(नाम), अल्लाह,अलरहमान व अलरहीम मौजूद हैं। परमेश्वर के इन पवित्र नामों को पूरे कुरआन में गिना जाये तो इनकी संख्या इस प्रकार है-<br /><br />इस्म-19, <br />अल्लाह- 2698, <br />अलरहमान -57, <br />अलरहीम -114 <br /><br /><br />अब अगर इन नामों की हरेक संख्या को ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ के अक्षरों की संख्या 19 से भाग दिया जाये तो हरेक संख्या 19, 2698, 57 व 114 पूरी विभाजित होती है कुछ शेष नहीं बचता। <br />है न पवित्र कुरआन का अद्भुत गणितीय चमत्कार-<br /><br /><br /># 19 ÷ 19 =1 शेष = 0<br /># 2698 ÷ 19 = 142 शेष = 0<br /># 57 ÷ 19 = 3 शेष = 0<br /># 114 ÷ 19 = 6 शेष = 0<br /><br /><br />पवित्र कुरआन में कुल 114 सूरतें हैं यह संख्या भी 19 से पूर्ण विभाजित है। <br /><br />पवित्र कुरआन की 113 सूरतों के शुरू में ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ मौजूद है, लेकिन सूरा-ए-तौबा के शुरू में नहीं है। जबकि सूरा-ए-नम्ल में एक जगह सूरः के अन्दर, 30वीं आयत में बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम आती है। इस तरह खुद ‘बिस्मिल्ला- हर्रहमानिर्रहीम’ की संख्या भी पूरे कुरआन में 114 ही बनी रहती है जो कि 19 से पूर्ण विभाजित है। अगर हरेक सूरत की तरह सूरा-ए-तौबा भी ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरू होती तो ‘बिस्मिल्लाह’ की संख्या पूरे कुरआन में 115 बार हो जाती और तब 19 से भाग देने पर शेष 1 बचता।<br /><br />क्या यह सब एक मनुष्य के लिए सम्भव है कि वह विषय को भी सार्थकता से बयान करे और अलग-अलग सैंकड़ों जगह आ रहे शब्दों की गिनती और सन्तुलन को भी बनाये रखे, जबकि यह गिनती हजारों से भी ऊपर पहुँच रही हो?DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com